उत्तम खेती मध्यम बान के जीवंत प्रमाण हैं दिनकर चंद

गिरीश पांडेय
सोमवार, 15 मई 2023 (15:10 IST)
वर्षों पूर्व घाघ ने खेती-बाड़ी की हर विधा (खेत की तैयारी, बोआई के दिन, नक्षत्र, लाइन से लाइन और पौध से पौध की दूरी, बीज की मात्रा, अनुकूल एवं प्रतिकूल मौसम आदि) के बारे में दोहे लिखे थे। परंपरागत ज्ञान एवं खुद के अनुभव से लिखे गए ये दोहे काफी हद तक आज भी प्रासंगिक हैं। इनमें से ही एक बेहद प्रचलित दोहा है, उत्तम खेती, मध्यम बान...

मुख्यमंत्री के गृह जनपद गोरखपुर के गगहा ब्लॉक के नर्रे गाँव के 56 वर्षीय दिनकर चंद इसके जीवंत प्रमाण हैं। बकौल दिनकर करीब चार दशक से खेती कर रहा हूं। जब खेती करना शुरू किया तो तीन भाइयों (स्वर्गीय हरिश्चंद्र, शिवाजी चंद-ब्लॉक प्रमुख गगहा) के संयुक्त परिवार में मात्र 7-8 एकड़ खेत था। आज हमारे पास 30 एकड़ से अधिक खेत है।

इस दौरान सिर्फ खेत का रकबा ही नहीं बढ़ा और भी बहुत सी चीजें हुईं। खेती के हर जरूरी आधुनिक संसाधन जमीन को समतल करने की अत्याधुनिक मशीन लैंड लेजर, लेवलर, खाद-बीज के एक साथ गिरे, पौधे लाइन से उगें, खर-पतवार का नियंत्रण आसानी से हो सके इसके लिए हैप्पी सीडर, सिंचाई के दौरान पाइप के रिसाव से होने वाली पानी की बर्बादी कम करने के लिए प्लास्टिक के मजबूत एचडी पाइप आदि। इसके अलावा संयुक्त परिवार में दो पेट्रोल पंप, इंटरलॉकिंग में उपयोग होने वाली सीमेंट की ईंट बनाने की एक यूनिट भी।

परिश्रम एवं बेहतर प्रबंधन से परंपरागत खेती से भी बहुत कुछ संभव
उनके मुताबिक परंपरागत खेती भी बुरी नहीं है। शर्त यह है कि फसल के अनुरूप खेत की तैयारी हो। बोआई के लिए कृषि जलवायु क्षेत्र के अनुसार उन्नत प्रजातियों का चयन करें और समय-समय पर कीटों एवं रोगों से बचाने के लिए फसल संरक्षा के जरूरी उपाय करें।

खेत में हर एक साल के अंतराल पर हरी खाद एवं भूमि में कार्बनिक तत्त्वों की मात्रा बढ़ाने के लिए ढैचे की बोआई करें और जहां तक संभव है गोबर की खाद भी डालें। दिनकर चंद ये सारी चीजें खुद भी करते हैं। घर में अक्सर चार गायें रहती हैं। इससे गोसेवा भी हो जाती है। शुद्ध दूध, दही, घी के साथ  गोबर की खाद बोनस है।

मुख्यमंत्री की मंशा के अनुसार श्रम की लागत घटा कर आय दोगुनी करना संभव
योगी सरकार द्वारा किसानों की आय दोगुना करने के सवाल पर वे कहते हैं, यह बिलकुल संभव है। इसके लिए मुख्यमंत्री द्वारा न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन पर भी गौर करना होगा। खेती की सबसे बड़ी समस्या श्रमिकों की कमीं है। एक तो ये उपलब्ध नहीं हैं। उपलब्ध भी हुए तो महंगे हैं। खेत की तैयारी से लेकर बोअनी, सिंचाई, कटाई आदि में इनकी जरूरत होती है।

यंत्रीकरण से बहुत कम हो जाती है श्रम की लागत
उनके मुताबिक यंत्रीकरण ने यह काम आसान कर दिया है। सरकार का जोर भी इस पर है। अनुदान पर कृषि यंत्र दिए जा रहे। अनुदान का भुगतान सीधे पूरी पारदर्शिता से किसानों के खाते में किया जाता है। इससे किसानों की रुझान भी बढ़ी है।

हैप्पी सीडर से एक आदमी एक घंटे में बो सकता है एक एकड़ खेत
दिनकर चंद के मुताबिक अगर आप हैप्पी सीडर के चोंगे में खाद-बीज डाल सकते हैं तो खुद ट्रैक्टर से एक घन्टे में एक एकड़ खेत बो सकते हैं। कंपाइंन ने कटाई भी आसान कर दी है। यंत्रीकरण के जरिए आप समय और श्रम के रूप में लगने वाले संसाधन को बचाकर स्थानीय स्तर पर अपनी रुचि के अनुसार और भी काम कर सकते हैं।

साल में एक एकड़ से करीब एक लाख रुपए की आय
हालांकि दिनकर चंद को कोई पुरस्कार नहीं मिला है, पर पूरे इलाके में खेती-बाड़ी में रुचि रखने वाले जानते हैं कि गेंहू-धान की सबसे अच्छी उपज वही लेते हैं। उनके मुताबिक वह ख़रीफ के सीजन में 15 एकड़ में धान और रबी के सीजन में 30 एकड़ में गेंहू की खेती करते हैं।

सब्जी, दलहन एवं तिलहन बस जरूरत भर की। पहले गन्ने की खेती भी करते थे, पर मिल न होने से वर्षों पहले इसे छोड़ दिया। उनकी गेंहू की प्रति एकड़ औसत उपज करीब 22 कुंतल और धान की प्रति एकड़ औसत उपज 20 से 25 कुंतल होती है। उनके मुताबिक साल में एक एकड़ खेत से करीब एक लाख रुपए की आय हो जाती है।

इनोवेशन पर भरोसा
समय के अनुसार परंपरागत खेती में भी वह नवाचार (इनोवेशन) करते रहते हैं। मसलन ख़रीफ में वह मंसूरी, सरजू-52, कालानमक पूसा बासमती टाइप-1की खेती करते हैं। साथ ही सलाह देते हैं कि अपने इलाके के लिए महीन धानों में पूसा बासमती टाइप-1 सबसे बेहतरीन है। धान की खेती के लिए वह हरी खाद के लिए ढैचें की बोआई कर चुके हैं। गेंहू में उनकी पसंदीदा प्रजातियां हैं-2003, 2967 और कर्ण वंदना।

चीकू के साथ हल्दी की खेती का भी इरादा
फिलहाल वह अब परंपरागत खेती को डाइवर्सिफाइड करने के बारे में भी गंभीरता से सोच रहे हैं। अब तक के अनुसंधान से वह बताते हैं कि अपने क्षेत्र के लिए चीकू की खेती अच्छी है। इसके बाग में घर-घर प्रयुक्त होने वाली हल्दी की खेती करने से दोहरा लाभ संभव है। एक तो अतरिक्त आय होगी। दूसरे बाग का भी बेहतर रख रखाव हो सकेगा।

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