Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

गुजरात का एक गांव, जहां कुत्ते भी करोड़पति हैं...

हमें फॉलो करें गुजरात का एक गांव, जहां कुत्ते भी करोड़पति हैं...
, सोमवार, 9 अप्रैल 2018 (13:24 IST)
-हरीश चौकसी
सुनने में यह बात विचित्र लगती है, लेकिन इसमें काफी हद तक सच्चाई भी है। यह जानकारी इसलिए भी हैरत भरी है क्योंकि ये करोड़पति कुत्ते किसी धन्ना सेठ के नहीं हैं, बल्कि गांव के आम आवारा कुत्ते हैं। करोड़पति कुत्तों के इस गांव का नाम पंचोत है और यह गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित है। 
 
दरअसल, गांव में एक ट्रस्ट संचालित होता है, जिसका नाम है 'मध नी पति कुतारिया ट्रस्ट'। इस ट्रस्ट के पास 21 बीघा जमीन है। हालांकि यह जमीन कुत्तों के नाम नहीं है, लेकिन इस भूमि से होने वाली आय (खेती की नीलामी) को कुत्तों के लिए रखा जाता है। राधनपुर-मेहसाना बाईपास पर स्थित इस जमीन की कीमत तेजी से बढ़ी है और वर्तमान में इसकी कीमत साढ़े तीन करोड़ रुपए प्रति बीघा है। 
 
ट्रस्ट के अध्यक्ष छगनभाई पटेल के मुताबिक जानवरों के लिए दया पंचोत गांव वर्षों पुरानी परंपरा का हिस्सा है। 'मध नी पति कुतारिया ट्रस्ट की शुरुआत जमीन के टुकड़े को दान करने की परंपरा से हुई। उस वक्त इसे बनाए रखना आसान नहीं था क्योंकि जमीन की कीमतें ज्यादा नहीं थी। कुछ मामलों में जमीन का दान लोगों ने मजबूरी में किया। दरअसल, भूमि के मालिक टैक्स का भुगतान करने में असमर्थ थे अत: उन्होंने जमीन दान कर इस देनदारी से मुक्ति पा ली। 
 
उन्होंने बताया कि करीब 70 साल पहले पूरी जमीन ट्रस्ट के आधीन आ गई, लेकिन चिंता इस बात की है कि भूमि के रिकॉर्ड में अभी भी मूल मालिक का ही नाम है। साथ ही जमीन की कीमतें भी काफी बढ़ चुकी हैं। इसलिए मालिक फिर से इसे हासिल करने के लिए भी सामने आ सकते हैं। हालांकि इस जमीन को जानवरों और समाज सेवा के लिए दान किया गया था। 
webdunia
...और फिर बना रोटला घर :  धर्मार्थ परंपरा के नाम पर शुरू हुआ यह ट्रस्ट केवल कुत्ते की सेवा तक सीमित नहीं है। ट्रस्ट के स्वयंसेवक सभी पक्षियों और जानवरों की सेवा करते हैं। ट्रस्ट को पक्षियों के लिए 500 किलोग्राम अनाज प्राप्त होता है। ट्रस्ट ने 2015 में एक इमारत का निर्माण किया, जिसे 'रोटला घर' नाम दिया गया। 
 
यहां दो महिलाएं प्रतिदिन प्रतिदिन 20-30 किलो आटे से करीब 80 रोटला (रोटियां) बनाती हैं। स्वयंसेवक रोटला और फ्लैटब्रेड को ठेले पर रखकर सुबह साढ़े सात बजे इसका वितरण शुरू करते हैं। इसमें करीब एक घंटे का समय लगता है। इतना ही नहीं ट्रस्ट द्वारा स्थानीय कुत्तों के अलावा बाहरी कुत्तों को भी खाना उपलब्ध करवाया था। महीने में दो इन्हें लड्‍डू खिलाए जाते हैं। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

डाकघरों में अब मिलेगी यह बड़ी सुविधा