Bhavishya Malika : श्रीमद् भागवत कथा पुराण, भविष्य पुराण और संत अच्युतानंद दास की भविष्य मलिका के अनुसार कलयुग में राजाओं का अंत होने के साथ ही कलिकाल के अंत की बात कही गई है। भविष्य पुराण और श्रीमद्भागवत पुराण के द्वादश स्कंध के प्रथम अध्याय में भी वंशों का वर्णन मिलता है। पुराणों के अनुसार 3,114 ईसा पूर्व कलियुग की शुरुआत हुई थी। 4800 वर्ष के बाद कलयुग समाप्त हो जाएगा और तब भारतवर्ष में चारों ओर खुशियां लौट आएंगी।
भविष्य मालिका के अनुसार धरती 3 चरणों से गुजर रही है। पहला कलयुग का अंत होगा, दूसरा महाविनाश होगा और तीसरा आएगा एक नया युग। कलयुग का अंत हो चुका है और महाविनाश का समय चल रहा है और इसके कुछ काल बाद नए युग का प्रारंभ होगा। कहते हैं कि भविष्य मालिका में श्रीमद्भागवत पुराण की भविष्यवाणी को ही विस्तार दिया है। आओ जानते हैं कि कब हुआ कलयुग का अंत।
स्व.श्री परमहंस राजनारायणजी षट्शास्त्री के शोधानुसार (जनवरी 1942 के अखंड ज्योति के अंक में प्रकाशित) 'दिवि भवं दिव्यनु' अर्थात दिवि में प्रकट होता है वह दिव्य है। दिनों में सूर्य प्रकट होता है। अत: दिव्य केवल सूर्य को ही कहते हैं। दिवि को धु कहते हैं। धु दिन का नाम है। दिव्य वर्षों का देवताओं के वर्ष से नहीं सूर्य के वर्ष से संबंध है। चारों युग मनुष्यों के हैं इनके बराबर देवताओं का एक युग होता है। कई विद्वानों की टिप्पणी पढ़ने के बाद यह सिद्ध हुआ है कि वास्तव में सतयुग के 1200 वर्ष, त्रेता के 2400 वर्ष, द्वापर के 360 वर्ष और कलयुग के 4800 वर्ष होते हैं।
श्रीमद्भागवत पुराण के द्वादश स्कंथ के अध्याय दो और श्लोक 24 में बताया गया है कि कलयुग कब समाप्त होगा।
यदा चन्द्रश्च सूर्यश्च तथा तिष्यबृहस्पती ।
एकराशौ समेष्यन्ति भविष्यति तदा कृतम् ॥-भागवत पुराण 12.2.24
अर्थात : जब चंद्रमा, सूर्य और बृहस्पति कर्कट नक्षत्र में एक साथ होते हैं, और तीनों एक साथ चंद्र भवन पुष्य में प्रवेश करते हैं- ठीक उसी क्षण सत्य, या कृत का युग शुरू होगा।
महाभारत, वन पर्व अध्याय 190, श्लोक 88, 89, 90 और 91 श्लोक में भी यही कहा गया है। जब तिष्य में चंद्र, सूर्य, और बृहस्पति एक राशि पर समान अंशों में आवेंगे तो सतयुग प्रारंभ होगा।
उपरोक्त संदर्भ के अनुसार तिष्य शब्द के दो अर्थ है। पौष मास या पुष्य नक्षत्र। पौष का अर्थ लेते हैं तो सन् 1942 में सतयुग प्रारंभ हो चुका है, क्योंकि ग्रह तारों की ऐसी स्थिति तभी बनी थी। पुष्य का अर्थ लेते हैं तो यह योग कृष्ण अमावस्या संवत 2000 में बना था। तब कलयुग समाप्त होकर सतयुग का प्रारंभ हो गया था।
आरभ्य भवतो जन्म यावन्नन्दाभिषेचनम् ।
एतद् वर्षसहस्रं तु शतं पञ्चदशोत्तरम् ॥ -भागवत पुराण 12.2.26
तब आपके (राजा परीक्षित) जन्म से लेकर राजा नन्द के राज्याभिषेक तक 1,150 वर्ष बीत जाएंगे।
यदा देवर्षय: सप्त मघासु विचरन्ति हि ।
तदा प्रवृत्तस्तु कलिर्द्वादशाब्दशतात्मक: ॥-भागवत पुराण 12.2.31
जब सप्तऋषियों का नक्षत्र चंद्र भवन माघ से होकर गुजरता है, तो कलियुग का आरंभ होता है। इसमें देवताओं के बारह सौ वर्ष सम्मिलित हैं।
यदा मघाभ्यो यास्यन्ति पूर्वाषाढां महर्षय: ।
तदा नन्दात् प्रभृत्येष कलिर्वृद्धिं गमिष्यति ॥ ३२ ॥- भागवत पुराण 12.2.32
जब सप्तर्षि नक्षत्र के महान ऋषि मघा से पूर्वाषाढ़ा तक जाएंगे, तो काली के पास राजा नंद और उनके राजवंश से शुरू होकर अपनी पूरी ताकत होगी।
यस्मिन् कृष्णो दिवं यातस्तस्मिन्नेव तदाहनि।
प्रतिपन्नं कलियुगमिति प्राहु: पुराविद: ॥- भागवत पुराण 12.2.33
जो लोग वैज्ञानिक रूप से अतीत को समझते हैं, वे दावा करते हैं कि जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण आध्यात्मिक दुनिया के लिए प्रस्थान कर गए, उसी दिन कलियुग का प्रभाव शुरू हुआ।
दिव्याब्दानां सहस्रान्ते चतुर्थे तु पुन: कृतम्।
भविष्यति तदा नृणां मन आत्मप्रकाशकम् ॥- भागवत पुराण 12.2.34
कलियुग के एक हजार दिव्य वर्षों के बाद, सत्ययुग फिर से प्रकट होगा। उस समय सभी मनुष्यों का मन आत्म-तेजस्वी हो जाएगा।