Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

Ramayan Again : रामायण से आपने क्या सीखा?

हमें फॉलो करें dialogue in ramayana

अनिरुद्ध जोशी

, मंगलवार, 5 मई 2020 (12:48 IST)
वाल्मीकि कृत रामायण को पढ़ने और रामानंद सागर की रामायण को देखने में बहुत फर्क है। पढ़ने के दौरान आपको जीवन, ज्ञान और धर्म की कई बातें पढ़ने और सीखने को मिलेगी। आओ जानते हैं कि हम राम या रामायण से क्या सीख सकते हैं।
 
 
1. कलिकाल में राम का नाम ही तारणहार है : दक्षिण भारत में राम के जीवन चरित्र को लेकर चर्चा होती है और उन्हें आदर्श मानकर उदाहरण दिए जाते हैं। वहां राम के जीवन को लेकर लोगों में बहुत उत्सुकता है, लेकिन उत्तर भारत में राम के जीवन से लोग कोई शिक्षा नहीं लेते बल्कि उन्होंने राम को पूज्जनीय बना दिया है। अर्थात पूजा तक ही सीमित रखा है। राम की याद भी तभी आती है जब रामनवमी आती है। विडंबना है कि राम के मंदिरों से ज्यादा तो शनि के मंदिरों में भीड़ रहती है। जो आपको डराता है आप उसे पूजते हो और जो आपसे प्रेम करता है आप उसे उपेक्षित कर देते हो। तब क्या सीखोंगे राम से? आप तो जगत पालक, उद्धारक और भक्त वात्सल्य को छोड़कर शनि की शरण में ही जाओ।
 
2. त्याग की भावना रखो : हम देश और समाज की बात नहीं करते लेकिन कम से कम आप अपने परिवार के प्रति तो त्याग की भावना रखो। प्रभु श्री राम ने राजमहल त्याग कर वनवास धारण किया। यह देखकर लक्ष्मण ने भी उनके साथ सभी सुख त्याग दिए, भारत ने अयोध्या का त्याग कर 14 वर्ष तक वनवासियों की तरह नंदीग्राम में जीवन बिताया। भरत जी नंदिग्राम में रहते हैं, तो शत्रुघ्न जी उनके आदेश से राज्य संचालन करते हैं। लक्ष्मण की पत्नी चाहती तो अपने पिता जनक के यहां चली जाती लेकिन नहीं उन्होंने भी सभी सुखों का त्याग कर दिया। यह देखकर शत्रुघ्न ने अपनी पत्नी श्रुतिकीर्ति से दूरी बना ली। भारत की पत्नी मांडवी ने भी भारत के साथ तपस्वियों जैसा जीवन बिताया। बड़े भाई पर संकट आया तो सभी भाइयों ने भी संकट को वरण कर लिया। 
 
इस महाकाव्य में राजा दशरथ की तीनों रानियों और चारों बेटों का चरित्र अलग-अलग होता है। लेकिन इस विविधता के बावजूद उनमें किस तरह की एकजुटता रहती है यह हर परिवार के लिए दुःख के समय से बाहर निकलने की सीख है।
 
3. बुराई से डरो : रामायण की सबसे बड़ी सीख थी बुराई पर अच्‍छाई की जीत। हमेशा अच्छे और सच्चे बने रहो। बुरी नियत से कोई कार्य मत करो। रामायण अनुसार व्यक्ति जब बुराई करता है तो उसे देखने वाले दो लोग होते हैं। एक वह खुद और दूसरा काल पुरुष या उस व्यक्ति के ईष्टदेव। इसलिए बुराई से डरो।
 
4. ऊंच नीच की भावन से बचो : प्रभु श्रीराम ने अपने जीवन से यह बताया और सिखाया कि संसार में कोई छोटा या कोई बड़ा नहीं होता। कोई उच्च वर्ग का या कोई निम्न वर्ग का नहीं होता है। प्रभु श्रीराम वन में वनवासियों और आदिवासियों की तरह ही रहे। उनका केवट, जटायु, संपाती, शबरी, वानर, ‍रीछ आदि कई जनजातियों ने साथ दिया। वे कई ऋषि मुनियों के आश्रम के साथ ही आदिवासियों की झोपड़ी में भी रहे थे। सिर्फ राम ही नहीं संपूर्ण रामायण में हर पात्र ऊंच और नीच के विचारों से मुक्त है।
 
भगवान श्री राम ने अपने जीवन में सभी से समान और सम्यक व्यवहार रखा। न किसी को राजा समझा और न रंक। न शक्तिशाली समझा और न कमजोर। उन्होंने पशु और पक्षियों के साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जैसे कि एक मनुष्य के साथ किया जाता है। उनका विनम्र आचरण और अपने से बड़ों और छोटों सबको सम्मान देना हम सबको एक सीख देता है।
 
5. कुसंगति से बचो : रामायण हमें शिक्षा देती है कि अच्‍छी संगति में रहो। कुसंगति में रहकर महापंडित भी राक्षस बन जाते हैं। जिस तरह रावण की संगत गलत थी उसी तरह कैकय की संगत भी गलत थी। नकारात्मक और अपराधिक किस्म के लोगों से दूर रहने में ही भलाई है। इसलिए हमें सीख मिलती है कि हमें अच्छी संगति में रहना चाहिए ताकि नकारात्मकता हम पर हावी ना हो।
 
