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इंसानों के साथ जंगल को भी खा रहा है Coronavirus

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, गुरुवार, 15 अप्रैल 2021 (14:21 IST)
-हेतल कर्नल 
सूरत। कोरोना का असर लोगों की मौतों के साथ ही पर्यावरण पर भी पड़ने लगा है। अंतिम संस्कार से लिए लकड़ी की खपत अचानक बढ़ गई है। इसकी पूर्ति के लिए हरे-भरे जंगल काटे जा रहे हैं। गुजरात के सूरत, अहमदाबाद, बड़ौदा और राजकोट में मिलाकर रोजाना 600 लोगों के अंतिम संस्कार किए जा रहे हैं। इसमें लगभग 96 हजार किलो लकड़ी का इस्तेमाल हो रहा है।
 
एक ओर जहां कोरोना मरीज के लिए ऑक्सीजन जरूरी होती है, वहीं Ky शव जलाने के लिए हरे-भरे पेड़ काटकर लड़की की आपूर्ति की जा रही है। इससे प्राकृतिक ऑक्सीजन में कमी होना लाजिमी है। जंगल किसी भी शहर के लिए फेफड़े का काम करते हैं, लेकिन कोरोना इंसानों के फेफड़े तो खराब कर ही रहा है, शव जलाने के लिए जंगल रूपी शहर के फेफड़े भी नष्ट कर रहा है।
 
15 दिन में 14 लाख किलो लकड़ी की खपत : सूरत में रोजाना 9 से 11 ट्रक लकड़ी के ट्रक ‘कीम’ और उसके नजदीकी ग्रामीण क्षेत्र से आ रहे हैं। एक अंदाज के अनुसार बीते 15 दिन में गुजरात में अंतिम संस्कार के लिए 14 लाख 40 हजार किलो लकड़ी जला दी गई। इस लकड़ी की आपूर्ति के लिए दक्षिण गुजरात के जंगलों की दर्जनों एकड़ जमीन के पेड़ काटे जा रहे हैं। राज्य में लकड़ी का व्यापार तेजी से बढ़ा है। इसकी आड़ में लकड़ी माफिया भी तेजी से सक्रिय हुए हैं, लेकिन उन्हें रोकने के लिए लगता है राज्य सरकार ने आंख मूंद रखी है।

160 किलो लकड़ी की जरूरत : सूरत में एक मुक्ति धाम के कर्मचारी ने बताया कि एक बॉडी के लिए 160 किलो लकड़ी की जरूरत होती है। इस प्रकार शहर के मुक्ति धामों में एक दिन में 2 लाख 88 हजार किलो लकड़ी का उपयोग हो रहा है। इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि कितने लोगों की मौत यहां हो रही होगी।

मैदान में जला रहे शव : सूरत में मुक्ति धाम में जगह नहीं मिल रही है, ऐसे में वहां से लगे मैदान में रोजाना करीब 25 लोगों का अंतिम संस्कार करना पड़ रहा है। शहर के सभी मुक्ति धामों पर इस तरह की व्यवस्था की गई है। हर मुक्ति धाम पर लकड़ी की कीमत भी अलग-अलग वसूली जा रही है। उमरा मुक्ति धाम एक बॉडी के लिए लकड़ी के 2100 रुपए लिए जा रहे हैं, वहीं अन्य मुक्ति धामों पर 100 से 500 रुपए का अंतर होता है।

रोजाना 77 टन लकड़ी : मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अहमदाबाद में 300, बड़ौदा में 100 और राजकोट में 80 मृतकों का अंतिम संस्कार लकड़ी से किया जा रहा है। इन तीनों शहरों में रोजाना 77 टन लकड़ी चिता के रूप में जलाई जा रही है। लड़की से अंतिम संस्कार करने के पीछे एक कारण यह भी है कि इलेक्ट्रिक शवदाह गृहों की संख्या कम है। लगातार शव आते रहने की स्थिति में दूसरा विकल्प नहीं।

इसलिए पिछड़ रहे इलेक्ट्रिक शवदाह गृह : मिली जानकारी के अनुसार सूरत में हर रोज 150 से 200 लोगों का अंतिम संस्कार हो रहा है। इनमें लगभग 70 बॉडी का अंतिम संस्कार इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में हो रहा है। कुछ दफन किए जा रहे हैं और बाकी को जलाया जा रहा है। इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में 3 या 4 शव का अंतिम संस्कार करने के बाद मशीन को कुछ घंटों के लिए आराम देना होता है। उसका मेंटेनेंस करना होता है, उसके बाद अन्य शव का संस्कार कर सकते हैं। इतना ही नहीं 24 घंटे में इस मशीन को कुछ समय के लिए बंद रखना भी जरूरी है। यानी इलेक्ट्रिक शवदाह गृह लगातार काम नहीं कर सकते।

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