बारहमासी गीत हमारी लोक परंपरा का गौरवमयी हिस्सा है... ये वो गीत हैं जो हमें जीवन जीने का मधुर संदेश देते हैं.... बारह मासी गीतों में प्रत्येक मास का वर्णन होता है और वह भी क्रमसे... हर माह की रूपरेखा संक्षेप में दी जाती है...विरहिणी अपने प्रवासी प्रियतम को याद करती है और इन गीतों को गांवों में खेती करते समय, तीज त्योहार मनाते समय और घर के कामों को सामूहिक रूप से करते समय गुनगुनाया जाता है.... खासकर सावन और आषाढ़ में इन गीतों को झूला झूलते हुए गाते हैं... प्रस्तुत है एक लोकप्रिय बारहमासी आपके लिए ...
सखि लागो असाड़े मास,प्रभू वन चाल्या रे
चाल्या चाल्या रे द्वारकानाथ हरि मंदिर सूनो रे
म्हारा प्रभू ने राख्या बिल्माय कामणी करिया रे
सखि एक सो दासी ने साथें दूजो कुब्जा रे
सखि लागो सावण मास बिजेला चमके रे
झीनी झीनी पर रही बूंद सालूड़ा भींजे रे
सखि लागो भादौ मास,घटा घनघोर छाई रे
छई रे छई रे दुधारी रात हरि मंदिर सूनो रे
सखि लागो कुंवारे मास,दसेरो आयो रे
म्हारा प्रभूजी बिना यों कुण दसेरो मनावे रे
सखि लागो कार्तिक मास,दिवाली आई रे
सखि घरे घरे गोअवर्धन पुजाय हरि मंदिर सूनो रे
सखि लागो अगहन को मास सियालो(जाड़ा) आयो रे
म्हारा प्रभूजी बिना यो कुण सोड़ पधारे रे
सखि लागो पौष को मास, सूरजदेव झांकिया रे
म्हारा किसनजी बिना कौन अंगिया सिवाड़े रे
सखि लागोम्हावज मास,बसंत रितु आई रे
म्हारा प्रभूजी बिना यो कुण बसंत रमावे रे
सखि लगो फागुण को मास, होली आई रे
सखि घर घर फाग खेलाय हरि मंदिर सूनो रे
सहि लागो चैत को मास,गणगौर बाई आई रे
सखि घर घर गणगौर पुजाय,हरि मंदिर सूनो रे
सखि लागो वैशाख मास उणालो(गरमी) आयो रे
घर घर पंखा डोलाय,प्रभूमंदिर सूनो रे
सखि लागो जेठ को मास,,प्रभूजी घर आया रे
आयो आयो रे खुसी को जोस, अबे कौन रोके रे
आयो आयोरे जवानी रो जोस, बंधन सब टूटे रे