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जन्म के साथ ही गड्‍ढे में दफन कर दिया था, दिल दहलाने वाली कहानी है पद्मश्री गुलाबो की...

हमें फॉलो करें जन्म के साथ ही गड्‍ढे में दफन कर दिया था, दिल दहलाने वाली कहानी है पद्मश्री गुलाबो की...
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डॉ. रमेश रावत

राजस्थान में यूं तो कई तरह के लोकनृत्य प्रचलित हैं, लेकिन घूमर और कालबेलिया नृत्य सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। कालबेलिया नृत्य को विश्व के मानचित्र पर पहचान दिलाने वाली पद्मश्री गुलाबो सपेरा ने कोरोनावायरस  (Coronavirus) संक्रमण के दौर में जनसेवा के कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। गुलाबो का अतीत किसी सनसनीखेज फिल्म की कहानी कम नहीं है। जन्म लेते ही उन्हें एक गड्‍ढे में दफन कर दिया गया था, लेकिन नियति तो उनसे कुछ और ही करवाना चाहती थी। वेबदुनिया से खास बातचीत में गुलाबो ने न सिर्फ अपने अतीत के पन्नों को भी खोला, बल्कि अपनी संघर्ष यात्रा के बारे में भी सिलसिलेवार चर्चा की। 
 
गुलाबो बताती हैं कि वह धनतेरस का दिन था जब उन्होंने ने इस दुनिया में पहली बार आंखें खोली थीं। राजस्थान के अजमेर जिले में कालबेलिया जनजाति में चौथी पुत्री के रूप में जन्म लेने के तत्काल बाद माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध समुदाय के दबाव गुलाबो को जमीन में दफन कर दिया गया। ममता ने जोर मारा और मां तथा मौसी करीब 5 घंटे बाद जमीन से निकाल लाईं और आपका जीवन बच गया। 
 
...और धनवंती गुलाबो बन गई : होश संभालने के बाद पिता के साथ सड़कों पर सांपों के साथ बीन की धुन पर  नाचना शुरू कर दिया। नृत्य के प्रति जुनून को देखकर पिता ने भी समुदाय की आपत्ति के बावजूद आपको प्रोत्साहित किया। एक बार स्वास्थ्य खराब हो जाने के बाद उन्हें ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के दरबार ले जाया गया, जहां उनके ऊपर गुलाब का फूल गिरा। इसके बाद धनवंती को गुलाबो के नाम से जाना जाने लगा। 
झेला सामाजिक बहिष्कार : गुलाबो के जीवन में कई उतार-चढ़ाव भी आए। सात साल की उम्र में 1981 में पुष्कर मेले में समुदाय की महिलाओं के साथ नृत्य कर रही थीं, नृत्य को देखकर पर्यटन विभाग के अधिकारी काफी प्रभावित हुए। इसके बाद उनसे विदेशियों के एक समूह के सामने नृत्य करने की पेशकश की गई, जिसे काफी प्रशंसा मिली। हालांकि सार्वजनिक रूप से किए इस नृत्य से समुदाय के लोग काफी नाराज हुए और उनके परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। इसके बाद परिवार अजमेर छोड़कर जयपुर आकर रहने लगा। 
 
इस तरह शुरू हुआ कला का अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन : 1985 में आप को अमेरिका के एक संस्कृतिक दल में शामिल होने का प्रस्ताव मिला। लेकिन, दल के साथ रवाना होने से एक दिन पहले ही पिता का निधन हो गया। लेकिन, पिता एवं परिवार के सपनों को साकार करने और अपने समुदाय की कला 'कालबेलिया नृत्य' को पहचान दिलाने के उद्देश्य से यूएसए के लिए उड़ान भरी। वहां नृत्य से प्रभावित होकर वॉशिंगटन में स्थायी रूप से रहने एवं वहां के लोगों नृत्य सिखाने का प्रस्ताव भी मिला, जिसे आपने विनम्रतापूर्वक ठुकरा दिया। गुलाबो 153 देशों में आयोजित विभिन्न उत्सवों, कार्यक्रमों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकी हैं। 
 
राजीव गांधी ने बंधवाई राखी : भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने आपकी कला का सम्मान किया एवं इसे और विस्तृत रूप देने के लिए प्रोत्साहित भी किया। उन्होंने आपसे अपनी कलाई पर राखी भी बंधवाई। इस प्रकार गांधी परिवार से आपके पारिवारिक संबंध भी स्थापित हो गए। 
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पद्मश्री से बिग बॉस तक : गुलाबो अखिल भारतीय कालबेलिया समुदाय की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रही हैं। समय-समय पर अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है। आप डेनमार्क की राजधानी कोपहेगन में विजिटिंग फेकल्टी के रूप में भी नियमित रूप से अपनी सेवाएं देती आ रही हैं। आपकी पुष्कर में एक नृत्य विद्यालय स्थापित करने की भी योजना है। कालबेलिया नृत्य के प्रति अविस्मरणीय एवं उत्कृष्ट योगदान के लिए 2016 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने आपको पद्मश्री से सम्मानित किया था। इसके साथ ही 2011 में टेलीविजन शो बिग बॉस में प्रतियोगी नंबर 12 के रूप में आपको दिखाया गया था।
 
गुलाबो का कोरोना गीत : उन्होंने कोरोना गीत भी तैयार किया है, जो लोगों में जागरूकता फैलाने का काम कर रहा  है। गुलाबो ने वेबदुनिया से बातचीत करते हुए इस गीत को भी गुनगुनाया- अरररररर..र... मैं तो नाचूं और गाऊं, कि मैं तो नांचू और गाऊं कोरोना ने भगाऊं रे, अरररररर..र.. मैं तो हाथ धोऊं और न्हाऊं, कोरोना ने भगाऊं रे...। उन्होंने कहा कि लोग हौसला रखें, कोरोना से डरें नहीं। सेनिटाइज करते रहें, हाथ धोते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। फोन पर बात करें, वीडियो कॉल करें, लोगों के घरों पर आएं-जाएं नहीं। 
 

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