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रामायण : वानरवीर अंगद के 7 रहस्य

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अनिरुद्ध जोशी

, सोमवार, 13 अप्रैल 2020 (15:41 IST)
वाल्मीकि कृत रामायण की राम कथा में अंगद की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अंगद कौन था और क्या थी उसकी शक्तियां आओ जानते हैं उसके बारे में 10 रहस्यमयी बातें।
 
 
1. कौन था अंगद : सुग्रीव के भाई बालि के पुत्र अंगद की माता का नाम तारा था जो एक अप्सरा थीं। 

 
2. अंगद के पिता की शिक्षा : जब प्रभु श्रीराम ने अंगद के पिता वानरराज बालि का वध कर दिया था तो बालि ने मरते वक्त अपने पुत्र को पास बुलाकर उसे ज्ञान की तीन बातें बताई थी। बालि ने कहा, पहली बात ध्यान रखना देश, काल और परिस्थितियों को हमेशा समझकर कार्य करना। दूसरी बात यह कि किसके साथ कब, कहां और कैसा व्यवहार करें, इसका सही निर्णय लेना। 

 
अंत में बालि ने तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात कही कि पसंद-नापसंद, सुख-दु:ख को सहन करना और क्षमाभाव के साथ जीवन व्यतीत करना। यही जीवन का सार है। बालि ने अपने पुत्र अंगद से ये बातें ध्यान रखते हुए कहा कि अब से तुम सुग्रीव के साथ रहो और हमेशा प्रभु श्रीराम की शरण में रहना वे त्रैलोक्यपति हैं। बालि के कहने पर ही अंगद ने सुग्रीव के साथ रहकर प्रभु श्रीराम की सेवा की। अंगद ने प्रभु श्री राम के द्वारा सौंपे गए उत्तरदायित्व को बखूबी संभाला।

 
3. अंगद बने युवराज : बालि वध के बाद सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य मिला और अंगद युवराज बनाए गए।

 
4. पराक्रमी अंगद : अंगद भी हनुमानजी की तरह पराक्रमी और बुद्धिमान था। हनुमानजी, जामवंतजी की तरह ही अंगद भी प्राण विद्या में पारंगत था। इस प्राण विद्या के बल पर ही वह जो चाहे कर सकता था। राम की सेना में अंगद ने बहुत पराक्रम दिखाया था। सीता की खोज में वानरी सेना का नेतृत्व युवराज अंगद ने ही किया। सम्पाती से सीता के लंका में होने की बात जानकर अंगद समुद्र पार जाने के लिए तैयार हो गए थे, परंतु दल का नेता होने के कारण जामवन्त ने इन्हें जाने नहीं दिया और हनुमानजी को लंका भेजा गया।

 
5. राम दूत अंगद : राम और रावण युद्ध के पूर्व हनुमानजी के बाद भगवान श्रीराम ने अंतिम वक्त पर अंगद को अपना दूत बनाकर लंका भेजा था ताकि सुलह हो और युद्ध टाला जा सके। अंगद ने वहां पहुंच कर रावण को शिक्षा दी। 

 
जौं अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई॥
कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥1॥
सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥
तनु पोषक निंदक अघ खानी जीवत सव सम चौदह प्रानी॥2॥

 
गोस्वामी तुलसीदास कृत महाकाव्य श्रीरामचरितमानस के लंकाकांड में बालि पुत्र अंगद रावण की सभा में रावण को सीख देते हुए बताते हैं कि कौन-से ऐसे 14 दुर्गुण है जिसके होने से मनुष्य मृतक के समान माना जाता है। उक्त चौपाई में उन्हीं चौदह गुणों की चर्चा की गई है।

 
6. अंगद का पैर : रावण ने भारी सभा में अंगद का अपमान किया तो अंगद ने भी रावण को खूब खरी खोटी सुनाई जिसके चलते रावण आगबबूला हो गया। रावण ने कहा कि यह क्या उच्चारण कर रहा है? यह कटु उच्चारण कर रहा है। इस मूर्ख वानर को पकड़ लो।

 
तब अंगद ने कहा कि मैं प्राण की एक क्रिया निश्चित कर रहा हूं, यदि चरित्र की उज्ज्वलता है तो मेरा यह पग है इस पग को यदि कोई एक क्षण भी अपने स्थान से दूर कर देगा तो मैं उस समय में माता सीता को त्याग करके राम को अयोध्या ले जाऊंगा। अंगद ने प्राण की क्रिया की और उनका शरीर विशाल एवं बलिष्‍ठ बन गया। तब उन्होंने भूमि पर अपना पैर स्थिर कर दिया।

 
राजसभा में कोई ऐसा बलिष्ठ नहीं था जो उसके पग को एक क्षण भर भी अपनी स्थिति से दूर कर सके। अंगद का पग जब एक क्षण भर दूर नहीं हुआ तो रावण उस समय स्वतः चला परन्तु रावण के आते ही उन्होंने कहा कि यह अधिराज है, अधिराजों से पग उठवाना सुन्दर नहीं है। उन्होंने अपने पग को अपनी स्थली में नियुक्त कर दिया और कहा कि हे रावण! तुम्हें मेरे चरणों को स्पर्श करना निरर्थक है। यदि तुम राम के चरणों को स्पर्श करो तो तुम्हारा कल्याण हो सकता है। रावण मौन होकर अपने स्थल पर विराजमान हो गया।

 
7. अंत में क्या हुआ : लंका-विजय के बाद श्रीराम का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ। इसके बाद सभी कपि नायकों को जब विदा करके भगवान श्रीराम अंगद के पास आए, तब अंगद भगवान से बोले- 'नाथ! मेरे पिता ने मरते समय मुझे आप के चरणों में डाला था अब आप मेरा त्याग न करें। मुझे अपने चरणों में ही पड़ा रहने दें। यह कहकर अंगद भगवान के चरणों में गिर पड़े। भगवान राम ने उन्हें हृदय से लगाकर अपने निजी वस्त्र तथा आभूषण अंगद को पहनाए और उन्हें समझा बुझाकर किष्किन्धा के लिए रवाना किया।

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