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महबूबा मुफ्ती नजरबंद, आतंकी हमले का शिकार कश्मीरी पंडित से मिलने जा रही थीं

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सुरेश एस डुग्गर

, मंगलवार, 12 अप्रैल 2022 (22:07 IST)
जम्मू। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती अपने खोए हुए जनाधार को पाने की खातिर फिर से सहानुभूति की फसल काटने की कोशिशों में है। अबकी बार वे आतंकी हमलों का शिकार हुए लोगों से मुलाकातें बढ़ाना चाहती हैं। हालांकि उनके इस प्रयास को आज प्रशासन ने उन्हें नजरबंद कर विफल बना दिया। वे उस कश्मीरी पंडित परिवार से मिलने को जाना चाहती थीं जिसके सदस्य को आतंकियों ने कुछ दिन पहले गोली मारकर जख्मी कर दिया था।
 
महबूबा मुफ्ती ने इस नजरबंदी पर ऐतराज व्यक्त करते हुए कहा कि मैं आज शोपियां में उस कश्मीर हिन्दू परिवार के पास अपनी सांत्वना व्यक्त करने जाना चाहती थी, जिस पर बीते सप्ताह हमला हुआ था। 
उन्होंने आरोप लगाया कि भारत सरकार जान-बूझकर मुख्य धारा से जुड़े कश्मीरियों और कश्मीरी मुस्लिमों को कश्मीरी हिन्दुओं के पलायन के लिए जिम्मेदार ठहराने का दुष्प्रचार अभियान चलाए हुए है। केंद्र सरकार यह नहीं चाहती कि उसके इस दुष्प्रचार की पोल खुले।

 
वे जिला शोपियां में आतंकी हमले में घायल कश्मीरी पंडित के घर उनका हालचाल जानने के लिए आज रवाना होने वाली थीं। इससे पहले पुलिस ने उन्हें श्रीनगर में उनके घर में हाउस अरेस्ट कर लिया। सोमवार, 4 मार्च को शोपियां जिले के चोटीगाम में कश्मीरी पंडित दुकानदार बालकृष्ण भट पर आतंकियों ने हमला कर उन्हें घायल कर दिया था। बालकृष्ण का परिवार एक मेडिकल स्टोर चलाता है। उनको आतंकियों ने उनकी दुकान के बाहर गोली मार दी थी।
 
पार्टी नेताओं का कहना था कि महबूबा मुफ्ती शोपियां में रह रहे कश्मीरी पंडितों के बीच जाकर उन्हें इस बात का यकीन दिलाना चाहती हैं कि कश्मीर घाटी में रह रहे पंडितों को डरने की जरूरत नहीं है। घाटी के मुस्लिम भाई हर परिस्थिति में उनके साथ हैं।
 
प्रशासन को लगा कि महबूबा का शोपियां जाना उनकी सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है। लिहाजा उन्हें रोकने के लिए उन्हें घर में ही नजरबंद कर दिया गया। इससे पहले भी महबूबा मुफ्ती को कई बार घर में नजरबंद किया जा चुका है।

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कार और हथियार छोड़ भागा चालक, हथियार बरामद : अनंतनाग जिले में एक कार से हथियार और गोला-बारूद बरामद किए गए हैं। कार चालक चेकपोस्ट पार्टी को देखकर वहां से फरार हो गया। पुलिस ने बताया कि दूरु तहसील के महमोदाबाद क्षेत्र में रात में दबिश पर तैनात स्थानीय पुलिस की टीम ने कार को देखा। 
इससे पुलिस को संदेह हुआ और पुलिस टीम ने हवा में कुछ गोलियां चलाईं। चालक कार को छोड़कर अंधेरे का फायदा उठाकर मौके से फरार हो गया।
 
पुलिस के मुताबिक यह घटना देर रात की है। बिना नंबर की मारुति कार जब महमूदाबाद पुल के पास से गुजर रही थी, तभी नाके पर तैनात एसओजी के जवानों ने वाहन को रोक ड्राइवर को पूछताछ के लिए गाड़ी से बाहर निकलने के लिए कहा।

 
सुरक्षाकर्मियों को अपने सामने देख कार चला रहा ड्राइवर घबरा गया। इसी हड़बड़ाहट में वह फायरिंग करता हुआ कार से निकला और दूसरी तरफ भाग निकला। इससे पहले कि सुरक्षाकर्मी उसका पीछा करते या फिर उन पर फायरिंग करते, आतंकवादी अंधेरे का लाभ उठाकर वहां से फरार हो गया।
 
