प्राचीनतम यजीदी धर्म को जानिए
यजीदी धर्म प्राचीन विश्व की प्राचीनतम धार्मिक परंपराओं में से एक है। यजीदियों की गणना के अनुसार अरब में यह परंपरा 6,763 वर्ष पुरानी है अर्थात ईसा के 4,748 वर्ष पूर्व यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों से पहले से यह परंपरा चली आ रही है।
* 'यजीदी' का शाब्दिक अर्थ 'ईश्वर के पूजक' होता है। ईश्वर को 'यजदान' कहते हैं। यजीदी अपने ईश्वर को 'यजदान' कहते हैं।
* शोध से पता चलता है कि यजीदियों का यजीद या ईरानी शहर यज्द से कोई लेना-देना नहीं। उनका संबंध फारसी भाषा के 'इजीद' से है जिसके मायने फरिश्ता है। इजीदिस के मायने हैं 'देवता के उपासक' और यजीदी भी खुद को यही कहते हैं।
* यजीदियों की कई मान्यताएं हिन्दू और ईसाइयत से भी मिलती-जुलती हैं। ईसाइयत के आरंभिक दिनों में मयूर पक्षी को अमरत्व का प्रतीक माना जाता था।
* यजदान से 7 महान आत्माएं निकलती हैं जिनमें मयूर एंजेल है जिसे मलक ताउस कहा जाता है। मयूर एंजेल को दैवीय इच्छाएं पूरा करने वाला माना जाता है।
* यजीदी ईश्वर को इतना ऊपर मानते हैं कि उनकी सीधे उपासना नहीं की जाती। उन्हें सृष्टि का रचयिता तो मानते हैं, लेकिन रखवाला नहीं।
* यजीदियों में जल का महत्व है। धार्मिक परंपराओं में जल से अभिषेक किए जाने की परंपरा है।
* पुनर्जन्म को मानते हैं।
* यजीदी अपने ईश्वर की 5 समय प्रार्थना करते हैं। सूर्योदय व सूर्यास्त में सूर्य की ओर मुंह करके प्रार्थना की जाती है।
* स्वर्ग-नरक की मान्यता भी है।
* धार्मिक संस्कार कराने वाले विशेषज्ञों की परंपरा है।
* व्रत, मेले, उत्सव की परंपरा भी है।
* समाधियां व पूजागृह (मंदिर) भी हैं।
* इनकी धार्मिक भाषा कुरमांजी है, जो प्राचीन परशियन (ईरान) की शाखा है।
* पृथ्वी, जल व अग्नि में थूकने को पाप समझते हैं।
* यजीदी धर्म परिवर्तन नहीं करते। यजीदी के लिए धर्म निकाला सबसे दुर्भाग्यपूर्ण माना जाता है, क्योंकि ऐसा होने पर उसकी आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता।