इंदौर। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और इंदौर प्रेस क्लब के संयुक्त तत्वावधान में ‘पत्रकारिता का नया दौर और चुनौतियां’ विषय पर होटल फार्च्यून लैंडमार्क में आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद में वक्ताओं ने कहा कि वक्त के साथ पत्रकारिता का दौर भी बदल रहा है। इस नए दौर में साथ चलने के लिए पत्रकार और पाठक दोनों को बदलना होगा।
इस अवसर पर वेबदुनिया के सीईओ विनय छजलानी ने कहा कि पत्रकारिता में ई-कम्यूनिकेशन का दौर शुरू हो चुका है। अब वेबसाइट, ई-मेल, यूट्यूब, सोशल साइट, ट्विटर, ब्लॉग जैसे ई-कम्युनिकेशन पर चर्चा अधिक होती है। नई पीढ़ी इन चीजों को तेजी से अपना रही है। ई-जर्नलिज्म को अब हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। समय के साथ इसका महत्व बढ़ता जा रहा है। पत्रकार अनुराग बत्रा ने कहा कि आज की पत्रकारिता में बहुत सारे बदलाव आ चुके हैं। आज डिजीटल का जोर है। आने वाले दिनों में हम ई-पत्रकारिता को अपनाएंगे। लोग अखबार इंटरनेट और मोबाइल पर पढ़ेंगे। सोशल साइट का प्रयोग अधिक बढ़ेगा। वर्तमान में 2.7 बिलियन वेबपेज रोजाना सर्च हो रहे हैं।
दूरदर्शन के महानिदेशक त्रिपुरारि शरण ने कहा कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में फर्क है। प्रिंट वाले जो लिखते हैं वे बहुत सोच-समझकर अपनी बात कहते हैं, लेकिन जो बोलते हैं जरूरी नहीं कि वह पहले उस पर सोचते हैं। आज पत्रकारिता में विश्लेषण करने की क्षमता कम होती जा रही है।
टीवी पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने कहा कि आम जनता का स्वभाव बन गया कि वह टीवी चैनल को देखती है और साथ में उसे कोसती भी है क्या इसे हम टीवी चैनलों की विश्वसनीयता पर संकट कहें? टीवी चैनलों के आने के बाद जो कुछ गलत हो रहा था उसे लोगों के बीच में लाने का काम शुरू हुआ। यह सही है कि जिनके पास कालाधन है, बिल्डर हैं, रीयल एस्टेट से जुड़े हैं और राजनीति में रसूखदार है उन लोगों ने टीवी चैनल शुरू किए, लेकिन अधिकांश आज घाटे में हैं।
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आशुतोष ने कहा कि आज नया भारत बन रहा है या गढ़ा जा रहा है, पर हम उसे समझ नहीं रहे हैं। हम नए बिन्दुओं की तलाश नहीं करना चाहते। नई पीढ़ी किस्मत वाली है, जिसने बहुत बड़े बदलाव देखे हैं। आज हम वायु की गति से आगे बढ़ रहे हैं। देश और काल दोनों ही बदल गए हैं। टीवी पत्रकारिता ने बहुत बड़ी क्रांति ला दी है। इसने अभिजात्य संस्कृति को ध्वस्त किया है। सामंतवादी सोच को बदला है और जमीन तक लोकतंत्र को फैलाया है।
वरिष्ठ पत्रकार सीमा मुस्तफा ने कहा कि जर्नलिज्म में कमिटमेंट समाप्त होता जा रहा है। अखबारों में संपादकों की पोस्ट खत्म हो गई है, अब मैनेजर और प्रोपराइटर का जमाना है। श्रवण गर्ग ने कहा कि पत्रकारिता में विश्वसनीयता आज सबसे बड़ी चुनौती है। अजय उपाध्याय ने कहा कि लोकतंत्र में प्रेस एक मजबूत स्तंभ है। पत्रकारिता टीवी की हो या प्रिंट की, दोनों ही ताकतवर हैं, लेकिन लिखे शब्दों में अधिक ताकत होती है।
प्रवीण खारीवाल ने कहा कि भूमंडलीकरण और उदारवादी अर्थव्यवस्था का मौजूदा दौर जबसे आरंभ हुआ है तब से हमारी पत्रकारिता के चाल, चरित्र और चेहरे में भी काफी बदलाव आया है। कार्यक्रम का संचालन महासचिव अरविंद तिवारी ने किया, जबकि एडिटर्स गिल्ड के कोषाध्यक्ष सुरेश बाफना ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार अभय छजलानी, देअविवि के कुलपति डॉ. डीपी सिंह, संभागायुक्त संजय दुबे, कलेक्टर आकाश त्रिपाठी, डीआईजी राकेश गुप्ता, पूर्व कुलपति डॉ. भरत छापरवाल, उद्योगपति रमेश बाहेती, सुरेंद्र संघवी, विधायक अश्विन जोशी, खनिज विकास निगम के उपाध्यक्ष गोविंद मालू समेत अनेक गणमान्य व प्रबुद्धजन उपस्थित थे।