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रिश्वत के आरोपों से घिरी सरकार बचाने में नाकाम रहे चांडी

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तिरुअनंतपुरम , गुरुवार, 19 मई 2016 (17:00 IST)
तिरुअनंतपुरम। केरल में भ्रष्टाचार तथा आरोप-प्रत्यारोपों के बीच घिरी कांग्रेस सरकार अपने लोकप्रिय नेता ओमान चांडी की छवि बचाने में भी नाकाम रही और जनता ने परंपरा को कायम रखते हुए वाम लोकतांत्रिक मोर्चे (एलडीएफ) को 5 साल के अंतराल के बाद फिर से सत्ता की चाबी सौंप दी।

चांडी सरकार इस बार रिश्वत मामला और सोलर घोटाले जैसे कई आरोपों के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी, जहां 72 वर्षीय मुख्यमंत्री खुद कुछ निजी आरोपों का सामना कर रहे थे।
 
मुख्यमंत्री ने हालांकि दावा किया था कि जनता के बीच उनका व्यापक जनाधार, वर्ष 2013 में यूएनडीपी द्वारा उन्हें सम्मानित किया जाना और उनकी सरकार की कई विकास पहलों के चलते वे चुनावी समंदर में पार्टी की नैया पार लगा ले जाएंगे लेकिन जनता-जनार्दन ने उनके भ्रम को तोड़ दिया।
 
कुशल राजनीतिक कारीगर माने जाने वाले चांडी ने कई मामलों में पार्टी आलाकमान की आपत्तियों को खारिज करते हुए विधानसभा चुनाव के लिए स्वयं उम्मीदवारों का चयन किया था जिनमें उनकी कैबिनेट के कुछ 'दागी' मंत्री भी शामिल थे।
 
वे प्रदेश में कांग्रेस के एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जो अपना कार्यकाल पूरा करने में सफल रहे। हालांकि 140 सदस्यीय विधानसभा में वे 2011 में 72 सदस्यों के साथ काफी कम बहुमत से सत्ता में आए थे।
 
करीबियों के बीच 'कुंजूंजु' नाम से पुकारे जाने वाले चांडी ने कोच्चि मेट्रो, प्रस्तावित विझगम कंटेनर टर्मिनल और कन्नूर हवाई अड्डा परियोजनाओं पर काफी काम किया और दूसरी बार बतौर मुख्यमंत्री यह उनके कार्यकाल की मुख्य उपलब्धियां रहीं।
 
इसमें यह बात रेखांकित करने वाली है कि चांडी ने अपने कार्यालय की 24 घंटे वेबकास्टिंग की अनुमति दी और उनका कहना था कि आम जनता को यह जानने का अधिकार है कि उनके मुख्यमंत्री किस समय क्या कर रहे हैं।
 
उन्होंने 31 अगस्त 2004 से 17 मई 2006 और 18 मई 2011 से 2016 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाली है और एलडीएफ के सत्ता में रहने के दौरान वे विपक्ष के नेता पद पर भी रहे।
 
चांडी ने कभी लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा और न ही राज्यसभा में जाने की इच्छा जताई। हमेशा उन्होंने अपने गृह राज्य को ही प्राथमिकता दी। (भाषा)

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