घुसपैठ के लिए कमांडो हमलों की तैयारी में जुटी पाक सेना

सुरेश एस डुग्गर
सोमवार, 20 अगस्त 2018 (20:16 IST)
श्रीनगर। भारतीय सेना ने एलओसी पर स्थित अपनी कई सीमा चौकियों पर अपने कमांडो की तैनाती की है। यह तैनाती उन सूचनाओं के बाद की गई है जिसमें कहा गया है कि पाक सेना एलओसी पर बॉर्डर रेडर्स के सदस्यों के जरिए कमांडो कार्रवाइयों को अंजाम देना चाहती है। इसके साथ-साथ वह सीजफायर के उल्लंघन को भी बढ़ाते हुए घुसपैठ को तेज कर चुकी है।
 
 
पाकिस्तान द्वारा संघर्षविराम के उल्लंघन में हुई हालिया बढ़ोतरी के कारण जम्मू-कश्मीर में एलओसी से सटे इलाकों में बढ़े तनाव के बीच सेना ने आज सोमवार को बताया कि उन्हें प्राप्त सूचना के मुताबिक पाकिस्तान एलओसी पर और अधिक कमांडो हमले की कोशिश कर रहा है।
 
बॉर्डर रेडर्स के नाम से जाने जाने वाला यह कमांडो पाकिस्तान के विशेष बलों के कर्मियों और आतंकियों का एक मिला-जुला स्वरूप है। पिछले कुछ सालों में पाक बॉर्डर रेडर्स भारत के कई सैनिकों की नृशंस हत्या कर चुका है। कइयों के वह सिर भी काटकर ले जा चुका है।
 
वैसे एलओसी पर बॉर्डर रेडर्स के हमले कोई नए नहीं हैं। इन हमलों के पीछे का मकसद हमेशा ही भारतीय सीमा चौकियों पर कब्जा जमाना रहा है। पाकिस्तानी सेना की कोशिश कोई नई नहीं है। कारगिल युद्ध की समाप्ति के बाद हार से बौखलाई पाकिस्तानी सेना ने बॉर्डर रेडर्स टीम का गठन कर एलओसी पर ऐसी बीसियों कमांडो कार्रवाइयां करके भारतीय सेना को जबरदस्त क्षति सहन करने को मजबूर किया है।
 
26 जुलाई 1999 को जब कारगिल युद्ध की समाप्ति की घोषणा हुई, तो उधर पाक सेना ने अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देना आरंभ कर दिया था। उसने त्रिस्तरीय रणनीति बनाई जिसके पीछे का मकसद भारतीय सेना को अधिक से अधिक नुकसान पहुंचाना तो था ही, कश्मीर में भी लोग त्राहि-त्राहि कर उठे थे।
 
कारगिल युद्ध के बाद ही फिदायीनों, मानव बमों के हमलों की भी शुरुआत हुई थी, साथ ही शुरुआत हुई थी भारतीय सीमा चौकियों पर बॉर्डर रेडर्स के हमलों की। हालांकि सैन्य सूत्र कहते हैं कि पाक सेना द्वारा गठित बॉर्डर रेडर्स में आतंकी भी शामिल होते हैं जिन्हें हमलों में इसलिए शामिल किया जाता रहा है ताकि वे कश्मीर में घुसने के बाद वहशी कृत्यों को अंजाम दे सकें।
 
पिछले 19 सालों में कितनी बार पाक सेना के बॉर्डर रेडर्स ने भारतीय सीमा चौकियों पर हमले किए, इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा इसलिए भी मौजूद नहीं है, क्योंकि यह भारतीय सेना की नहीं बल्कि भारतीय राजनीतिक नेतृत्व की अक्षमता को दर्शाता था। एक सैन्य सूत्र के मुताबिक भारतीय सैनिक नपंसुक तो नहीं हैं, पर उन्हें ऐसा बना दिया गया है जिन्हें आज भी एलओसी पार कर पाक सेना को 'जैसे को तैसा' का सबक सिखाने की खुली अनुमति कभी नहीं मिली है सिवाय एक बार-बार हमला करने के।
 
इतना जरूर था कि बॉर्डर रेडर्स के हमले ज्यादातर एलओसी के इलाकों में ही हुए थे। इंटरनेशनल बॉर्डर पर पाक सेना ऐसी हिम्मत नहीं दिखा पाई थी जबकि राजौरी और पुंछ के इलाके ही बॉर्डर रेडर्स के हमलों से सबसे अधिक त्रस्त इसलिए भी रहे थे, क्योंकि एलओसी से सटे इन दोनों जिलों में कई फॉरवर्ड पोस्टों तक पहुंच पाना दिन के उजाले में संभव इसलिए नहीं होता था, क्योंकि पाक सेना की बंदूकें आग बरसाती रहती थीं।
 
बॉर्डर रेडर्स के हमलों को कश्मीर सीमा पर स्थित सैन्य पोस्टों में तैनात जवानों ने भी सीजफायर से पहले की अवधि में सहन किया है। सैन्य अधिकारियों के मुताबिक भारतीय इलाके में घुसकर भारतीय जवानों के सिर काटकर ले जाने की घटनाओं को भी इन्हीं बॉर्डर रेडर्स ने अंजाम दिया था जबकि 10 साल पहले उड़ी की एक उस पोस्ट पर कब्जे की लड़ाई में भारतीय वायुसेना को भी शामिल करना पड़ा था जिसे भारतीय सैनिकों ने भयानक सर्दी के कारण खाली छोड़ दिया था।
 
फिलहाल सेना ऐसे हमलों और उसमें हताहत होने वाले भारतीय जवानों की संख्या मुहैया करवाने से इंकार करती आई है जिन्हें पाक सेना की बॉर्डर रेडर्स ने अंजाम दिया था।

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