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सेना के बहादुर डॉग जूम की सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई

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सुरेश एस डुग्गर

, शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2022 (16:51 IST)
जम्मू। 'जूम' को बचाने को कोई भी दुआ काम नहीं आई है। दुश्मन की गोलियों से मिले जख्मों की ताव को वह सहन नहीं कर पाया और वह शहादत को पा गया। सेना के डॉक्टरों ने खोजी श्वान जूम को बचाने की बहुतेरी कोशिश की थी, पर वे नाकाम ही रहे। गंभीर रूप से घायल हुए जूम की 72 घंटे के इलाज के बाद गुरुवार को श्रीनगर के 54 एडवांस फील्ड वेटरनरी अस्पताल (एएफवीएच) में मौत हो गई।
 
श्रीनगर स्थित चिनार कोर मुख्यालय में शहीद हुए खोजी श्वान जूम को सैन्य अधिकारियों ने आज शुक्रवार को श्रद्धांजलि दी। शुक्रवार सुबह हुए आयोजन में लेफ्टिनेंट जनरल एडीएस औजला समेत अन्य अधिकारी मौजूद रहे। आतंकियों के साथ मुठभेड़ के दौरान गंभीर रूप से घायल हुए जूम की 72 घंटे के इलाज के बाद गुरुवार को श्रीनगर के 54 एडवांस फील्ड वेटरनरी अस्पताल (एएफवीएच) में मौत हो गई।
 
वह 10 अक्टूबर को अनंतनाग के टंगपावा इलाके में आतंकियों की गोली का शिकार हुआ था। इससे पहले 30 जुलाई को उत्तरी कश्मीर के बारामुल्ला जिले में आतंक विरोधी ऑपरेशन में असॉल्ट डॉग एक्सेल गंभीर रूप से घायल होने के बाद शहीद हो गया था। सेना ने करीब ढाई माह में अपने दो बहादुर श्वान खो दिए हैं।

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सैन्य अधिकारियों ने बताया कि जूम की आयु 2 साल और 1 माह थी। वह बेल्जियम की चरवाहा नस्ल का था और पिछले 8 महीनों से सेवा में सक्रिय था। उसे आतंकियों का पता लगाने और उन्हें खत्म करने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। इससे पहले सेना ने उत्तरी कश्मीर के बारामुल्ला जिले के वानीगाम में 30 जुलाई को एक ऑपरेशन के दौरान 2 साल के असॉल्ट श्वान एक्सेल को खो दिया था। आजादी की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर 15 अगस्त को एक्सेल को मरणोपरांत वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
 
उत्तरी कमान के एक उच्च सैन्य अधिकारी ने बताया कि आर्मी असॉल्ट डॉग जूम ने 72 घंटे तक बहादुरी से जूझते 'इन द लाइन आफ ड्यूटी' पर अपनी जान की कुर्बानी दे दी। जूम को दक्षिण कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान उस स्थान पर भेजा गया, जहां आतंकी छिपे हुए थे।
 
'जूम' दक्षिण कश्मीर में कई सक्रिय ऑपरेशन में हिस्सा ले चुका है। सेना के अधिकारियों के मुताबिक 'जूम' बेहद प्रशिक्षित, आक्रामक और वफादार डॉग था। आर्मी के इस असॉल्ट डॉग को छिपे हुए आतंकियों का पता लगाने और उनके खात्मे की ट्रेनिंग दी गई थी।
 
जानकारी के लिए आर्मी के असॉल्ट डॉग को छिपे हुए आतंकियों की लोकेशन और उनके हथियारों, गोला-बारूद का पता लगाने के लिए सबसे पहले भेजा जाता है। इन कुत्तों पर कैमरे लगे होते हैं जिसके जरिए कंट्रोल रूम से निगरानी की जाती है।
 
इन कुत्तों को छिपे हुए आतंकियों की लोकेशन में बिना नजर में आए एंट्री की ट्रेनिंग दी जाती है। इन्हें ऑपरेशनों के दौरान न भौंकने की भी ट्रेनिंग दी जाती है। अगर आतंकी इन कुत्तों को देख लें तो ऐसी स्थिति में ये कुत्ते आतंकियों पर हमला करने में भी माहिर होते हैं।
 
सेना के कुत्तों द्वारा कई तरह की ड्यूटीज की जाती हैं। इसमें गार्ड ड्यूटी, पेट्रोलिंग, इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइसेस सहित विस्फोटकों को सूंघना, सुरंग का पता लगाना, ड्रग्स सहित प्रतिबंधित वस्तुओं को सूंघना, संभावित टारगेट पर हमला करना, मलबे का पता लगाना, छिपे हुए भगोड़ों और आतंकवादियों का पता करना शामिल हैं।
 
सेना के हर कुत्ते की देखरेख की पूरी जिम्मेदारी एक डॉग हैंडलर की होती है। उसे कुत्ते के खाने-पीने से लेकर साफ-सफाई का ध्यान रखना होता है और ड्यूटी के समय सभी काम कराने के लिए हैंडलर ही जिम्मेदार होता है। सेना के कुत्तों को मेरठ स्थित रिमाउंट एंड वेटरनरी कार्प सेंटर एंड स्कूलमें प्रशिक्षित किया जाता है। कुत्तों की नस्ल और योग्यता के आधार पर उन्हें सेना में शामिल करने से पहले कई चीजों में प्रशिक्षित किया जाता है। ये कुत्ते रिटायर होने से पहले लगभग 8 साल तक सेवा में रहते हैं।
 
Edited by: Ravindra Gupta

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