जम्मू। जम्मू के व्यापारिक वर्ग के विरोध के बावजूद 150 साल पुरानी जिस 'दरबार मूव' की परंपरा को आधिकरिक तौर पर पिछले साल से 'बंद' किया जा चुका है, उसके प्रति सच्चाई यह है कि यह गैरसरकारी तौर पर लगभग 500 कर्मियों के साथ फिलहाल जारी रहेगा। यह 500 के करीब कर्मी उपराज्यपाल, मुख्य सचिव और वित्त विभाग के वित्त आयुक्त, सामान्य प्रशासनिक विभाग के आयुक्त सचिव के कार्यालयों में लिप्त कर्मी हैं, जो दोनों राजधानियों में आते-जाते रहेंगे।
इसके लिए दरबार मूव की प्रक्रिया बंद होने के बाद श्रीनगर सचिवालय में कामकाज की व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए जम्मू सचिवालय के 28 विभागों के 99 अधिकारी, कर्मचारी कश्मीर जाएंगे। ये कर्मचारी अगले कुछ दिनों में श्रीनगर सचिवालय से काम करना शुरू कर देंगे। हालांकि अधिकारियों के अतिरिक्त लगभग 500 कर्मचारी इस अघोषित 'दरबार मूव' का हिस्सा भी होंगे।
सरकार ने श्रीनगर भेजे जा रहे जम्मू सचिवालय के कर्मचारी की सूची जारी कर दी है। वे श्रीनगर से अपने-अपने विभागों की व्यवस्था को बेहतर बनाने में सहयोग देंगे। इनमें सामान्य प्रशासनिक विभाग व आवास एवं शहरी विकास विभाग के 13-13 कर्मचारी, वित्त विभाग के 11 कर्मचारी, राजस्व विभाग के 6 कर्मचारियों के साथ अन्य विभागों के कर्मचारी भी शामिल हैं।
उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने वर्ष 2021 से जम्मू-कश्मीर में दरबार मूव की प्रक्रिया को बंद कर कश्मीर के सचिवालय कर्मचारियों के श्रीनगर व जम्मू के कर्मियों के जम्मू सचिवालय से काम करने का ऐतिहासिक फैसला किया था।
दरअसल इस प्रक्रिया को सरकारी तौर पर 'दरबार मूव' का नाम नहीं दिया जाता है बल्कि यह कहा जा रहा है कि कामकाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए सरकार जम्मू व श्रीनगर के नागरिक सचिवालय में कार्यरत अधिकारियों व कर्मचारियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिजवा सकती है। यह संख्या कोई भी हो सकती है।
इतना जरूर था कि 'दरबार मूव' की परंपरा को बंद करने का समर्थन मात्र मुट्ठीभर उन लोगों द्वारा ही किया गया था, जो एक राजनीतिक दल विशेष से जुड़े हुए हैं जबकि जम्मू का व्यापारी वर्ग इससे दुखी इसलिए है, क्योंकि इतने सालों से कश्मीर से दरबार के साथ सर्दियों में जम्मू आने वाले लाखों लोगों पर उनका व्यापार निर्भर रहता था, जो अब उनसे छिन चुका है।
क्या था दरबार मूव?: जम्मू-कश्मीर में दरबार मूव की शुरुआत महाराजा रणवीर सिंह ने 1872 में बेहतर शासन के लिए की थी। कश्मीर, जम्मू से करीब 300 किमी दूरी पर था, ऐसे में डोगरा शासक ने यह व्यवस्था बनाई कि दरबार गर्मियों में कश्मीर व सर्दियों में जम्मू में रहेगा।
19वीं शताब्दी में दरबार को 300 किमी दूर ले जाना एक जटिल प्रक्रिया थी व यातायात के कम साधन होने के कारण इसमें काफी समय लगता था। अप्रैल महीने में जम्मू में गर्मी शुरू होते ही महाराजा का काफिला श्रीनगर के लिए निकल पड़ता था। महाराजा का दरबार अक्टूबर महीने तक कश्मीर में ही रहता था। जम्मू से कश्मीर की दूरी को देखते हुए डोगरा शासकों ने शासन को ही कश्मीर तक ले जाने की व्यवस्था को वर्ष 1947 तक बदस्तूर जारी रखा।
जब 26 अक्टूबर 1947 को राज्य का देश के साथ विलय हुआ तो राज्य सरकार ने कई पुरानी व्यवस्थाएं बदल दीं लेकिन दरबार मूव जारी रखा। राज्य में 148 साल पुरानी यह व्यवस्था आज भी जारी है। दरबार को अपने आधार क्षेत्र में ले जाना कश्मीर केंद्रित सरकारों को सूट करता था, इसलिए इस व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं लाया गया था।