झारखंड सरकार ने जैन धर्म के सबसे बड़े तीर्थ क्षेत्र सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित कर दिया है। सबसे पहले तो यह समझना होगा कि किसी भी तीर्थ क्षेत्र को पर्यटन स्थल क्यों घोषित किया जाता है और इसे पर्यटन क्षेत्र बनाने से क्या होगा? इसके लिए एक उदाहरण से यह बात समझना होगी, जो किसी राजनीतिज्ञ या उद्योगपति को शायद समझ में न आए।
हिन्दू पुराणों में चार धाम को पवित्र तीर्थ क्षेत्र माना गया है। इसमें भी बद्रीनाथ को परम तीर्थ और जगन्नाथ को वैकुण्ठ कहा गया है। एक दौर था जबकि बद्रीनाथ धाम में पैदल यात्रा होती थी और यहां पर अधिकतर साधु संत ही संगत बनाकर यात्रा करते थे। उन्हीं के साथ आम तीर्थयात्री भी होते थे। हालांकि इस क्षेत्र में आम लोगों के यात्रा पर जाने के लिए कई तरह की हिदायत दी गई है।
पुराणों के अनुसार केदारनाथ और बद्रीनाथ क्षेत्र नर और नारायण पर्वत के आसपास हैं। यह संपूर्ण क्षेत्र देवत्व हिमालय के अंतर्गत आता है। यहां पर प्रत्यक्ष और सूक्ष्म रूप में लाखों साधु-संत और ऋषि-मुनि तपस्यारत है। यहां पर नर और नारायण ने हजारों वर्ष तपस्या करके इस क्षेत्र को पवित्र बनाया है। इस संपूर्ण क्षेत्र की ऊर्जा और इसका महत्व आध्यात्मिक है। श्रीमद्भागवत पुराण में इसका उल्लेख मिलता है। यह संपूर्ण क्षेत्र उन लोगों के लिए हैं जो स्वयं की यात्रा पर निकलें हैं या जो मोक्ष चाहते हैं। यह क्षेत्र उन लोगों के लिए नहीं है जो वहां पर जाकर प्रकृति का आनंद लेना चाहते हैं, सेल्फी लेना चाहते हैं या पिकनिक मनाना चाहते हैं।
लेकिन दुख की बात है कि पहले लोग सिर्फ बद्रीनाथ धाम की यात्रा करते थे लेकिन अब इस संपूर्ण क्षेत्र को छोटा चार धाम के नाम से पर्यटन स्थल की तरह विकसित करके इसे एक व्यावसायिक क्षेत्र बना दिया गया है, जिसके चलते अब न केवल इसकी प्रकृति नष्ट हो रही है बल्कि यह अपवित्र भी होता जा रहा है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इस संपूर्ण क्षेत्र की प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की गई तो यह तीर्थ क्षेत्र न केवल लुप्त हो जाएंगे बल्कि लुप्त होकर ये भूगर्भीय गतिविधियों को भी बढ़ाकर भारतीय जलवायु और यहां की धरती को खतरे में डाल देंगे। यही बात नर्मदा नदी को लेकर भी लिखी है स्कंद पुराण के रेवाखंड में। नर्मदा को रोकने से एक दिन भारत समुद्र में समा जाएगा।
जहां पर पर्यटन के लिए सभी धर्म और देश विदेश के लोग जाने लगते हैं वहां धीरे धीरे अवैध गतिविधियां भी प्रारंभ होने लगती है। वहां पर शराब और मांस की बिक्री भी बढ़ जाती है। किसी भी तीर्थ स्थल के 100 मीटर के दायरे को छोड़कर सब कुछ बेचा जा सकता है। जैन अनुयायियों की सिर्फ यही एक चिंता नहीं है बल्कि यह भी कि श्री सम्मेद शिखरजी की प्राकृतिक सुंदरता और यहां की जैव विविधता के साथ भी भविष्य में छेड़छाड़ की जाएगी जिसके चलते इस संपूर्ण क्षेत्र की न केवल पवित्रता नष्ट होगी बल्कि यहां आने का जो आध्यात्मिक भाव और अनुभव होता है वह भी प्रभावित होगा।
तपोभूमि को तपोभूमि ही रहने दिया जाना चाहिए और तीर्थ क्षेत्र को तीर्थ क्षेत्र की तरह ही रहने देने भी ही भलाई है। इस देश में लोगों की मोज मस्ती के लिए हजारों अन्य स्थानों को विकसित किया जा सकता है। यह भलिभांति जान लेना चाहिए कि पर्यटन और परिक्रमा परिव्राजक में जमीन आसमान का फर्क होता है। तपोभूमि या तीर्थ क्षेत्र की लोग परिक्रमा करने जाते हैं और संतजन परिव्राजक होते हैं जो हमेशा ही तपोभूमि पर ध्यान और तीर्थों में परिक्रमा करते रहते हैं।
पर्यटन के नाम पर हिन्दुओं के कई तीर्थों को नष्ट कर दिया गया है। आज हम देखते हैं कि लोग तीर्थ क्षेत्र में न तो सत्संग, ध्यान या धर्म अर्जित करने जाते हैं और न ही वे दर्शन करने जाते हैं। वहां जाकर वे क्या करते हैं यह सभी जानते हैं। दर्शन करने नहीं बल्कि सैर-सपाटा करने जाते हैं और फेसबुक या इंस्टाग्राम पर पोस्ट करते हैं।
खबरों में हमने पढ़ा भी है कि किस तरह गंगा के पवित्र तट पर लोग बैठकर डांस या शराब पार्टी कर रहे हैं और किस तरह महाकाल मंदिर प्रांगण में लड़कियां कम कपड़े पहनकर इंस्टा के लिए डांस कर रही है।
झारखंड के जिस क्षेत्र में श्री सम्मेद शिखर जी है वहां का संपूर्ण क्षेत्र आदिवासियों का क्षेत्र है। झारखंड सरकार वोट की राजनीति के चलते उस क्षेत्र को पर्यटन स्थल जैसा बनाकर वहां पर आने के लिए लोगों को आकर्षित करेगी और इससे सरकारी खजाना भरा जाएगा। लेकिन इससे होगा यह कि जो जैन धर्म के अनुयायी हैं वे पीछे रह जाएंगे और वहां पर सैर सपाटा और मौज मस्ती करने वाले लोगों की संख्या बढ़ जाएगी। इससे न केवल उस तपोभूमि को नुकसान पहुंचेगा जहां से कई तीर्थंकर मोक्ष को गए हैं वहीं इसकी पवित्रता भी नष्ट हो जाएगी। इसलिए जैन समाज का विरोध करना जायज ही नहीं बल्कि कहना यह चाहिए कि अभी नहीं तो फिर कभी नहीं। सभी को इसके खिलाफ एकजुट होने की जरूरत है।