1 अक्टूबर अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस : जिन्दगी की सांझ में बुजुर्गों का सहारा बनें

फ़िरदौस ख़ान
मां-बाप बड़े लाड़-प्यार से बच्चों की परवरिश करते हैं। उन्हें अच्छे से अच्छा खिलाने-पिलाने की कोशिश करते हैं। खुद पुराने कपड़े बरसों तक पहन लेते हैं, लेकिन अपने बच्चों को नए-नए कपड़े पहनाते हैं। खुद मेहनत-मजदूरी करके अपने बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए उन्हें अच्छी तालीम दिलाते हैं, उन्हें विदेश तक भेजते हैं। बेटियां शादी के बाद अपनी ससुराल चली जाती हैं और बेटे नौकरी की तलाश में बड़े शहरों में चले जाते हैं या अपनी पत्नी के साथ अलग घर बसा लेते हैं। 
 
जो बेटे मां-बाप के साथ रहते हैं, वह भी उन्हें नजर अंदाज कर अपने बीवी और बच्चों में मस्त रहते हैं। कितनी अजीब और बुरी बात है कि जो बच्चे अपने मां-बाप की अंगुली पकड़ कर चलना सीखते हैं, मां की गोद में और बाप के कंधों पर बैठकर दुनिया देखते हैं, वही बच्चे बड़े होकर अपने मां-बाप को बोझ समझने लगते हैं। जिस तरह पुराना सामान घर के स्टोर में पहुंचा दिया जाता है या कबाड़ी को बेच दिया जाता है, उसी तरह कुछ बच्चे अपने मां-बाप को घर के किसी सूने कोने में डाल देते हैं या फिर उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं। अपनी जिन्दगी की सांझ में बुजुर्ग उस वक्त अकेले रह जाते हैं, जब उन्हें अपने बच्चों की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।
 
कुछ लोग अपने बुजुर्गों के साथ इतनी दरिंदगी बरतते हैं कि देखने-सुनने वाले की रूह तक कांप जाए। साल 2017 का वाकिया है। 20 साल से अमेरिका में बसा बेटा जब घर लौटा, तो उसे घर का दरवाजा बंद मिला। दरवाजे पर बार-बार दस्तक देने पर जब कोई जवाब नहीं मिला, तो दरवाजे को तोड़ा गया। बेटे ने देखा कि उसकी मां का कंकाल एक सोफे पर पड़ा हुआ है। मौत से पहले वृद्धा सोफे पर बैठी होगी और बैठे-बैठे ही उसकी मौत हो गई। 
 
पुलिस के मुताबिक कई माह पहले ही महिला की मौत हो चुकी थी। शरीर का मांस तक नष्ट हो चुका था। बस हड्डियों का ढांचा ही बाकी था। इस मौत की भनक पड़ोसियों तक को नहीं लग पाई। गौरतलब है कि 63 वर्षीय आशा साहनी मुंबई के ओशिवारा इलाके के एक फ्लैट में अकेली रहती थीं। उनके पति का निधन साल 2013 में हो गया था। उनके बेटे ऋतुराज के मुताबिक अप्रैल 2016 में आखिरी बार उसकी अपनी मां से फोन पर बात हुई थी। उस वक्त उसकी मां ने कहा था कि वह अब अकेले रहते हुए ऊब गई है। वह उन्हें अपने साथ ले जाए या फिर किसी वृद्धाश्रम में भेज दे। अफसोस की बात है कि जिस बेटे को मां ने जन्म दिया, पाल-पोसकर बड़ा किया, उसी ने मां की यह दुर्दशा की। 
 
यह पहला मामला नहीं है, जब एक बेटे ने अपनी मां के साथ इतना अमानवीय बर्ताव किया है। ऐसे बहुत से मामले आए दिन देखने-सुनने को मिलते रहते हैं। बहुत से लोग अपने मां-बाप को अकेले नौकरों के आसरे छोड़ देते हैं। ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जब लुटेरों ने बुजुर्गों का कत्ल कर उनके घर में लूटपाट की। कई मामलों में घरेलू नौकर ही कत्ल और लूटपाट में शामिल पाए गए। बुजुर्गों को वृद्धाश्रम में छोड़ कर उनकी कोई खैर-खबर न लेने वाले बेटों की भी कोई कमी नहीं है।
 
