आज दुनिया में अधिकांश लोग भाग्यवान होने का अर्थ अमीर होना, धनवान होना ही समझते हैं और जिसके पास धन नहीं है वह स्वयं को भाग्यहीन कहकर दिन-रात शोक मनाता है, मगर क्या हमने कभी सोचा कि भाग्य आखिर है क्या?
क्या दुर्लभ मनुष्य जन्म मिलना, यह भाग्य नहीं है? एक सुसंस्कृत देश की प्रजा के रूप में पहचाने जाना यह भाग्य नहीं है?
जीवन के इस विशाल परिदृश्य में कई रंग आते-जाते रहते हैं। किसी व्यक्ति को रिश्तों का सुख मिलता है, उसके आत्मीयजन उससे स्नेह रखते हैं, सर्वत्र प्रेम व स्नेह का आस्वाद वह उठाता है, वहीं किसी व्यक्ति को परिजनों का स्नेह नहीं मिलता, मगर वह संसार में नाम कमाता है, दुनिया उसे प्रेम करती है। यह भी भाग्य का ही एक रूप है।
किसी व्यक्ति के भाग्य में अथाह धन-संपत्ति आती है, मगर वह उसका उपभोग करने में असमर्थ होता है। शारीरिक बीमारियाँ उसे घेरे रहती हैं, वहीं शारीरिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति धन की कमी का शोक मनाता है। वह यह नहीं सोचता कि स्वस्थ शरीररूपी नियामत पास होना ही उसका सौभाग्य है।
वास्तव में सौभाग्य-यश, प्रेम, धन, स्वास्थ्य- इन सभी रूपों में या किसी एक रूप में आपके पास हो सकता है। ईश्वर सभी को योग्यता व कर्मानुसार भाग्य प्रदान करता ही है। अतः जरूरत है कि हम हमारे हिस्से में आए आशीर्वाद को सस्नेह ग्रहण करें और ईश्वर से संतोषरूपी धन की याचना करें, क्योंकि हर स्थिति में संतुष्ट रहने से ही सुख प्राप्त होता है।