लखनऊ। चंद महीने पहले सक्रिय राजनीति में पदार्पण करने वाली कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा लोकसभा चुनाव में संख्या बल के लिहाज से भले ही आशानुरूप प्रदर्शन न कर सकी हों लेकिन उत्तरप्रदेश की राजनीति के दूसरे स्पेल में उन्होंने शुक्रवार को हठयोग की बदौलत कानून व्यवस्था के मामले में बहुमत की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार का प्रभावी तरीके से मुकाबला कर हाशिए पर पड़ी पार्टी में उम्मीद की किरण जगा दी है।
दरअसल, पूर्वी उत्तरप्रदेश की प्रभारी प्रियंका सोनभद्र में जमीनी विवाद से उपजी हिंसा से प्रभावित आदिवासियों के जख्मों को सहलाने शु्क्रवार को यहां आई थीं। उन्होंने अपने दौरे की शुरुआत वाराणसी से की, जहां सुबह करीब 10.45 बजे उन्होंने बीएचयू अस्पताल में भर्ती घायलों का हालचाल लिया। बाद में प्रियंका का काफिला सोनभद्र के लिए रवाना हो गया।
दो वाहनों का यह काफिला अभी वाराणसी और मिर्जापुर सीमा पर ही था कि पुलिस के जवानों ने उन्हे यह कहते हुए आगे जाने की अनुमति नहीं दी कि सोनभद्र में निषेधाज्ञा लागू है।
प्रियंका और उनके संग चल रहे राज्य विधानसभा में कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजय कुमार लल्लू ने पुलिस अधिकारी से कहा कि अनुमति नहीं देने संबंधी पेपर दिखाएं लेकिन सुरक्षा अधिकारी ने उनसे लौट जाने को कहा और यहीं से प्रियंका के हठयोग का आगाज हो गया और वे धरने पर जम गईं।
कांग्रेस महासचिव ने कहा कि बगैर कारण जाने वे यहां से नहीं जाएंगी। अगर सोनभद्र में निषेधाज्ञा लागू है तो उन्हें मिर्जापुर में क्यों रोका गया? वे कानून का अक्षरश: पालन करने वाली नेता हैं। सोनभद्र में 10 जानें गई हैं जिनकी पुश्तें वहां खेती-किसानी करती थीं। वे मृतक आश्रितों के आंसू पोछने और उन्हें न्याय दिलाने की गरज से जा रही हैं। वैसे उनके जाने से शांति व्यवस्था को कोई खतरा नहीं है लेकिन कानूनन वे 3 लोगों के साथ ही प्रभावित जिले में जाने को तैयार हैं।
जिला और पुलिस प्रशासन के अधिकारियों के काफी मान-मनौव्वल के बाद भी प्रियंका के टस से मस नहीं होने पर उन्हें उप जिलाधिकारी के वाहन से चुनार गेस्ट कांग्रेस लाया गया जिसके तुरंत बाद कांग्रेस महासचिव ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर खुद के गिरफ्तार होने की जानकारी दी हालांकि सरकार और जिला प्रशासन ने इसे सिरे से नकार दिया।
मीडिया के जमावड़े के बीच प्रियंका गेस्ट हाउस के भीतर अपने चुनिंदा समर्थकों और पत्रकारों को उत्तरप्रदेश में कानून व्यवस्था की खस्ता हालत और सरकार की नाकामियों की जानकारी साझा करती रहीं। उनके देर शाम तक अनवरत सोनभद्र जाने की जिद में अड़े रहने से लखनऊ में सरकार हरकत में आई और उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर सफाई दी।
उन्होंने कहा कि प्रियंका ओछी राजनीति कर रही हैं। कांग्रेस का दलित और आदिवासी प्रेम महज दिखावटी है जबकि घोरावल में जमीन विवाद कांग्रेस की देन है।
प्रियंका के धरने पर बैठने की खबर से राज्यभर में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन कर सरकार के प्रति अपने गुस्से का इजहार किया। लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, प्रयागराज और देवरिया समेत कई स्थानों पर कांग्रेसियों ने धरना दिया और प्रतीकात्मक पुतले फूंके।
फिलहाल करीब 9 घंटे से अधिक समय तक धरने पर बैठीं प्रियंका ने प्रदेश में मृतप्राय हो चुकी कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं को कुंभकर्णी नींद से जगाने और सशक्त विपक्ष की भूमिका के तौर पर उभारने का प्रयास किया और इस काज में वे कुछ हद तक सफल भी हुईं।
गौरतलब है कि वर्ष 1989 से उत्तरप्रदेश की राजनीति में कांग्रेस का पतन होना शुरू हो गया था और पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी महज 1 सीट पर सिमट गई थी जबकि मौजूदा विधानसभा में कांग्रेस सदस्यों की तादाद महज 7 ही है। जानकारों का मानना है कि प्रियंका के परिपक्व राजनीति वाला यह अंदाज यूं ही जारी रहा तो वर्ष 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपना पुराना प्रभाव छोड़ सकती है।