काबिले-गौर है कि बुजुर्गों के रहने के मामले में दुनियाभर में भारत की हालत बहुत खराब है। ग्लोबल एजवॉच इंडेक्स के मुताबिक स्विट्जरलैंड बुजुर्गों के लिहाज से सबसे अच्छा देश है। इसके बाद नार्वे, स्वीडन, जर्मनी, कनाडा, नीदरलैंड, आइसलैंड और जापान का नंबर आता है। साल 2015 में जारी कुल 96 देशों की इस फेहरिस्त में अमेरिका दसवें पायदान पर है, जबकि भारत 71वें स्थान पर है। दुनियाभर में खासकर विकासशील देशों में बुजुर्गों की तादाद लगातार बढ़ रही है। इसी के साथ उनके साथ बुरे बर्ताव के मामलों में भी इजाफा हो रहा है। 
 
संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में तकरीबन चार से छह फीसद बुजुर्गों के साथ उनके अपने ही घर में बुरा बर्ताव किया जाता है। तकरीबन 13 फीसद बुजुर्गों को बुनियादी जरूरतों की चीजें और सुविधाएं मुहैया नहीं कराई जातीं। इसके अलावा नौ फीसद बुजुर्गों को शारीरिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है और 13 फीसद बुजुर्ग मानसिक प्रताड़ना के शिकार हैं। दुनियाभर में साल 2010 में 7.7 फीसद लोग 65 साल से ज्यादा उम्र के थे, जो साल 2050 में 15.6 हो जाएंगे। भारत में 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों की संख्या 12.5 फीसद थी, जो साल 2030 तक बढ़कर 20 फीसद हो जाएगी।
 
नेशनल स्टैटिक्स ऑफिस के एक अध्ययन के मुताबिक देश में बुजुर्गों की आबादी साल 1961 से लगातार बढ़ रही है। साल 2021 में 13.8 करोड़ हो गई, जिनमें 6.7 करोड़ पुरुष और 7.1 करोड़ महिलाएं शामिल हैं। साल 2011 में बुजुर्गों की आबादी 10.38 करोड़ थी, जिसमें 5.28 करोड़ पुरुष और 5.11 करोड़ महिलाएं शामिल हैं। साल 2031 में बुजुर्गों की तादाद 19.38 करोड़ तक होने का अनुमान है। इसमें 9.29 करोड़ बुजुर्ग पुरुष और 10.09 करोड़ बुजुर्ग महिलाएं शमिल होंगी। 
 
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देश की आम आबादी साल 2011 से 2021 के बीच 12.4 फीसद बढ़ी है, जबकि इस दौरान बुजुर्गों की तादाद 35.8 फीसद बढ़ी। साल 2021 से 2031 के बीच देश की आम आबादी में 8.4 फीसद और बुजुर्गों की आबादी में 40.5 फीसद बढ़ने का अनुमान है। अगर राज्यों की बात करें, तो देश के 21 प्रमुख राज्यों में केरल की कुल आबादी में बुजुर्गों की तादाद सबसे ज्यादा 16.5 फीसद है, जबकि तमिलनाडु में यह दर 13.6 फीसद, हिमाचल प्रदेश में 13.1 फीसद, पंजाब में 12.6 फीसद और आंध्र प्रदेश में 12.4 फीसद, असम में 8.2 फीसद, उत्तर प्रदेश में 8.1 फीसद और बिहार में सबसे कम 7.7 फीसद है।
 
भारत की तरह विदेशों में भी बुजुर्गों के उत्पीड़न के मामले कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं। आयरलैंड में यह दर 2 फीसद, अमेरिका में 10 फीसद, भारत में 14 फीसद, अफ्रीका में 30 फीसद, चीन में 36 फीसद और क्रोशिया में 61 फीसद बुजुर्ग उत्पीड़न का शिकार है। भारत में भी बुजुर्गों के उत्पीड़न के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। साल 2012 में हुए एक सर्वे के मुताबिक राजस्थान में 1.67 फीसद, तमिलनाडु में 27.56 फीसद, दिल्ली में 29.82 फीसद, महाराष्ट्र में 30 फीसद, पश्चिम बंगाल में 40.93 फीसद, आंध्र प्रदेश में 42.86 फीसद, गुजरात में 43 फीसद, उत्तर प्रदेश में 52 फीसद, असम में 60 फीसद और मध्य प्रदेश में 77.12 फीसद बुजुर्गों के साथ बुरा बर्ताव किया जाता है। 
 
हेल्प एज इंडिया द्वारा कराए गए एक सर्वे के मुताबिक देश के 19 शहरों में से बेंगलुरु, हैदराबाद, भुवनेश्वर, मुंबई और चेन्नई में बुजुर्गों की हालत ज्यादा चिंताजनक है। तकरीबन 44 फीसद बुजुर्गों का कहना था कि सार्वजनिक स्थानों पर उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जाता है। 53 फीसद बुजुर्गों का कहना है कि समाज में उनके साथ भेदभाव किया जाता है। अस्पताल, बस अड्डों, बसों, बिल भरने के दौरान और बाजार में उनके साथ दुर्व्यवहार होता है। 64 फीसद बुजुर्गों का कहना है कि बढ़ती उम्र या कमजोर होने की वजह से लोग उनके साथ रूखा बर्ताव करते हैं। 12 फीसद बुजुर्गों को उस वक्त लोगों की कड़वी प्रतिक्रिया झेलनी पड़ती है, जब वे लाइन में पहले खड़े होकर अपने बिल भर रहे होते हैं।
 
