चिंता हो रही हो तो क्या करें? गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
डर डर के जीने में कोई रस नहीं है, आनंद नहीं है
जब जीवन में कोई समस्या होती है उस वक्त आप आनंदित तो नहीं रह सकते, उस समय चिंता होना स्वाभाविक है। यदि आपके कोई नज़दीक के रिश्तेदार अस्पताल में हैं तो आप यह नहीं कह सकते कि 'मैं आनंदित हूं।' मगर हमारा दृष्टिकोण इतना विशाल होना चाहिए कि हमें यह समझ में आ जाए कि जो हुआ है उसको संभालना है क्योंकि उस समय बैठकर रोने, गुस्सा करने और चीखने-चिल्लाने से कुछ नहीं होने वाला। आपका मन इतना मज़बूत होना चाहिए कि आप हर परिस्थिति को झेलने के लिए तैयार रहें।
जब परेशानियों के वक्त मन स्थिरता में रहे, समता में रहे; तभी हमें सूझेगा कि आगे क्या करना चाहिए। लेकिन अगर ऐसे समय में आप खुद ही बौखला गए तो फिर आप न ही अपना कोई काम कर पाएंगे और न ही किसी और के काम आ पाएंगे। इसलिए यह बहुत आवश्यक है जब कोई समस्या हो तो चिंता न करें बल्कि चिंतन करें।
डर-डर के जीने में कोई रस नहीं है, आनंद नहीं है। हिम्मत रखना चाहिए और आप वह हिम्मत तभी जुटा पाएंगे जब आपको यह निश्चय हो कि 'मैं ईश्वर का प्रिय हूं।' आप जितने आपने माता-पिता के प्रिय हैं; ईश्वर को आप उससे सौ गुना अधिक प्रिय हैं।
गुरु आपको यही बताते हैं कि आप ईश्वर के हैं; ईश्वर कोई गैर नहीं है। यही मंत्र है: सोऽहम, जो 'वह' है, सो 'मैं' हूं! यही अद्वैत ज्ञान है। भारत ने दुनिया को यह सर्वश्रेष्ठ ज्ञान दिया है। मगर हम उसको घर की मुर्गी दाल बराबर मानकर बैठे हुए हैं। हम ज्ञान सुन लेते हैं, किताब पढ़ लेते हैं मगर वह अनुभव में नहीं उतरता इसलिए जीवन में बदलाव नहीं आता।
तो भय से दूर होना हो, चिंता से मुक्ति पाना हो और अपने काम में सफलता पानी हो तो अपने भीतर यह विश्वास करना ही पड़ेगा कि 'हम ईश्वर के हैं।'
जब आप ऐसा करते हैं तो नई दृष्टि खुलने लगती है, चिंतन जागता है और चिंता दूर होने लगती है। हमारा मस्तिष्क एक समय में एक ही काम कर सकता है: चिंता या चिंतन। अक्सर लोग चिंता में ही डूबे रहते हैं; चिंतन के लिए किसी के पास समय नहीं होता है। जिस तरह से जो लोग चिंता में डूबे रहते हैं, वे औरों को भी चिंता में खींचते हैं उसी तरह से जो चिंतन में रहते हैं, उनको भी दूसरे लोगों को चिंतन में खींचना चाहिए। सबको चिंतन में खींचें और उनसे कहें कि 'देखते-देखते ज़िंदगी निकल जाती है। समय बीता जा रहा है, जागें! मस्त हो जाएं! किसलिए चिंता कर रहे हैं; जागिये! आप मर ही जाने वाले हैं।' अपनी मृत्यु को याद करें और इस बात के प्रति सजग हो जाएं कि आप यहां शाश्वत नहीं रहने वाले हैं।
अगर आप इंसान हैं तो आपको चिंता होगी ही। केवल गधे और कुत्ते चिंता नहीं करते। अगर आप चिंता नहीं करते, तो आप इंसान नहीं हैं। लेकिन आपकी चिंता किसी छोटी-मोटी बात पर नहीं होनी चाहिए। अगर चिंता करनी ही है तो बड़े विषयों पर चिंता करें, आपको समाज के लिए चिंता करनी चाहिए, देश की चिंता करनी चाहिए; इस बात की चिंता करनी चाहिए कि अगले 200 सालों में देश की स्थिति कैसी होगी?
आपकी चिंता भी बड़ी होनी चाहिए क्योंकि छोटी चीज़ों में कोई आनंद नहीं है। संस्कृत में एक कहावत है: 'यो वै भूमा तत् सुखं नाल्पे सुखमस्ति भूमैव सुखम्।' माने छोटी चीज़ों में सुख नहीं है। जब भी आप कुछ बड़ा करते हो, उसमें आपको आनंद मिलता है। इसलिए अगर आप बड़ी चिंता करते हैं तो यह आपको कुछ हद तक आराम देती है।