एक ओर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार सरकार दूरदराज के गांव-गांव और घर-घर बिजली पहुंचाने की बात करती है, लेकिन प्रदेश के कुछ गांव सरकार की दावों की पोल खोलते नजर आते हैं। बुंदेलखंड के कई गांवों में आजादी के इतने वर्षों बाद भी बिजली और सड़क जैसी आधारभूत सुविधाएं नहीं हैं।
इसके कारण गांव में लड़कों की शादियां नहीं हो पा रही हैं। हालात ये हैं कि लड़के वाले दोनों चूल्हे जलाकर (लड़के वाले अपना और लड़की वालों का भी खर्च उठाकर) शादी करने को तैयार हैं पर फिर भी शादियां नहीं हो रही हैं।
मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के बमीठा थाना क्षेत्र में कई ऐसे पिछड़े गांव हैं जो बिजली-पानी से महरूम हैं। इसी कमी के चलते यहां कोई अपनी लड़की की शादी नहीं करता। आलम यह है कि यहां के अधिकतर लड़के कुंवारे हैं। लड़के वाले दोनों चूल्हे जलाकर भी शादी को तैयार है। जब लड़की वाले गांव जाते हैं तो बिना बिजली के बदहाल गनाव और लोगों की दशा देखकर लौट आते हैं और दोबारा घाट नही चढ़ते।
पन्ना टाइगर रिजर्व से लगा खरियानी पंचायत का ढोंढन गांव। इस गांव की आबादी करीब 2500 से भी अधिक है। आदिवासी जनबाहुल्य यह गांव केन नदी के किनारे बसा है। एक समय यह क्षेत्र राई की पैदावार के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन केन नदी के पार की इनकी ज़मीनें पन्ना टाइगर रिजर्व में आने के बाद से अधिकतर भूमिहीन हो गए हैं। यहां राई की खेती बंद हो गई है।
गांव के लोगों को अब तक अपनी मुआवजा राशि का इंतजार है। अधिग्रहण के वर्षों बाद भी अब तक इन्हें मुआवजा नहीं मिल सका है।
गांववालों का कहना है कि पंचायत स्तर के जो भी काम होते हैं, वे सब मशीनों से किए जाते हैं। इस कारण लोगों को रोजगार भ नहीं मिल पाता। लोगों को रोजगार के लिए बाहर जाना पड़ता है। वर्षभर में लोग 9 से 10 महीने रोजगार के सिलसिले में बाहर ही रहते हैं। पंचायत स्तर के कार्य फाइल स्तर पर ही चल रहे हैं। इस गांव के सैकड़ों लड़के कुंवारे हैं।
कई दशक गुजर जाने के बाद लड़के शादी की उम्र पार कर चुके हैं तो कई वृद्धावस्था तक पहुंच चुके हैं। गांव के बुजुर्गों के मुताबिक इतनी उम्र गुजर जाने के बाद भी उन्होंने बिजली के दर्शन नहीं किए। जिला कलेक्टर के मुताबिक ये गांव पन्ना टाइगर रिजर्व और बफ़र जोन एरिया के गांव हैं। वहां भी हम पन्ना टाइगर रिजर्व के अधिकारियों से बात करके आधारभूत सुविधाएं पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं। अधिकांश गांवों में बिजली पहुंचा दी गई है।