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देवशयनी एकादशी व्रत विशेष : देवता के सोने के बाद शुभ कार्य क्यों नहीं होते?

हमें फॉलो करें देवशयनी एकादशी व्रत विशेष : देवता के सोने के बाद शुभ कार्य क्यों नहीं होते?
Devshayani Ekadashi
 
इस वर्ष 20 जुलाई 2021 को हरिशयनी एकादशी आ रही है। देवशयनी एकादशी नाम से ही स्पष्ट है कि इस दिन श्रीहरि शयन करने चले जाते हैं। इस अवधि में श्रीहरि पाताल के राजा बलि के यहां चार मास निवास करते हैं।


देवशयनी एकादशी, पद्मा एकादशी, पद्मनाभा एकादशी के नाम से पुकारी जाने वाली इस एकादशी के दिन से ही गृहस्थ लोगों के लिए चातुर्मास नियम प्रारंभ हो जाते हैं। चातुर्मास असल में संन्यासियों द्वारा समाज को मार्गदर्शन करने का समय है। आम आदमी इन चार महीनों में अगर केवल सत्य ही बोले तो भी उसे अपने अंदर आध्यात्मिक प्रकाश नजर आएगा।
 
इन चार मासों में कोई भी मंगल कार्य- जैसे यज्ञोपवीत, शुभ मांगलिक विवाह, मुंडन, उपनयन संस्कार, नवीन गृह प्रवेश आदि नहीं किया जाता है। ऐसा क्यों? 
 
तो इसके पीछे सिर्फ यही कारण है कि आप पूरी तरह से ईश्वर की भक्ति में डूबे रहें, सिर्फ ईश्वर की पूजा-अर्चना करें। बदलते मौसम में जब शरीर में रोगों का मुकाबला करने की क्षमता यानी प्रतिरोधक शक्ति बेहद कम होती है, तब आध्यात्मिक शक्ति प्राप्ति के लिए व्रत करना, उपवास रखना और ईश्वर की आराधना करना बेहद लाभदायक माना जाता है।
 
 
वास्तव में यह वे दिन होते हैं जब चारों तरफ नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ने लगता है और शुभ शक्तियां कमजोर पड़ने लगती हैं। ऐसे में जरूरी होता है कि देव पूजन द्वारा शुभ शक्तियों को जाग्रत रखा जाए। देवप्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी से देवता के उठने के साथ ही शुभ शक्तियां प्रभावी हो जाती हैं और नकारात्मक शक्तियां क्षीण होने लगती हैं। 

पुराणों के अनुसार राजा बल‌ि ने तीनों लोकों पर अध‌िकार कर ल‌िया। घबराए इंद्र ने जब भगवान व‌िष्‍णु से सहायता मांगी तो व‌िष्‍णु ने वामन अवतार ल‌िया और राजा बल‌ि से दान मांगने पहुंच गए। वामन भगवान ने दान में तीन पग भूमि मांगी। दो पग में भगवान ने धरती और आकाश नाप ल‌िया और तीसरा पग कहां रखे जब यह पूछा तो बल‌ि ने कहा क‌ि उनके स‌िर पर रख दें। इस तरह बलि से तीनों लोकों को मुक्त करके भगवान व‌िष्‍णु ने देवराज इंद्र का भय दूर क‌िया। लेक‌िन राजा बल‌ि की दानशीलता और भक्त‌ि भाव देखकर भगवान ‌व‌िष्‍णु ने बल‌ि से वर मांगने के ल‌िए कहा।
 
 
बल‌ि ने भगवन से कहा क‌ि आप मेरे साथ पाताल चलें और हमेशा वहीं न‌िवास करें। भगवान व‌िष्‍णु ने अपने भक्त बल‌ि की इच्छा पूरी की और पाताल चले गए। इससे सभी देवी-देवता और देवी लक्ष्मी च‌िंत‌ित हो उठी। देवी लक्ष्मी ने भगवान व‌िष्‍णु को पाताल लोक से मुक्त कराने ल‌िए एक चाल चली और पहुंच गई एक गरीब स्‍त्री बनकर राजा बल‌ि के पास। इन्होंने राजा बल‌ि को राखी बांधी और बदले में भगवान विष्णु को पाताल से मुक्त करने का वचन मांग ल‌िया।
 
 
भगवान विष्णु अपने भक्त को न‌िराश नहीं करना चाहते थे इसल‌िए बल‌ि को वरदान द‌िया क‌ि वह साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्त‌िक शुक्ल एकादशी तक पाताल लोक में न‌िवास करेंगे। अत: इन दिनों शुभ कार्य करने की मनाही है।

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