उत्तरप्रदेश के फूलपुर के उपचुनाव में सियासी जंग साफ तौर पर देखी जा सकती है। एक तरफ जहां यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है तो वहीं समाजवादी व भाजपा के प्रत्याशी को रोकने के लिए फूलपुर से निर्दलीय प्रत्याशी अतीक अहमद कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
जानकारों की मानें तो फूलपुर के उपचुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष साफ तौर पर देखने को मिल सकता है। उसकी मुख्य वजह मुस्लिम मतदाता हैं क्योंकि मुस्लिम मतदाताओं की संख्या फूलपुर में ठीक-ठाक है और इन को अपने पक्ष में करने के लिए अतीक अहमद व उनके साथियों ने कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ी है। वहीं लंबे समय से अतीक अहमद के साथ जुड़े उनके साथी ने नाम न छापने की बात कहते हुए बताया कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को चुनावों में सबक सिखाने के लिए अतीक अहमद मैदान में उतरे हैं।
इसके पीछे की मुख्य वजह यह है कि उपचुनाव के तारीखों का ऐलान होते ही जेल में बंद अतीक अहमद ने अपने पसंद के पटेल उम्मीदवार का नाम सुझाया था, जिसे अखिलेश यादव ने ठुकरा दिया और और नागेन्द्रसिंह पटेल को टिकट दिया।
इसी से नाराज अतीक ने खुद मैदान में उतरने का फैसला लिया और अगर सबकुछ ठीक-ठाक चला तो कल होने वाले उपचुनाव के मतदान के दिन कम से कम चतुष्कोणीय संघर्ष साफ तौर पर देखने को मिलेगा और अगर कहीं समाजवादी पार्टी को नुकसान वोटों का होता है तो उसकी मुख्य वजह भी अतीक अहमद ही रहेंगे क्योंकि फूलपुर की आम जनता से सीधे अतीक अहमद का जुड़ाव शुरू से रहा है।
उनके करीबी साथी बताते हैं कि भाजपा को भी इसका नुकसान निश्चित तौर पर होगा क्योंकि फूलपुर के ब्राह्मण जाति में भी अतीक अहमद का संबंध ठीक-ठाक है। मुस्लिम के साथ ब्राह्मण वोट भी अतीक अपने पक्ष में करने में सफल हो सकते हैं। अगर ब्राह्मण वोट अतीक अहमद को मिलते हैं तो यह सीधे तौर पर भाजपा को बहुत बड़ा नुकसान देगा।
गौरतलब है कि 2004 में सपा के टिकट पर अतीक अहमद ने फूलपुर से चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी। शहर उत्तरी और दक्षिण में अतीक अहमद की मुस्लिम वोटों पर अच्छी पकड़ मानी जाती है। यही वजह है कि अतीक ने निर्दलीय पर्चा भरा है।
कहा जा रहा है कि अगर मुस्लिम वोट विभाजित होता है तो सपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है और अगर ब्राम्हण वोट का कुछ भी परसेंटेज कटता है तो सीधे तौर पर भाजपा को नुकसान होगा। नतीजा कुछ भी हो लेकिन फूलपुर के उपचुनाव में कड़ा संघर्ष साफ तौर पर देखने को मिल रहा है। भाजपा के साथ ही समाजवादी पार्टी जहां एक-एक वोट को लेकर संघर्ष करती हुई दिख रही है तो वहीं अतीक अहमद भी किसी से पीछे नहीं हैं।