नई दिल्ली। वाम दलों ने रविवार को केरल में लगातार दूसरी बार जीत दर्ज करके इतिहास लिख दिया, लेकिन उस पश्चिम बंगाल में वह एक भी सीट नहीं जीत सके, जो कई दशकों तक उनका गढ़ रहा। पश्चिम बंगाल में वाम दलों का राजनीतिक पटाक्षेप 2019 में उस वक्त हो गया, जब वे 1 भी सीट नहीं जीत सके थे और अपना पारंपरिक जनाधार भाजपा के हाथों खो बैठे। 2021 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के द्विपक्षीय मुकाबले में एक बार फिर वाम मोर्चे का सफाया हो गया।
माकपा के पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा कि 4 राज्यों और 1 केंद्रशासित प्रदेश के चुनाव परिणाम में भाजपा को करारी हार मिली है। उसने कहा कि पश्चिम बंगाल में संयुक्त मोर्चा और वाम दलों का प्रदर्शन बहुत निराशाजनक रहा। चुनाव नतीजों का विश्लेषण किया जाएगा। पश्चिम बंगाल में 2006 के चुनाव में वाम मोर्चे को 50 प्रतिशत वोट मिला था तथा 2011 के चुनाव में हार के बावजूद उसने 40 फीसदी वोट हासिल किए थे। इसके बाद 2016 के चुनाव में उसे 26 फीसदी वोट मिले।
भाकपा महासचिव डी. राजा ने कहा कि बंगाल में वाम दलों को अपनी राजनीतिक धारा और हालात के आकलन को लेकर गंभीर समीक्षा करनी होगी। यह सोचना होगा कि हम क्यों हारे और भाजपा ने अपनी जमीन कैसे मजबूत कर ली? केरल में मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की अगुवाई में वाम लोकतांत्रिक मोर्चे ने एक बार फिर जीत हासिल की। वे केरल में तीसरे ऐसे मुख्यमंत्री हो गए, जिनकी अगुवाई में लगातार 2 चुनाव जीते गए। विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने वाले एलडीएफ ने कोरोना संकट के दौरान अपने कदमों से जनता का दिल जीता। इसी को चुनाव में उसकी जीत का प्रमुख कारण माना जा रहा है। (भाषा)