आतंकी जिस कार को छोड़कर भाग गए थे, जब सुरक्षाबलों ने उसकी तलाशी ली तो उसमें से 1 एके 56, 2 एके मैगजीन, 2 पिस्तौल, 6 हैंड ग्रेनेड, एके 47 के 44 राउंड आदि आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद हुए हैं। हालांकि रात इस हमले के बाद से ही एसओजी, सेना और सीआरपीएफ के जवानों ने इलाके की घेराबंदी कर आतंकी तलाश शुरू कर दी थी।

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38 सालों से जारी है बेमायने की जंग : दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धस्थल सियाचिन हिमखंड के प्रति एक कड़वी सच्चाई यह है कि इस युद्धस्थल पर भारत व पाक की सेनाओं को आज 13 अप्रैल को 38 साल हो गए हैं बेमायने की जंग को लड़ते हुए।
 
यह विश्व का सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित युद्धस्थल ही नहीं बल्कि सबसे खर्चीला युद्ध मैदान भी है, जहां होने वाली जंग बेमायने है, क्योंकि लड़ने वाले दोनों पक्ष जानते हैं कि इस युद्ध का विजेता कोई नहीं हो सकता। इस बिना अर्थों की लड़ाई के लिए पाकिस्तान ही जिम्मेदार है जिसने अपने मानचित्रों में पाक अधिकृत कश्मीर की सीमा को एलओसी के अंतिम छोर एनजे 9842 से सीधी रेखा खींचकर कराकोरम दर्रे तक दिखाना आरंभ किया था।
 
चिंतित भारत सरकार ने तब 13 अप्रैल 1984 को ऑपरेशन मेघदूत आरंभ कर उस पाक सेना को इस हिमखंड से पीछे धकेलने का अभियान आरंभ किया जिसके इरादे इस हिमखंड पर कब्जा कर नुब्रा घाटी के साथ ही लद्दाख पर कब्जा करना था।
 
13 अप्रैल ही के दिन 1984 में कश्मीर में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने के लिए सशस्त्र बलों ने अभियान छेड़ा था। इसे 'ऑपरेशन मेघदूत' का नाम दिया गया। यह सैन्य अभियान अनोखा था, क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी युद्धक्षेत्र में पहली बार हमला शुरू किया गया था। सेना की कार्रवाई के परिणामस्वरूप भारतीय सैनिक पूरे सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण हासिल कर रहे थे।
 
ऑपरेशन मेघदूत के 38 साल बाद आज भी रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण सियाचिन ग्लेशियर पर भारत का कब्जा है। यह विजय भारतीय सेना के शौर्य, नायकत्व, साहस और त्याग की मिसाल है। विश्व के सबसे ऊंचे और ठंडे माने जाने वाले इस रणक्षेत्र में आज भी भारतीय सैनिक देश की संप्रभुता के लिए डटे रहते हैं। 
यह ऑपरेशन 1984 से 2002 तक चला था यानी पूरे 18 साल तक।
 
भारत और पाकिस्तान की सेनाएं सियाचिन के लिए एक-दूसरे के सामने डटी रहीं और जीत भारत की हुई। आज भारतीय सेना 70 किलोमीटर लंबे सियाचिन ग्लेशियर, उससे जुड़े छोटे ग्लेशियर, 3 प्रमुख दर्रों (सिया ला, बिलाफोंद ला और म्योंग ला) पर कब्जा रखती है। इस अभियान में भारत के करीब 1,000 जवान शहीद हो गए थे। हर रोज सरकार सियाचिन की हिफाजत पर करोड़ों रुपए खर्च करती है।
 
यह उत्तर-पश्चिम भारत में काराकोरम रेंज में स्थित है। सियाचिन ग्लेशियर 76.4 किमी लंबा है और इसमें लगभग 10,000 वर्ग किमी वीरान मैदान शामिल हैं। सियाचिन के एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है तो दूसरी तरफ चीन की सीमा अक्साई चिन इस इलाके को छूती है। ऐसे में अगर पाकिस्तानी सेना ने सियाचिन पर कब्जा कर लिया होता तो पाकिस्तान और चीन की सीमा मिल जाती। चीन और पाकिस्तान का ये गठजोड़ भारत के लिए कभी भी घातक साबित हो सकता था। सबसे अहम यह कि इतनी ऊंचाई से दोनों देशों की गतिविधियों पर नजर रखना भी आसान है।
 
भारत सरकार ने इसके बाद कभी भी सियाचिन हिमंखड से अपनी फौज को हटाने का इरादा नहीं किया, क्योंकि पाकिस्तान इसके लिए तैयार ही नहीं है। नतीजतन आज जबकि इस हिमखंड पर सीजफायर ने गोलाबारी की नियमित प्रक्रिया को तो रुकवा दिया है, पर प्रकृति से जूझते हुए मौत के आगोश में जवान अभी भी सो रहे हैं, पाकिस्तान सेना हटाने को तैयार नहीं है।(फ़ाइल चित्र)

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