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क्या सपा-बसपा गठबंधन से डर गई है बीजेपी?

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अवनीश कुमार

, रविवार, 13 जनवरी 2019 (14:23 IST)
लखनऊ। उत्तरप्रदेश की राजनीति में 12 जनवरी का दिन बेहद दिलचस्प रहा और बरसों पुराने घटनाक्रम को भुलाते हुए सपा व बसपा का राजनीतिक गठबंधन आखिरकार हो ही गया। लेकिन उत्तरप्रदेश में इस गठबंधन की घोषणा होते ही भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने जमकर गठबंधन पर हमला बोला। और तो और, सोशल मीडिया व ट्विटर का इस्तेमाल करते हुए पोस्टर भी जारी कर डाला और गठबंधन में शामिल मायावती को इस पोस्टर के द्वारा उनके मान-सम्मान की याद बीजेपी दिलाने लगी।
 
 
लेकिन सवाल ये उठता है कि बीजेपी को मायावती के मान-सम्मान की इतनी चिंता क्यों? बार-बार बीजेपी के नेता गेस्ट हाउस कांड याद दिलाने में क्यों जुटे हैं? क्या बीजेपी डरी हुई है इस गठबंधन से? ऐसे कई सवाल थे जिसके जवाब हमने राजनीति के जानकार व वरिष्ठ पत्रकारों से जानने की कोशिश की।
 
सबसे पहले हम आपको बीजेपी द्वारा जारी किए गए पोस्टर के बारे में बता दें। इस पोस्टर में बीजेपी ने मायावती की फोटो का इस्तेमाल करते हुए लिखा है- 'कभी करती थी मान-सम्मान की बातें, अब सत्ता पाने के लिए गेस्ट हाउस कांड भूल गईं बहनजी।'
 
क्या बोले राजनीति के जानकार? : मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश से ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार अभि मनोज ने बताया कि यह कहना गलत होगा कि बीजेपी डरी हुई है। डरी नहीं, सहमी हुई है, क्योंकि अभी इस गठबंधन का तोड़ ढूंढ नहीं पाए हैं और गठबंधन का नतीजा उपचुनाव में उत्तरप्रदेश में देख चुके हैं इसलिए यह राजनीतिक स्टंट कहा जा सकता है कि वे पोस्टर के माध्यम से बार-बार गठबंधन में वरिष्ठ मायावती को कुछ याद दिलाने का प्रयास कर रहे हैं। अन्य नेताओं की बात करें तो बीजेपी में एक खास बात यह है कि ऊपर से जो दिशा-निर्देश दिए जाते हैं, उसी दिशा-निर्देश पर सभी चलते हैं और तभी सभी नेता गठबंधन में मायावती को उनका सम्मान याद दिलाने में लगे हुए हैं।
 
उत्तरप्रदेश से खासा ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार व साप्ताहिक 'परिवाद' समाचार पत्र के प्रधान संपादक अशोक अग्निहोत्री ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी काशीराम व मुलायम सिंह के पिछले गठबंधन के परिणामों को सोचकर थोड़ा-सा परेशान है, क्योंकि उस समय जो लहर थी वह भाजपा के पक्ष में थी लेकिन सपा व बसपा के गठबंधन ने उस समय भी भाजपा के अरमानों पर पानी फेर दिया था और सपा व बसपा के गठबंधन ने प्रदेश में पुन: सरकार बनाई थी ठीक बिलकुल वैसे ही समीकरण एक बार से फिर बन रहे हैं।
 
बस फर्क इतना है कि उस समय गठबंधन काशीराम व मुलायम सिंह के बीच हुआ था और इस बार मायावती व अखिलेश यादव के बीच हुआ है और निश्चित तौर पर इस गठबंधन के चलते अगर एक बार फिर से पुरानी स्थिति दोहराई तो लोकसभा 2019 के चुनाव में उत्तरप्रदेश की 80 सीटों पर इस गठबंधन का असर साफतौर पर देखने को मिल सकता है और कहीं-न-कहीं इसका नुकसान भाजपा को उठाना पड़ सकता है। यही कारण है जिसके चलते भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष के नेता थोड़ा सा सोचने पर मजबूर हो गए हैं और कहीं-न-कहीं सीधे तौर पर इस गठबंधन की तोड़ ढूंढने में जुटे हुए हैं। इसी के चलते मैं इस पोस्टर वार को मानता हूं कि ये एक राजनीतिक स्टंट है और कहीं-न-कहीं बीजेपी बसपा के वोटरों को यह याद दिलाना चाहती है।
 
उनकी पार्टी की मुखिया के सम्मान के साथ खिलवाड़ करने वाली पार्टी कोई और नहीं समाजवादी पार्टी है, क्योंकि बसपा के जो युवा वोटर हैं शायद उन्हें उस घटना की उतनी जानकारी नहीं है और भाजपा उस घटना की जानकारी को बसपा के युवा वोटरों तक पहुंचाने का काम करने में जुटी हुई है।
 
एक बात तो निश्चित तौर पर तय है जिसको लेकर बीजेपी थोड़ा-सा डरी हुई है, क्योंकि अगर 2014 के वोटों के प्रतिशत पर नजर डाली जाए और इन दोनों पार्टियों के वोटों को जोड़ दिया जाए तो यह गठबंधन भारतीय जनता पार्टी पर बेहद भारी पड़ने वाला है, क्योंकि अगर यह गठबंधन 2014 में हो गया होता तो शायद उत्तरप्रदेश की सीटों का समीकरण लोकसभा में कुछ और ही देखने को मिलता है।
 
ऐसे कई सवाल हैं, जो भाजपा को सोचने पर मजबूर कर रहे हैं। तो वहीं कई अन्य वरिष्ठ पत्रकारों ने कहा कि निश्चित तौर पर 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन वोटों के समीकरण के हिसाब से दिक्कतें खड़ी कर सकता है जिसको लेकर चिंतित होना बीजेपी के लिए लाजमी है। पर यह कहना कि 'वह डरी है' यह संभव नहीं लगता है। हां, उत्तरप्रदेश दिल्ली की गद्दी के लिहाज से बेहद अहम है जिसको लेकर उसकी पार्टी मंथन जरूर कर रही है और कहीं-न-कहीं इस गठबंधन को लेकर थोड़ी सी परेशान भी है और मायावती के साथ जो कुछ पहले बीता है, वह उनके वोटरों तक पहुंचाने का काम बीजेपी के कुछ नेता जरूर कर रहे।
 
लेकिन यह एक सोची-समझी राजनीति के तहत है न कि डर की वजह, क्योंकि कहीं-न-कहीं इस गठबंधन से अगर भाजपा को नुकसान होता है तो कांग्रेस को भी इसका फायदा नहीं होगा और अगर गठबंधन सफल रहा तो केंद्र में जिसकी भी सरकार बनेगी वह बेहद कमजोर होगी, क्योंकि यूपी की 80 सीटें बेहद मायने रखती हैं दिल्ली की गद्दी तक पहुंचने के लिए। अब बस यह देखना है कि बीजेपी इस गठबंधन का तोड़ निकाल पाती है कि नहीं?

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