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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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हनुमान जी लंका तैरकर गए थे या कि उड़कर, जानिए सच

हमें फॉलो करें हनुमान जी लंका तैरकर गए थे या कि उड़कर, जानिए सच

अनिरुद्ध जोशी

''अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता।''
''चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥''
 
हनुमानजी के लंका जाने के बारे में लोगों की भिन्न-भिन्न मान्यताएं हैं। कुछ मानते हैं कि वे तैरकर गए थे, कुछ के अनुसार वे उड़कर गए थे और कुछ के अनुसार वे छल्लांग लगाते हुए या एक टापू से दूसरे टापू पर कूदते हुए गए थे। हालांकि लोगों की मान्यताओं के बारे में हमें इतना ही कहना है कि ये उनकी मान्यताएं हैं।  
 
 
* हनुमानजी, नारदमुनी और सनतकुमार ही ऐसे देवता थे जो अपनी शक्ति से आकाशमार्ग में विचरण करते थे। जबकि अन्न देवी या देवताओं के वाहन होते थे। हालांकि ऐसे भी कई ऋषि और मुनि थे जो अपनी ही शक्ति से आकाशमार्ग से आया-जाया करते थे। हनुमान सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ हैं। कहते हैं कि वे धरती पर एक कल्प तक सशरीर रहेंगे।
 
इस शक्ति से उड़ते थे हनुमानजी
* हनुमानजी को योग की अष्ट सिद्धियां प्राप्त थी। इन आठ सिद्धियों के नाम है:- अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, इशीता, वशीकरण। उपरोक्त शक्ति में से लघिमा ऐसी शक्ति है जिसके माध्यम से उड़ा जा सकता है। हनुमानजी महिमा और लघिमा शक्ति के बल पर समुद्र पार कर गए थे।
 
* योग द्वारा प्रथम तीन माह तक लगातार ध्यान करते हुए शरीर और आकाश के संबंध में संयम करने से लघु अर्थात हलकी रुई जैसे पदार्थ की धारणा से आकाश में गमन करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। इस शक्ति को हासिल करने के लिए यम और नियम का पालन करना जरूरी है। साथ ही संयमित भोजन, वार्तालाप, विचार और भाव पर ध्यान देना अत्यंत जरूरी होता है।
 
* रामायण या रामचरित मानस में एक शब्द लिखा है लांघना। समुद्र को लांघना। लांघने का अर्थ तैरना, कूदना या छल्लांग लगाना नहीं है। लांघने का अर्थ है एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचने की क्रिया या वेग से पार करना। लांघना अर्थात लघिमा शक्ति का प्रतीक। हनुमान का समुद्र को लांघने का वर्णन वाल्मिकी रामायण और रामचरित मानस के सुंदरकांड में मिलता है।
 
* परामनोविज्ञान इस लघिमा शक्ति के संबंध में खोज करता रहा है। तिब्बत और हिमालय के कुछ भिक्षु या साधु पद्मासन लगा समाधि अवस्था में आकाश में कुछ ऊंचाई तक उठे हुए पाए गए हैं। आज भी ऐसे साधु, संत और भिक्षुओं को देखा जा सकता है। डिस्कवरी चैलन पर इस संबंध में एक डॉक्यूमेंट्री प्रसारित हुई थे जिसे यूट्यूब पर देखा जा सकता है।
 
समुद्र को लांघना :
* हनुमानजी ने अपनी उड़ान शक्ति का परिचय कई जगहों पर दिया उसमें से पांच प्रमुख घटनाएं हैं। पहली जब वे सूर्य को फल समझकर आकाश में उड़ चले थे। दूसरी जब वे लंका को पार करके गए और आए। तीसरी जब उन्होंने लंका दहन किया। चौथी जब वे संजीवनी बूटी को लाने के लिए द्रोणाचल पर्वत गए थे और पांचवीं जब वे राम और लक्ष्मण को अहिरावण से छुड़वाने के लिए पाताल लोक गए और आए थे।
 
