पाकिस्तान द्वारा जबरन कब्जाए गए बलूचिस्तान में हिंगोल नदी के समीप हिंगलाज क्षेत्र में सुरम्य पहाड़ियों की तलहटी में स्थित है माता हिंगलाज का मंदिर जो 51 शक्तिपीठों में से एक है। आओ जानते हैं खास जानकारी।
1. पाकिस्तान में स्थित माता हिंगलाज का मंदिर प्रधान 51 शक्तिपीठों में से एक है।
2. हिंगलाज ही वह जगह है, जहां माता का सिर गिरा था। बृहन्नील तंत्रानुसार यहां सती का 'ब्रह्मरंध्र' गिरा था।
3. यहां माता सती कोटटरी रूप में जबकि भगवान शंकर भीमलोचन भैरव रूप में प्रतिष्ठित हैं।
4. इस मंदिर की माता को संपूर्ण पाकिस्तान में नानी मां का मंदिर भी कहा जाता है। मुसलमान हिंगुला देवी को 'नानी' तथा वहां की यात्रा को 'नानी का हज' कहते हैं। पूरे बलूचिस्तान के मुसलमान भी इनकी उपासना एवं पूजा करते हैं। वे मुस्लिम स्त्रियां जो इस स्थान का दर्शन कर लेती हैं उन्हें हाजियानी कहते हैं। उन्हें हर धार्मिक स्थान पर सम्मान के साथ देखा जाता है। मुसलमानों के लिए यह नानी पीर का स्थान है।
5. यहां का मंदिर गुफा मंदिर है। ऊंची पहाड़ी पर बनी एक गुफा में माता का विग्रह रूप विराजमान है। पहाड़ की गुफा में माता हिंगलाज देवी का मंदिर है जिसका कोई दरवाजा नहीं। मंदिर की परिक्रमा में गुफा भी है। यात्री गुफा के एक रास्ते से दाखिल होकर दूसरी ओर निकल जाते हैं। मंदिर के साथ ही गुरु गोरखनाथ का चश्मा है। मान्यता है कि माता हिंगलाज देवी यहां सुबह स्नान करने आती हैं। माता हिंगलाज मंदिर परिसर में श्रीगणेश, कालिका माता की प्रतिमा के अलावा ब्रह्मकुंड और तीरकुंड आदि प्रसिद्ध तीर्थ हैं। हिंगलाज मंदिर में दाखिल होने के लिए पत्थर की सीढिय़ां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर में सबसे पहले श्री गणेश के दर्शन होते हैं जो सिद्धि देते हैं। सामने की ओर माता हिंगलाज देवी की प्रतिमा है जो साक्षात माता वैष्णो देवी का रूप हैं।
6. मां के मंदिर के नीचे अघोर नदी है जिसे हिंगोस भी कहते हैं। कहते हैं कि रावण वध के पश्चात् ऋषियों ने राम से ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति हेतु हिंगलाज में यज्ञ करके कबूतरों को दाना चुगाने को कहा। श्रीराम ने वैसे ही किया। उन्होंने ग्वार के दाने हिंगोस नदी में डाले। वे दाने ठूमरा बनकर उभरे, तब उन्हें ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति मिली। वे दाने आज भी यात्री वहां से जमा करके ले जाते हैं।
7. इस मंदिर से जुड़ी एक और मान्यता व्याप्त है। कहा जाता है कि हर रात इस स्थान पर सभी शक्तियां एकत्रित होकर रास रचाती हैं और दिन निकलते हिंगलाज माता के भीतर समा जाती हैं।
8. भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि ऋषि ने यहां घोर तपस्या की थी। उनके नाम पर आसाराम नामक स्थान अब भी यहां उपस्थित है। कहा जाता है कि इस प्रसिद्ध मंदिर में माता की पूजा करने को गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव, दादा मखान जैसे महान आध्यात्मिक संत आ चुके हैं। 16वीं सदी में खाकी अखाड़ा के महंत भगवानदास जी ने सांसारिक लोगों के कल्याण के लिए बाड़ी में मां हिंगलाज को ज्योति के रूप में स्थापित किया था।