हेल्प एज इंडिया के सर्वे ‘भारतीय समाज अपने बुजुर्गों के साथ कैसे व्यवहार करता है’ की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में कर्मचारियों का व्यवहार बुजुर्गों के साथ सबसे बुरा होता है। यहां 26 फीसद बुजुर्गों को कर्माचारियों के बुरे बर्ताव का सामना करना पड़ा है। इसके बाद 22 फीसद के साथ बेंगलुरु का नंबर आता है, जहां बुजुर्गों के साथ बुरा बर्ताव किया जाता है। बुजुर्ग महिलाओं की हालत और भी ज्यादा खराब है। उन्हें घर में अपनी बहुओं से प्रताड़ित होना पड़ता है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की ‘केयरिंग एल्डर्स’ रिपोर्ट के मुताबिक पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक संकट का सामना ज्यादा करना पड़ता है।
 
कुछ अरसे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक रखरखाव और कल्याण अधिनियम-2007 के प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा था कि अगर बेटा या बेटी अपने अभिभावक को प्रताड़ित करते हुए पाए जाते हैं, तो अभिभावक उन्हें अपनी संपत्ति से बेदखल कर उन्हें ‘अपने’ घर से निकाल सकते हैं। गौरतलब है कि चीन में एक कानून के तहत वयस्क बच्चों का नियमित रूप से अपने बुजुर्ग मां-बाप से मिलना जरूरी है। अगर बच्चे ऐसा नहीं करते हैं, तो मां-बाप उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई के लिए मुकदमा कर सकते हैं।
 
आधुनिकता के इस दौड़ में लोग पद, पैसे और प्रसिद्धि के पीछे भाग रहे हैं। इस दौड़ में रिश्ते-नाते बहुत पीछे छूटते जा रहे हैं। लोग सिर्फ उसी से मिलना-जुलना पसंद करते हैं, जिससे उन्हें किसी भी तरह का कोई फायदा मिलने वाला होता है। कहते हैं कि रिश्तेदार बाद में आते हैं, पहले पड़ोसी ही काम आते हैं। लेकिन पॉश इलाकों में लोग पड़ोसियों से बात करना तक पसंद नहीं करते। आशा साहनी अगर पॉश इलाके में न होकर किसी आम से मुहल्ले में रह रही होतीं, तो उनकी यह दुर्दशा शायद नहीं होती। आम मुहल्ले में लोग एक-दूसरे की खबर रखते हैं। भारत तो वह देश है, जहां पत्थर को भी तिलक लगा दिया जाए, तो लोग उसका अभिनंदन करने लगते हैं, उसे पूजने लगते हैं। ऐसे महान देश में बुजुर्गों के साथ उनके अपने ही बच्चों द्वारा दुर्व्यवहार के बढ़ते मामले बेहद चिंताजनक हैं। 
 
हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ ने दुनियाभर में बुजुर्गों के प्रति हो रहे दुर्व्यवहार को खत्म करने और लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए 14 दिसंबर 1990 को फैसला किया था कि हर साल 1 अक्टूबर को 'अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस' के रूप में मनाया जाएगा। इस तरह 1 अक्टूबर 1991 को पहली बार 'अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस' मनाया गया और तब से यह सिलसिला बदस्तूर जारी है।
 
बुजुर्ग हमारे लिए सम्मानीय हैं, आदरणीय हैं। हमें उनका उतना ही ख्याल रखना चाहिए, जितना उन्होंने बचपन में हमारा ख्याल रखा है, या यह कहना बेहतर होगा कि जितना उन्होंने हमेशा हमारा ख्याल रखा है, हमें भी उनका उतना ही या उससे बहुत ज्यादा उनका ख्याल रखना है। यह उनका हक भी है।          
 
बहरहाल, बच्चों को नैतिक शिक्षा दिए जाने की बहुत जरूरत है। लोगों को अपने मां-बाप के साथ अच्छा बर्ताव करना चाहिए और अपने बच्चों को भी ऐसी परवरिश देनी चाहिए कि वे अपने बुजुर्गों का सम्मान करें, उनका ख्याल रखें। हमारे बुजुर्ग हमारी विरासत हैं, जिनकी हिफाजत करना हमारी जिम्मेदारी है। हमें बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।    
 
(लेखिका स्टार न्यूज एजेंसी में संपादक हैं)

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