* कहते हैं कि सबसे पहले बाली पुत्र अंगद को समुद्र लांघकर लंका जाने के लिए कहा गया था लेकिन अंगद ने कहा कि मैं चला तो जाऊंगा लेकिन पुन: लौटने की मुझमें क्षमता नहीं है। मैं लौटने का वचन नहीं दे सकता। तब जामवंत के याद दिलाने पर हनुमानजी को अपनी उड़ने की शक्ति का भान हुआ तो वे एक जगह रुककर समुद्र को पार कर गए। इससे पहले उन्होंने अपना विराट रूप धारण कर महेन्द्र पर्वत पर अपने पैर रखकर उसे हिला दिया। पर्वत के हिलने से उसकी कई चट्टानें और वृक्ष उखड़कर नीचे गिरने लगे। तब हनुमान वायु की गति से उड़ने लगे। उनके उड़ने की अत्यंत वेग के कारण उनके साथ वृक्ष भी हवा में उड़ने लगे और बाद में वे वृक्ष एक-एक करके समुद्र में गिरने लगे।
 
* समुद्र पार करते समय रास्ते में उनका सामना सुरसा नाम की नागमाता से हुआ जिसने राक्षसी का रूप धारण कर रखा था। सुरसा ने हनुमानजी को रोका और उन्हें खा जाने को कहा। समझाने पर जब वह नहीं मानी, तब हनुमान ने कहा कि अच्‍छा ठीक है मुझे खा लो। जैसे ही सुरसा उन्हें निगलने के लिए मुंह फैलाने लगी हनुमानजी अपनी महिमा शक्ति के बल पर अपने शरीर को बढ़ाने लगे। जैसे-जैसे सुरसा अपना मुंह बढ़ाती जाती, वैसे-वैसे हनुमानजी भी शरीर बढ़ाते जाते। बाद में हनुमान ने अचानक ही अपना शरीर बहुत छोटा कर लिया और सुरसा के मुंह में प्रवेश करके तुरंत ही बाहर निकल आए। हनुमानजी की बुद्धिमानी से सुरसा ने प्रसन्न होकर उनको आशीर्वाद दिया तथा उनकी सफलता की कामना की।
 
* राक्षसी माया का वध : समुद्र में एक राक्षसी रहती थी। वह माया करके आकाश में उड़ते हुए पक्षियों को पकड़ लेती थी। आकाश में जो जीव-जंतु उड़ा करते थे, वह जल में उनकी परछाईं देखकर अपनी माया से उनको निगल जाती थी। हनुमानजी ने उसका छल जानकर उसका वध कर दिया।
 
हनुमान शक्ति 
भगवान सूर्यदेव ने हनुमानजी को 9 तरह की विद्याओं का ज्ञान भी दिया था। धर्मराज यम ने उन्होंने अवध्य और निरोग होने का वरदान दिया, कुबेर ने युद्ध में कभी विषाद नहीं होगा ऐसा वरदान देकर उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्र से हनुमान जी को निर्भय कर दिया था। भगवान शंकर ने भी उन्हें उनके शस्त्रों द्वारा अवध्य होने का वरदान दिया। देवशिल्पी विश्वकर्मा ने वरदान दिया कि मेरे बनाए हुए जितने भी शस्त्र हैं, उनसे यह अवध्य रहेगा और चिंरजीवी होगा। देवराज इंद्र ने हनुमान जी को यह वरदान दिया कि यह बालक आज से मेरे वज्र द्वारा भी अवध्य रहेगा। जलदेवता वरुण ने यह वरदान दिया कि दस लाख वर्ष की आयु हो जाने पर भी मेरे पाश और जल से इस बालक की मृत्यु नहीं होगी। परमपिता ब्रह्मा ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह बालक दीर्घायु, महात्मा और सभी प्रकार के ब्रह्दण्डों से अवध्य होगा।
 
