'जमीं पर अगर कहीं जन्नत है तो यहीं है यहीं है'

सुरेश एस डुग्गर
WD
गुलमर्ग और पहलगाम (जम्मू कश्मीर) चारों ओर बर्फ की सफेद की चादर। कहीं बर्फ से अठखेलियां करते मेहंदी लगे हाथ तो कहीं स्लेज पर बैठ दूसरे की ताकत को आजमाने की कोशिश। बच्चों के लिए बर्फ का मानव बनाना तो जैसे सैंकंडों का काम हो गया हो। बर्फ का पुतला बनाते बनाते रूई के फाहों के समान लगने वाले बर्फ के गोले एक दूसरे पर फैंक फिर प्यार जताने की प्रक्रिया में डूबे नवविवाहित जोड़े। भयानक सर्दी। फिर भी सभी के मुहं से बस यही निकलता है ‘जमीं पर अगर कहीं जन्नत है तो यहीं है, यहीं है।’

कश्मीर में बर्फबारी कोई पहली बार नहीं हुई है। बर्फीले सुनामी के दौर से भी यह गुजर चुकी है। मगर शांति की बयार के बीच होने वाली बर्फबारी ने एक बार फिर कश्मीर को धरती का स्वर्ग बना दिया है। पिछले साल तो यह धरती का नर्क बन गया था इसी बर्फबारी के कारण। वैसे आतंकवाद के कारण आज भी यह उन लोगों के लिए नर्क ही है जिनके सगे-संबंधी आए दिन आतंकवादियों की गोलियों का शिकार होते रहते हैं।

इस बार सूखे ने रिकार्ड तोड़ दिए तो आतंकवाद के कई वर्षों के बाद कश्मीर में आई बहार में आने वाले पर्यटकों ने भी रिकार्ड कायम कर दिया। वर्ष 2004 में तीन लाख ही पर्यटक आए थे। और फिर तत्कालीन सरकारों की शांति लाने की कोशिशों का नतीजा था कि पिछले साल यह संख्या बढ़ कर 15 लाख पहुंच गई। आने वालों का सिलसिला थमा नहीं है। अनवरत रूप से जारी आने वालों के लिए आज भी सैर सपाटे का प्रथम गंतव्य कश्मीर ही है।

‘आखिर हो भी क्यों न, यह तो वाकई धरती का स्वर्ग है,’मुंबई का एन भौंसले कहता था। उसकी नई नई शादी हुई थी एक महीना पहले। बर्फ देखने की चाहत थी तो वह पूरी हो गई। यह बात अलग है कि बर्फ ने उसके बजट को भी बिगाड़ दिया है क्योंकि बर्फ के कारण रास्ता बंद होने के कारण उसे अब कुछ दिन और रूकना पड़ेगा और ऐसी हालत में घरवालों से एटीएम में वैसे डलवाने के लिए निवेदन करने के अतिरिक्त उसके पास कोई चारा नहीं है।

ऐसी परिस्थिति के बावजूद उन सभी के लिए कश्मीर फिर भी धरती का स्वर्ग है। सफेद चादर में लिपटा हुआ गुलमर्ग और पहलगाम, उन्हें किसी फिल्मी सपने के पूरा होने से कम नहीं लगता। गुलमर्ग में बर्फ ने तो कई जगह पहाड़ बनाए थे तो पहलगाम में इससे अधिक बर्फ गिरी और अभी यह सिलसिला थम नहीं रहा था।

सिर्फ गुलमर्ग या पहलगाम ही कश्मीर को धरती का स्वर्ग नहीं बनाते थे बल्कि डल झील में तैरते शिकारों पर गिरी बर्फ और जम रही डल झील भी आने वालों के लिए किसी सपने से कम नहीं है।। उड़ी-मुजफ्राबाद मार्ग पर एक किनारे से सड़क के दूसरे छोर तक दिखने वाली मीलों बर्फ की सड़क और उसके दोनों ओर चिनार के पेड़ों की कतारों से झांकती धुंध जो नजारा पैदा करती थी उसे अपने कैमरे में कैद कर लेने को बेताब भीड़ के लिए गुलमर्ग में गंडोला भी कम आकर्षण पैदा नहीं करता था।

गंडोले की सवारी के दौरान नीचे सिवाय बर्फ के दरिया के जब कुछ नजर नहीं आता तो कईयों के मुंह से यकायक चीख भी निकल पड़ती थी। यह चीख सर्द वादियों में गूंज कर फिर वापस लौट आती थी। इस चीख का सुखद अहसास यही था कि यह चीख डर या आतंकी माहौल के मारे नहीं बल्कि खुशी के मारे की थी।

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