6. भक्ति में है शक्ति : संपूर्ण ब्रह्मांड में लक्ष्मण, भरत और हनुमानजी जैसा भक्त खोजना मुश्किल है। निःस्वार्थ सेवा और भक्ति का ही कमाल है कि बड़े बड़े समुद्र को लांघा जा सकता है, पहाड़ों को उठाया जा सकता है और समुद्र पर सेतु बांधा जा सकता है।
 
जिन लोगों की भक्ति बदलती रहती है वे अधम मनुष्य अपना जीवन व्यर्थ गंवा देते हैं। संसार में प्रभु श्रीराम की भक्ति ही तारने वाली और संकटों से बचाने वाली है। भक्तों में वह भक्त श्रेष्ठ है जो श्रीराम और उनके भक्तों का भक्त है। 
 
हनुमानजी की भक्ति हमें यह बताती है कि हमें अपने आराध्य के चरणों में बिना किसी संदेह के अपने आप को समर्पित कर देना चाहिए। जब हम अपने आपको उस सर्वव्यापक के चरणों में समर्पित कर देते हैं, तो हमें निर्वाण या मोक्ष की प्राप्ति होती है और जन्म-मरण से छुटकारा मिलता है।
 
7. बदले की भावना न रखो : प्रभु श्रीराम से बदला लेना चाहती थी सूर्पणखां। रावण के मन में भी अपनी बहन सूर्पनखा के अपमान का बदला लेने की भावना थी। बदले की भावना रखने वाला क्रोध, विश्वासघात और प्रतिशोध के खुद के जाल में खुद ही उलझता जाता है। अक्सर लोग दूसरे को नुकसान पहुंचाने के चक्कर में बदले की आग में खुद को ही जला बैठते हैं। कई लोग तो बहुत ही छोटी सी बात को लेकर ही बदला लेने के बारे में सोचने लगते हैं, जो कि बहुत ही बुरी स्थिति है।
 
8. धैर्य और शांति : प्रभु श्रीराम का धैर्य देखते ही बनता है। उन्होंने कभी भी क्रोध, व्यग्रता या बैचेनी का परिचय नहीं दिया बल्कि विपरित परिस्थिति में धैर्य दिखाया और समस्याओं के समाधना की बात सोची। सिर्फ राम ही नहीं रामायण का हर पात्र इसी का परिचय देता है।
 
वीर पुरुषों में ही धैर्य होता है। इस धैर्य के कारण ही प्रभु श्रीराम के मुख पर परम शांति है।  उनका शांत और दया भाव से एक पुत्र, पति, भाई और एक राजा की जिम्मेदारियों का निर्वहन करना हमें आपसी प्रेम और सम्मान जैसे मानवीय गुणों से अवगत कराता है। एक खुशहाल और संतुष्ट जीवन के लिए धैर्य और शांति से काम लेने की जरूरत होती है।
 
9. वचन का पालन करो : श्री राम से यह शिक्षा मिलती है कि प्राण जाई पर वचन ना जाई। प्रभु श्रीराम ने अपने जीवन में कई लोगों को वचन दिया और उसे पूरा भी किया। सुग्रीव को राजपद दिया, वि‍भीषण को लंकेश बनाया और जामवंत ने जब कहा कि प्रभु इस युद्ध में तो मेरा पसीना ही नहीं निकला तब श्रीराम ने वचन दिया की आपकी इच्‍छा द्वापर में पूरी करूंगा। तब श्रीराम ने श्रीकृष्ण रूप में जामवंतजी से युद्ध किया और उनका पसीना बहा दिया।
 
10. हर पात्र से मिलती है शिक्षा : रामायण के हर पात्र से हमें मिलती है शिक्षा। कैकयी से यह शिक्षा मिलती है कि साथ में चमचे मत रखो या मंथरा जैसे सलाहकार मत रखो। दशरथ से यह शिक्षा मिलती है कि ऐसा कोई वचन मत दो जो मुसीबत खड़ी कर दे। हनुमानजी और लक्ष्मण जी से यह शिक्षा मिलती है कि प्रभु का प्रत्येक वचन ही हमारा जीवन और आदेश है। लक्ष्य को भेदना ही हमारा लक्ष्य है।
 
11. राज धर्म का पालन : प्रभु श्रीराम ने राजधर्म का पालन करने के लिए माता सीता का परित्याग कर दिया था। उन्होंने अपने राज्य की प्रजा को हर तरह से सुखी रखा। 
 
अंत में कहेंगी की रामायण से हमें माता-पिता की आज्ञा का पालन करना, भाइयों से प्रेम करना, गुरु का आदर करना, अपने से छोटों को प्रेम और सम्मान देना, एक पत्निव्रत धर्म का पालन करना, पति के प्रति पूर्ण समर्पण भाव रखना, राजधर्म और कर्तव्य का पालन करना। बुराइयां छोड़कर भक्तिपूर्ण जीवन यापन करना और भौतिक सुख की जगह कम साधनों को अपनाना आदि सभी हमें रामायण से शिक्षा मिलती है। संपूर्ण रामायण भोगवादि संस्कृति के विरुद्ध त्याग और तप की महिमा की शिक्षा देती है। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

12th Day of Ramadan 2020 : इबादत, परहेजगारी का आस्ताना है बारहवां रोजा