आरजी कर की घटना के बाद क्या बदलेगा बंगाल का राजनीतिक परिदृश्य, क्या कहते हैं प्रबुद्ध वर्ग के लोग
विरोध प्रदर्शनों की योजना का श्रेय सोशल मीडिया के प्रभाव को
RG Kar incident: सड़क के किनारे मानव श्रृंखलाएं बनाने, घर की बत्तियां बुझाने, कविताएं लिखने, गाना गाने से लेकर न्याय के लिए सड़कों पर नारे लगाने तक, यहां आरजी कर (RG Kar) अस्पताल की चिकित्सक से दुष्कर्म और उसकी हत्या के बाद भावनाओं के अभूतपूर्व ज्वार ने कई लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या यह पश्चिम बंगाल के राजनीतिक परिदृश्य में एक नया अध्याय शुरू कर सकता है।
राज्य में अनेक मुद्दों और संभावनाओं को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई हैं जिनमें कुछ लोग तृणमूल कांग्रेस के साथ बंगाली मध्यम वर्ग की निकटता के अंत की शुरुआत पर बात कर रहे हैं तो कुछ का मानना है कि सामाजिक प्रतिरोध अंतत: एक राजनीतिक रूप लेगा। कुछ लोगों की राय यह भी है कि भद्रजनों के बीच 'बस, अब बहुत हुआ' वाली सोच भी पनप रही है, जो उनकी असहायता की भावना की बेड़ियां तोड़ने में मददगार नजर आ रही है।
वरिष्ठ पत्रकार विश्वजीत भट्टाचार्य ने कहा कि आरजी कर अस्पताल की घटना ने शिक्षित नागरिक समाज की सीमित वर्ग चेतना को मिटा दिया है जिसने अब किसी की अगुवाई में काम करने के बजाय विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व चुना है। उन्होंने माना कि उन्होंने पहले कभी इस तरह के स्तर और चरित्र का स्वत: स्फूर्त जन-आंदोलन नहीं देखा।
विरोध प्रदर्शनों की योजना का श्रेय सोशल मीडिया के प्रभाव को : भट्टाचार्य ने इन व्यापक विरोध प्रदर्शनों की योजना का श्रेय सोशल मीडिया के प्रभाव को दिया। उन्होंने कहा कि आम लोगों में नाराजगी की गहरी और जटिल भावना ने उनकी सार्वजनिक प्रतिक्रिया को बांग्लादेश में 2013 के शाहबाग विरोध प्रदर्शनों से भी आगे बढ़ा दिया है। विरोध प्रदर्शनों में सामने आया है कि इसमें कोई सांप्रदायिक पहलू शामिल नहीं है।
उन्होंने कहा कि पीड़िता और उसके परिजनों के लिए न्याय की मांग सार्वजनिक और निजी स्थानों के सभी स्तरों पर महिलाओं की सुरक्षा की मांगों में बदल गई है। इसमें अच्छी तरह से स्थापित सामाजिक मानदंडों को चुनौती देना शामिल है जिसके साथ मध्यम वर्ग को जोड़ा जाता है।
कोलकाता के सामाजिक विज्ञान अध्ययन केंद्र में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर मैदुल इस्लाम तथाकथित गैर-राजनीतिक प्रदर्शनों को शहरी बंगालियों के लिए प्रतिनिधित्व के गहरे संकट से उपजा हुआ मानते हैं जिन्हें राजनीतिक निर्णय लेने की प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया है और स्थानीय क्षत्रपों की दया पर छोड़ दिया गया है।
इस्लाम ने इस बारे में बड़ी सावधानी से प्रतिक्रिया दी कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के लिए इसके क्या मायने हैं? उन्होंने कहा कि अधिक से अधिक मैं इस घटना को टीएमसी के साथ मध्यम वर्ग की करीबी के अंत की शुरुआत कह सकता हूं। ग्रामीण क्षेत्र अब भी इस बड़े पैमाने पर उपजी शहरी भावना के साथ पूरी तरह से जुड़ा नहीं है।
लेखिका और पूर्व नौकरशाह अनिता अग्निहोत्री का बयान : लेखिका और पूर्व नौकरशाह अनिता अग्निहोत्री ने नागरिकों के विरोध को स्वतंत्रता के बाद से कभी अनुभव नहीं की गई एक अनूठी घटना के रूप में वर्णित किया जिसमें महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया गया। यह सिर्फ अपराध पर प्रतिक्रिया नहीं है, न ही यह सिर्फ कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे से जुड़ा है। लोग इस बात से स्तब्ध थे और उन्हें गुस्सा आया कि यह जघन्य अपराध जबरन वसूली और संगठित गिरोहों के नेटवर्क का संभावित परिणाम है। सत्तारूढ़ पार्टी और विपक्ष दोनों के प्रति विश्वास की कमी के कारण लोगों का एक बड़ा वर्ग राजनीतिक बैनरों से दूर रहा है और वे दोनों पक्षों को न्याय पर संकीर्ण राजनीतिक लाभ को प्राथमिकता देते हुए पाते हैं।
अग्निहोत्री ने कहा कि आम लोगों ने समझ लिया है कि भारी समर्थन से चुनी गई सरकार भी जवाबदेही की कमी को उजागर कर सकती है और अपराधियों और षड्यंत्रकारियों के साथ इस तरह की उदासीनता दिखा सकती है। यह उनके लिए और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए एक सबक है। हालांकि, भट्टाचार्य का मानना है कि विरोध गैर-राजनीतिक होने के दावे के बावजूद आंदोलन गहराई से राजनीतिक बना हुआ है।(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta