ये तो सभी जानते हैं कि वेद ही हिन्दुओं के धर्मग्रंथ हैं। वेद 4 हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। उक्त चारों वेदों के ज्ञान को व्यवस्थित या विषयबद्ध कर ऋषियों ने लोगों को समझाया। जिस ऋषि ने वेदों के ज्ञान को अपने तरीके से लिखा उसके नाम पर एक ग्रंथ बन गया जिसे स्मृति ग्रंथ कहते हैं। सबसे पहले राजा मनु ने वेदों के ज्ञान को एक व्यवस्था में ढाला था इसलिए मनुस्मृति की चर्चा ज्यादा होती है।
वेदों के बाद स्मृतियों को हिन्दुओं का प्रमुख ग्रंथ माना गया है, लेकिन इसे धर्मग्रंथ का दर्जा नहीं दिया गया है। धर्मग्रंथ तो वेद ही है। वेदों का सार उपनिषद और उपदिषदों का सार गीता है। स्मृतियों को श्रुति के अंतर्गत नहीं माना जाता।
स्मृतियों को प्रमुख ऋषियों और राजा मनु ने लिखा है। मुख्यत: स्मृतियां 18 मानी गई हैं। मनुस्मृति में वेदसम्मत वाणी का खुलासा किया गया है। वेद को कोई अच्छे से समझता या समझाता है, तो वे हैं स्मृतियां हालांकि स्मृतियों में वेद से इतन भी कुछ बातें लिखी है तो वेदस्मत नहीं मानी जाती। स्मृतियों में मनस्मृति पुस्तक महाभारत और रामायण से भी प्राचीन है।
प्रमुख स्मृति ग्रंथ : मनु, याज्ञवल्क्य, पराशर, आपस्तंब, नारद, अत्रि, विष्णु, हरीत, औषनासी, अंगिरा, उशनस, यम, कात्यायन, उमव्रत, बृहस्पति, व्यास, दक्ष, गौतम, वशिष्ट, संवर्त, शंख, गार्गेय, देवल, शरतातय और शातातप स्मृति।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्राचीन ग्रंथ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में मूल रूप में हस्तांतरित होते रहें, प्राचीन भारतीय ऋषियों ने बहुत मेहनत के बाद वेदपाठ की कुछ विधियां विकसित की थीं। उनमें से 11 प्रमुख थीं। उनमें से भी अब प्रमुख रूप से 3 विधियों को महत्वपूर्ण माना जाता है। ये विधियां हैं- जटा-पाठ, ध्वजा-पाठ और घन-पाठ।
संकलन : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'