शक्यो वारयितुं जलेन हुतभुक्छत्रेण सूर्यातपो नागेन्द्रॊ निशिताङ्कुशेन समदो दण्डेन गोगर्दभौ।
व्याधिर्भेषजसङ्ग्रहैश्च विविधैर्मन्त्रप्रयोगैर्विषं सर्वस्यौषधमस्ति शास्त्रविहितं मूर्खस्य नास्त्यौषधम् ।।
(जल से आग बुझाई जा सकती है, सूर्य के ताप को छाते से रोका जा सकता है, मतवाले हाथी को तीखे अंकुश से वश में किया जा सकता है, औषधियों से रोग भी शांत हो सकता है, विष को भी अनेक मंत्रों के प्रयोगों से शांत कर सकते हैं - इस तरह सब उपद्रवियों की औषधि शास्त्र में है, परन्तु मूर्ख की कोई औषधि नहीं है।)
यह शब्दशः उन लोगों पर लागू होता है जो अपनी जिंदगी का अर्ध शतक से ऊपर जी चुके पर आज भी अपनी नाजायज, घटिया और बकवास हरकतों से बाज नहीं आते। आपके परिवार, जिन्दगी में भी ऐसे लोगों का (अ)शुभागमन तो हुआ ही होगा। पाला तो पड़ा ही होगा कहीं न कहीं,कभी न कभी या ज्यादा ही बदकिस्मती हो तो रोजाना।
पता नहीं क्यों उन्हें हमेशा लगता है हम सर्वश्रेष्ठ हैं, बाकी सब निकृष्ट। वे ही सबसे ज्ञानी हैं, बाकी सब मूर्ख। वे लोग जब-तब अपने पीहर फोन करके अपने भाई-भाभियों के प्रति अपनी मां के मन में जहर भरती रहीं। अब मां-बाप के स्वर्ग सिधार जाने के बाद वे भाभियों को कोसतीं हैं कि हमारे मां-बाप का किसी ने ध्यान नहीं रखा। वे भूल जातीं हैं कि उनकी भाभियों के पास भी बुद्धि है। वे जानती समझती तो सब हैं पर कहते हैं न कि बेवकूफों के मुंह लगना खुद को नीचा गिराना है। तभी तो दुनिया भर में पागलखाने हैं पर कहीं भी “बेवकूफ या मूर्ख खाने” नहीं हैं। क्योंकि इनका इलाज ही संभव नहीं।चाहे मेडिकल साइंस कितनी भी तरक्की कर ले।
असल में वे नितांत अकेली हो गईं है।पति ऑफिस और बेटे बहू बाहर।अपने कुचरांदे पंचायती स्वभाव और लगाई-बुझाई डॉट कॉम फोनों से ही वे समय काटती हैं।इन लक्षणों से ही उनकी अपनी बहुओं से भी नहीं बनती, पर भाभियों की बहुओं पर पूरी निगरानी है।ये लोग वही हैं जो भाभियों के गाऊन पहनने पर उनकी बॉडी शेमिंग कर भद्दे कमेन्ट किया करतीं थी, आज उनकी बहुएं छोटी-छोटी नेकर, शार्ट, होल्टर, बेतुके वेस्टर्न, बिना दुपट्टे के जालीदार कपड़े पहने, फूहड़ता से बड़े-छोटों(उनके सहित) के लिहाज बिना बड़ी बेअदबी से सारे ज़माने में उनका नाम रोशन कर रहीं हैं। सभी के घरों से रोज की खबरों का संकलन कर उनको नमक मिर्च के साथ बता कर खुद का मनोरंजन इनका शगल होता है।
रोज पीहर फोन लगाना, मां से भाभियों के कोडवर्ड में रखे नामों से निंदा करने का नशा इन्हें आनंद देता। काली, खेबड़ी, काणी, हडिम्बा, उच्छल घोड़ी, डाकन,पग्गल, गेलिबावली ऐसे और कई नामों से वे अपनी उन भाभियों को संबोधित करतीं जिन्होंने हमेशा अपने सास-ससुर को सम्हाला। सबने अपनी हैसियातानुसार मिलजुल कर सेवा करी। पर ये कभी अपने गिरेबान में नहीं झांक सकीं। न तो मां-बाप की सेवा में हाथ बंटाया। सास-ससुर की सेवा को अपनी देवरानियों के मत्थेमार हमेशा मांदी बेचारी बीमार होने को भुनाया। जैसे ही कहीं भी जिम्मेदारी उठाने का मौका आया ये वहां से खिसक लेती। पर दूसरों को निर्देशन देने में आगे आगे रहतीं। इनका पूरा ध्यान और जीवन इन्होने पीहर की गतिविधियों पर केन्द्रित कर लिया। होशियारी इतनी भरी होती है इनमें की यदि ज्यादा भाई-बहन हैं तो सभी में फूट डाल के रखो। जिससे जो काम निकले निकलवा लो। फिर उसी को पिछवाड़े पे जोरदार लात दो और बेइज्जती करो वो अलग से।
चालक लोमड़ियों की तरह अपनी मां से मांग, भाइयों की अनुपस्थिति में घर का पुश्तैनी सामान उठा ले जाओ, भाईयों-भाभियों पर चोरी का नाम लगा दो। खुद के ससुराल में मालूम ही न पड़ने दो कि ये दोगले चरित्र क्या गुल खिला रहे हैं। हमेशा भाभियों का मजाक उड़ाने और उनकी निंदा-बेइज्जती करने वालियों को ये नहीं पता कि ऐसा करके वे खुद को कितनी नक्कारा सिद्ध कर चुकी हैं। दूसरों के सुख में आग लगाने वाली ये औरतें हमेशा अपने भाइयों को बीबियों के साथ खुश देख जलतीं भुनतीं रहतीं और खुद ससुराल से भाग-भाग कर पीहर पड़ी रहतीं, और नजर रखतीं। जैसे ही ससुराल में देवरानी का आगमन हुआ कि तुरंत पतियों को ट्रांसफर दिला कर शहर से बाहर भाग जातीं और जो जातीं तो कभी फिर संयुक्त नहीं रहतीं। अलगाव का नारा सदा बुलंद रखतीं।
और बेशर्मी इतनी भरी है इनकी रगों में कि आज भी भाभियों को आगे रह कर फोन करके उनकी ही निंदा उनके मुंह पर कर रहीं हैं जबकि खुद का कभी भी अपने पीहर-ससुराल में कोई निष्ठा, सेवा, समर्पण, त्याग, व्यवहार आदि जैसी कर्तव्य परायणता जैसी किसी बात से कोई दूर दूर तक का कभी नाता नहीं रहा।
इनका खून सफेद हो चुका रहता है। खुद को देवीस्वरूपा समझने वाली ये मक्कार औरतें खुद के घरों में तो राजनीति करती ही हैं, दूसरों के घरों में भी अपने पंजे गड़ाने की घात में रहतीं हैं। पता नहीं इतने घंटे फोन पर केवल और केवल निंदा रसपान करने वालियों को शायद नशेड़ियों जैसी लत होती होगी। इन्हें रोज का डोज होना।किसी भी कीमत पर। यदि ये नहीं तो परिवार की बहुओं में किसी का खूब मान तो किसी का खूब अपमान करो ताकि आपस में तुलना शुरू हो जाए।
किसी भाई के घर कार्यक्रमों में अलग, दूसरे के यहां अलग तरीके से व्यवहारिक रहो। खूब झूठी-सच्ची करो...बस डोज कम्प्लीट...हां अब समझदारी आपको दिखानी है।उनके तीर कैसे तोड़े जाएं? जहर कैसे बेअसर किया जाए? इन्हें समय पर ही सबक दे दिया जाए।हर बीमारी का वेक्सीन होता है जो बीमारी को नहीं खुद को लेना होता है। बस ये भी ऐसा ही मामला है...अपना अपेक्षा रहित पर उपेक्षा के करारे तगड़े जवाब के साथ वेक्सिन डोज अपने साथ ले कर चलें, जरुरत पड़े तो बूस्टर भी और अपने आत्मसम्मान की रक्षा की दीवार को मजबूत बना डालिए। खुद के सुकून के लिए इतना तो कर ही सकते हैं न?