देहरादून। प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर इन दिनों कोहराम मचा हुआ है। इलाज के अभाव में गर्भवती महिलाओं समेत अन्य लोगों की लगातार हो रही मौतों ने ताडंव मचा रखा है। लगातार पटरी से गिरती स्वास्थ्य व्यवस्था के प्रति आमजन में खासा रोष व्याप्त है।
हालात चिंताजनक देख मजबूरन लोगों को सड़कों पर उतरकर स्वास्थ्य विभाग की नाकामियों के लिए प्रदर्शन करना पड़ रहा है। प्रदेश में पांच दिनों के अंदर समय पर इलाज न मिलने से पांच लोगों की मौत हो गई, जिनमें गर्भवती महिलाओं की प्रसव के दौरान उपचार न मिलने दर्दनाक मौत हो चुकी है तो कई अन्य मरीजों को समय पर इलाज न मिलने पर उनकी तड़प कर मौत हो गई है।
पिछले दिनों बागेश्वर में एक गर्भवती महिला की उपचार न मिलने के कारण मौत हो गई जबकि दूसरी महिला पीलिया की वजह मौत के मुंह में चली गई। हरिद्वार में फिजिशियन नहीं होने के कारण किशोरी की जान चली गई और उत्तरकाशी में खसरे से पीड़ित बच्ची की उपचार न मिल पाने के कारण मौत हो गई।
प्रदेश में आपातकाल के लिए चलाई जा रही 108 सेवा पर प्रतिवर्ष 20 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं लेकिन यह सेवा लोगों द्वारा पहले पहल तो सराही गई धीरे-धीरे यह कमजोर साबित हो रही है। इस कारण इसकी लापरवाही के चलते प्रदेश में पिछले दिनों कई घटनाएं सामने आई हैं।
ताजा घटना रूड़की की है, जहां समय पर इलाज न मिलने से एक और महिला की मौत हो गई। मंगलौर में समय पर चिकित्सा सुविधा न मिलने पर जिस महिला की मौत हुई है उस परिवार पर पहले ही बहुत परेशानियां है।
महिला का पति लम्बी बीमारी से जूझ रहा है तो वहीं करीब छः माह पूर्व उसकी बड़ी बेटी की भी विदेश में मौत हो गई थी, जिसकी वह सूरत तक नही देख पाए थे। अब घर की महिला की मौत ने पूरे परिवार को झकझोर कर रख दिया है। घर के मुखिया पर तो मानों पहाड़ टूट पड़ा हो। वह किसी से बात करते समय बस रो पड़ता है।
सरकार गरीबों को चिकित्सा सुविधा दिए जाने के कितने भी दावे क्यों न कर ले लेकिन वास्तिविता यह है कि सरकार के ही कर्मचारी सरकारी योजनाओं को पलीता लगता है। 2008 में यह आपातकालीन सेवा 108 नाम से शुरू की गई थी, जिससे आम जन मानस को आपात स्थिति में लाभ मिल जाता था लेकिन समय के साथ-साथ यह सेवा दम तोड़ती नजर आ रही है।
अकसर आपातकालीन 108 एम्बुलैंस की लापरवाही कही न कही उजागर हो ही जाती है। लोगों का भरोसा यह होता है कि यदि 108 एम्बुलैंस सेवा से मरीज को अस्पताल पहुंचाया जा रहा है तो उसकी जान सकती है।
यही बात बीती रात करीब सवा नौ बजे स्थानीय मोहल्ला पठानपुरा निवासी कर्रार हुसैन उर्फ भोला का भी यही विचार था कि सरकारी एम्बुलैंस से उसकी पत्नी शादाब जहरा को अस्पताल पहुंचाया जाए तो शायद उसकी जान बच सकेगी लेकिन लम्बी प्रतिक्षा के बाद भी 108 ऐम्बुलैंस मौके पर नहीं पहुंची और देर होने के कारण महिला ने रास्ते में दम तोड दिया।
इस परिवार पर पहले भी इसी तरह का पहाड टूट चुका है। करीब छः माह पूर्व परिवार की बेटी विवाह होने के बाद अपने पति के साथ ईरान गई थी, जहां पर प्रसव के दौरान उसकी मृत्यु हो गई थी। गरीब होने के कारण पिता व परिवार अपनी बेटी के शव को वतन भी मंगा सके थे, जिसका सदमा इस परिवार पर अभी भी हावी है।
घर का मुखिया गत काफी समय से बीमारी से जूझ रहा है। अब पत्नी का निधन होने पर उसे अपने छोटे बच्चों के पालन-पोषण की भी चिंता सता रही है। इन हालात में परिवार का मुखिया टूट चुका है। जब उससे कोई बात की जाती है तो वह फफक-फफक कर रोने लगता है। मोहल्ले के लोग सिर्फ उसे दिलासा ही दे सकते है। कुल मिलाकर कहे तो यह एक सरकारी भूल है यदि एम्बुलैंस समय पर पहुंच जाती तो शायद शादाब की जान बच सकती थी।