पुराणों के अनुसार हनुमान जी को कई देवी-देवताओं से विभिन्न प्रकार के वरदान और अस्त्र-शस्त्र प्राप्त थे। इन वरदानों और शस्त्रों के कारण हनुमान जी उद्धत भाव से घूमने लगे। यहां तक कि तपस्यारत मुनियों को भी शरारत कर तंग करने लगे। उनके पिता पवनदेव और माता केसरी के कहने के बावजूद भी हनुमान जी नहीं रूके। इसी दौरान एक शरारत के बाद अंगिरा और भृगुवंश के मुनियों ने कुपित होकर श्राप दिया कि वे अपने बल को भूल जाएं और उनको बल का आभास तब ही हो जब कोई उन्हें याद दिलाए।
 
निष्प्रमाणशरीर: सँल्लिलघ्डयिषुरर्णवम्।
बहुभ्यां पीडयामास चरणाभ्यां च पर्वतम्।। 11।।-वाल्मिकी रामायण सुंदरकांड
 
अर्थात : समुद्रको लांघने की इच्छा से उन्होंने अपने शरीर को बेहद बढ़ा लिया और अपनी दोनों भुजाओं तथा चरणों से उस पर्वत को दबाया।। 11।।
स चचालाचलश्चाशु मुहूर्तं कपिपीडित:।
तरुणां पुष्पिताग्राणां सर्वं पुष्पमशातयत्।।12।।-वाल्मिकी रामायण सुंदरकांड
कपिवर हनुमानजी के द्वारा दबाए जाने पर तुरंत ही वह पर्वत कांप उठा और दो घड़ी डगमगाता रहा। उसके ऊपर जो वृक्ष उगे थे, उनकी डालियों के अग्रभाग फूलों से लदे हुए थे, किंतु उस पर्वत के हिलने से उनके वे सारे फूल झड़ गए।।12।। 
 
लेविटेशन पॉवर
तिब्बत में कुछ ऐसे संस्कृत दस्तावेज पाए गए हैं जिससे यह पता चलता है कि कुछ लोग अपनी शक्ति से आकाश में उड़ते थे। विज्ञान प्रसार (वि.प्र.) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार की रिपोर्ट अनुसार कुछ सालों पहले चीन के पुरातत्व विभाग ने तिब्बत के ल्हासा में कुछ संस्कृत दस्तावेजों की खोज की है और उन्हें अनुवाद करने के लिए यूनिवर्सि‍टी ऑफ चंडीगढ़ भेजा गया था।
 
वहां की शोधकर्ता डॉ. रूथ रैना (Ruth Reyna) ने बताया कि इन दस्तावेजों में विमान के अंतरतारकीय माध्यम के निर्माण करने की विधि बताई गई है। अंतरखगोलीय माध्यम या अंतरतारकीय माध्यम हाइड्रोजन और हीलियम के कणों का मिश्रण होता है, जो अत्यंत कम घनत्व की स्थिति में सारे ब्रह्मांड में फैला हुआ है। अंग्रेजी में अंतरतारकीय को इन्टरस्टॅलर (interstellar) और अंतरतारकीय माध्यम को इन्टरस्टॅलर मीडियम (interstellar medium) कहते हैं।
 
उन्होंने आगे बताया विमान को संचालित करने के लिए गुरुत्वाकर्षण विरोधी (anti-gravitational) शक्ति की आवश्यकता होती है और 'लघिमा' की (anti-gravitational) शक्ति प्रणाली अनुरूप होती है। लघिमा (laghima) को संस्कृत में सिद्धि कहते हैं और इंग्लिश में इसे लेविटेशन (levitation) कहा जाता है। लघिमा योग के अनुसार आठ सिद्धियों में से एक सिद्धि है।
 
इसी लघिमा शक्ति का वर्णन और प्रणाली, चीन के उन दस्तावोजों में मिली है जिसका अनुवाद किया जा रहा है। लेविटेशन पॉवर कोई तंत्र विद्या नहीं है बल्कि यह ध्यान के अभ्यास से हासिल शक्ति है। दरअसल यह एक ब्रह्मांडीय शक्ति है जिसको करने के लिए यम, नियम और तप-ध्यान का पालन किया जाता है। हनुमानजी इसमें पारंगत थे।
 

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