मध्यप्रदेश की सियासत में बड़ा सवाल, क्या होगी शिवराज की भूमिका...

विशेष प्रतिनिधि
शनिवार, 22 दिसंबर 2018 (15:49 IST)
भोपाल। मध्यप्रदेश के नए सियासी परिदृश्य में आजकल ये सवाल बड़ा उठ खड़ा हुआ है कि तेरह साल से अधिक समय तक सत्ता के केन्द्र में रहने वाले शिवराजसिंह चौहान की नई भूमिका क्या होगी। चौहान को करीब से जाने वालों के मन में भी ये सवाल उठ रहा है कि लगभग डेढ़ दशक तक सूबे सियासत की धुरी रहे शिवराज की नई भूमिका क्या होगी।
 
क्या शिवराज मध्यप्रदेश विधानसभा में विरोधी दल के नेता की कुर्सी पर बैठकर कमलनाथ सरकार को घेरने का काम करेंगे या एक बार फिर लोकसभा के चुनावी समर में कूदने के लिए मोदी सरकार में कोई पद संभालेंगे। सूबे में नई सरकार के सत्ता संभालते ही शिवराज ने अपने इरादे बिलकुल साफ कर दिए हैं।
 
मध्यप्रदेश में तेरह साल से अधिक समय तक सीएम की कुर्सी संभालने वाले चौहान एक ऐसे राजनेता के तौर पर पहचाने जाते रहे हैं जो कि बेहद सौम्य हैं, जिनके विनम्र स्वभाव की तारीफ करने में उनके विरोधी भी नहीं हिचकते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री पद से हटते ही शिवराज के सियासी तेवर एकदम से बदल गए हैं। चौहान अचानक से सत्ता के लिए आक्रामक हो गए हैं, जिसकी बानगी शिवराजसिंह चौहान को वो बयान है जो आजकल खूब मीडिया की सुर्खियां बटोर रहा है।
 
अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं के बीच चौहान का 'अभी टाइगर जिंदा' है का बयान खूब सुर्खियों में है। भोपाल के श्यामला हिल्स स्थित मुख्यमंत्री निवास में अपने आखिरी भाषण में शिवराजसिंह चौहान जब अपने समर्थकों और कार्यकर्ताओं से मिल रहे थे तो उन्होंने लोगों से कहा कि 'आप घबराना नहीं, डरना नहीं, टाइगर अभी जिंदा हैं'। चौहान के इस बयान के कई मयाने निकाले जा रहे थे कि इस बीच शिवराज का एक ट्वीट आया जिसमें उन्होंने लिखा कि लंबी छलांग लगाने के लिए दो कदम पीछे हटना पड़ता है।
 
इसके बाद शिवराजसिंह चौहान सत्ता से हटने के बाद पहली बार अपनी विधानसभा बुधनी जाने के लिए भोपाल से सड़क मार्ग से रवाना हुए तो रास्ते में रायसेन के औबेदुल्लागंज में समर्थकों ने उनका भव्य स्वागत किया। इस मौके पर जब कुछ लोग भावुक हो गए तो शिवराज ने उनको ढांढस बधांते हुए कहा कि टाइगर अभी जिंदा है। इसके बाद समर्थकों ने शिवराज जिंदाबाद के नारे लगाए।
 
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हाथों हार का सामना करने के बाद भी शिवराज लगातार लोगों के बीच बने हुए हैं। शिवराज लोगों के बीच जाकर ये संदेश देना चाह रहे हैं कि भले ही चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा हो, लेकिन आज भी वो सूबे की सियासत में  एक जननेता हैं।
 
भोपाल से बीना तक के ट्रेन के सफर में जिस तरह लोग शिवराज के साथ सेल्फी लेने के लिए आगे आए ये उनकी आज भी लोकप्रियता का परिचय देने के लिए काफी है। ऐसे में ये सवाल स्वाभाविक तौर पर उठ खड़ा हुआ है कि शिवराज की नई भूमिका क्या होगी? अगर मौजूदा सियासी परिदृश्य की बात की जाए तो नई सरकार को घेरने के लिए विधानसभा में भाजपा को एक ऐसा तगड़ा नेता चाहिए जिसके सवालों का जवाब देना सत्ता में बैठे लोगों  के लिए आसान नहीं हो।
 
इसके लिए पार्टी के सामने नेता प्रतिपक्ष के लिए शिवराजसिंह चौहान से बेहतर विकल्प कोई भी नहीं है। चौहान एक ऐसे नेता हैं जिनके सवालों का जवाब देना सत्ता पक्ष के लिए इतना आसान भी नहीं होगा, वहीं नई सरकार के गठन होते ही शिवराज ने अपने को चौकीदार बताते हुए साफ बता दिया है कि अगर जनता के हितों के साथ कुछ भी गलत हुआ तो वो चुप नहीं बैठेंगे।
 
वहीं विधानसभा चुनाव में हार के बाद पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती लोकसभा चुनाव है, अब जबकि लोकसभा चुनाव में पांच महीने से भी कम समय बचा है ऐसे में पार्टी चाहती है कि विधानसभा चुनाव में हार के बाद कार्यकर्ताओं का मनोबल न टूटे इसके लिए ये जरूरी कि कार्यकर्ताओं में नए उत्साह का संचार करने का जिम्मा पार्टी के बड़े नेता उठाएं।
 
सूबे की सियासत के जानकार ये भी संभावना जता रहे हैं कि भाजपा हाईकमान लोकसभा चुनाव से पहले शिवराज को मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाकर एक बड़ा दांव चल सकता है। भाजपा हाईकमान लोकसभा चुनाव में शिवराज की जननेता की छवि को भुनाने की तैयारी में है।

इतना तो तय है कि अब जब लोकसभा चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं बचा है, तब भाजपा के सामने मध्यप्रदेश में एकमात्र विकल्प शिवराज ही हैं अगर वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो भाजपा में शिवराज ही एक ऐसे खेवनहार हैं जो लोकसभा चुनाव में  भाजपा की चुनावी नैया को पार लगा सकते हैं।

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