रामानंद सागर ने जो रामायण नाम का सीरियल बनाया है उसे बनाते वक्त उन्होंने कई तरह की रामायणों का अध्ययन किया और फिर धारवाहिक बनाया। ऐसे में उन्हें जो बातें जहां से ड्रामे के हिसाब से अच्छी लगी उसे उठा लिया। एक ही घटना का चित्रण अलग अलग रामायण में अलग अलग मिलेगा। यहां जानते हैं कि रामानंद सागर की रामायण और वाल्मीकि कृत रामायण में क्या अंतर है।
1. लक्ष्मण रेखा : रामायण सागर में लक्ष्मण रेखा का जिक्र किया है लेकिन यह प्रसंग वाल्मीकि रामायण में नहीं मिलता है। कहते हैं कि बंगाल की कृतिवास रामायण में लक्ष्मण रेखा का उल्लेख मिलता है। रामानंद सागर ने वहीं से यह उठाया होगा।
2. शबरी के जूठे बेर : रामानंद सागर की रामायण में राम द्वारा शबरी के झूठे बेर खाने का जिक्र है लेकिन वाल्मीकि रामायण में इसका जिक्र नहीं है। बस शबरी के बेर खाने का जिक्र है। कहते हैं कि जूठे बेर की चर्चा सबसे पहले 18वीं सदी के भक्त कवि प्रियदास के काव्य में मिलती है। संभवत: इसी जिक्र के आधार पर रामानंद सागर ने यह जोड़ा है।
3. अहिल्या प्रसंग : अहिल्या प्रसंग भी अलग है। वाल्मीकि कृत रामायण में जब इंद्र रूप बदलकर आते हैं तो अहिल्या समझ जाती है कि यह इंद्र हैं, लेकिन तब भी वह रुकती नहीं हैं। दक्षिण की कम्बन रामायण के पालकांतम (प्रथम सर्ग) के छंद 533 में अहिल्या को सहवास के बीच में इंद्र के होने का पता चलता है। मगर रति के नशे में अहिल्या रुक नहीं पाती हैं। रामानंद सागर ने इस प्रसंग को नहीं बताया गया है। अहिल्या उद्धार प्रसंग जरूर है।
4. हनुमान का समुद्र पार करना : रामायण में हनुमानजी का समुद्र को उड़कर पार करने का वर्णन रामायण अनुसार नहीं बताया गया है। रामायण धारावाहिक में वे एक ही छलांग में समुद्र पार कर जाते हैं जबकि वाल्मीकि कृत रामायण में समुद्र को लांघते हुए पार किया था। समुद्र के मध्य हनुमानजी दो स्थानों पर रुकते हैं।
निष्प्रमाणशरीर: सँल्लिलघ्डयिषुरर्णवम्।
बहुभ्यां पीडयामास चरणाभ्यां च पर्वतम्।। 11।।-वाल्मिकी रामायण सुंदरकांड
अर्थात : समुद्रको लांघने की इच्छा से उन्होंने अपने शरीर को बेहद बढ़ा लिया और अपनी दोनों भुजाओं तथा चरणों से उस पर्वत को दबाया।। 11।।
कपिवर हनुमानजी के द्वारा दबाए जाने पर तुरंत ही वह पर्वत कांप उठा और दो घड़ी डगमगाता रहा। उसके ऊपर जो वृक्ष उगे थे, उनकी डालियों के अग्रभाग फूलों से लदे हुए थे, किंतु उस पर्वत के हिलने से उनके वे सारे फूल झड़ गए।।12।।