रावण की सभा में श्रीराम ने अंगद को ही क्यों दूत बनाकर भेजा, हनुमानजी को भी भेज सकते थे?

अनिरुद्ध जोशी
राम की सेना में सुग्रीव के साथ वानर राज बालि और अप्सरा तारा का पुत्र अंगद भी था। राम और रावण युद्ध के पूर्व भगवान श्रीराम ने अंगद को अपना दूत बनाकर लंका भेजा था। लेकिन सवाल यह उठता है कि हनुमानजी के रहते हुए अंगद को क्यों श्रीराम ने दूत बनाकर भेजा?
 
 
दरअसल, जब प्रभु श्रीराम लंका पहुंच गए तब उन्होंने रावण के पास अपना दूत भेजने का विचार किया। सभा में सभी ने प्रस्ताव किया कि हनुमानजी को ही दूत बनाकर भेजना चाहिए। लेकिन रामजी ने यह कहा कि अगर रावण के पास फिर से हनुमानजी को भेजा गया तो यह संदेश जाएगा कि राम की सेना में अकेले हनुमान ही महावीर हैं। इसलिए किसी अन्य व्यक्ति को दूत बनाकर भेजा जाना चहिए जो हनुमान की तरह पराक्रमी और बुद्धिमान हो।
 
 
ऐसे में प्रभु श्रीराम की नजर अंगद पर जा टिकी। प्रभु श्रीराम ने अंगद से कहा कि हे अंगद! रावण के द्वार जाओ। कुछ सुलह हो जाए, उनके और हमारे विचारों में एकता आ जाए, जाओ तुम उनको शिक्षा दो। ताकी युद्ध ना हो।...अंगद ने भी प्रभु श्रीराम के द्वारा सौंपे गए उत्तरदायित्व को बखूबी संभाला।
 
 
रावण की सभा में अंगद : 
जब अंगद रावण की सभा में पहुंचे तो वहां नाना प्रकार के वैज्ञानिक भी विराजमान थे, वण और उनके सभी पुत्र विराजमान थे। रावण ने भारी सभा में अंगद का अपमान किया तो अंगद ने भी रावण को खूब खरी खोटी सुनाई जिसके चलते रावण आगबबूला हो गया। रावण ने कहा कि यह क्या उच्चारण कर रहा है? यह कटु उच्चारण कर रहा है। इस मूर्ख वानर को पकड़ लो।
 
 
तब अंगद ने कहा कि मैं प्राण की एक क्रिया निश्चित कर रहा हूं, यदि चरित्र की उज्ज्वलता है तो मेरा यह पग है इस पग को यदि कोई एक क्षण भी अपने स्थान से दूर कर देगा तो मैं उस समय में माता सीता को त्याग करके राम को अयोध्या ले जाऊंगा। अंगद ने प्राण की क्रिया की और उनका शरीर विशाल एवं बलिष्‍ठ बन गया। तब उन्होंने भूमि पर अपना पैर स्थिर कर दिया।
 
 
राजसभा में कोई ऐसा बलिष्ठ नहीं था जो उसके पग को एक क्षण भर भी अपनी स्थिति से दूर कर सके। अंगद का पग जब एक क्षण भर दूर नहीं हुआ तो रावण उस समय स्वतः चला परन्तु रावण के आते ही उन्होंने कहा कि यह अधिराज है, अधिराजों से पग उठवाना सुन्दर नहीं है। उन्होंने अपने पग को अपनी स्थली में नियुक्त कर दिया और कहा कि हे रावण! तुम्हें मेरे चरणों को स्पर्श करना निरर्थक है। यदि तुम राम के चरणों को स्पर्श करो तो तुम्हारा कल्याण हो सकता है। रावण मौन होकर अपने स्थल पर विराजमान हो गया।
 
 
सरल भाषा में अंत में रावण जब खुद अंगद के पांव उठाने आया तो अंगद ने कहा कि मेरे पांव क्यों पकड़ते हो पकड़ना है तो मेरे स्वामी राम के चरण पकड़ लो वह दयालु और शरणागतवत्सल हैं। उनकी शरण में जाओ तो प्राण बच जाएंगे अन्यथा युद्घ में बंधु-बांधवों समेत मृत्यु को प्राप्त हो जाओगे। यह सुनकर रावण ने अपनी इज्जत बचाने में ही अपनी भलाई समझी।
 
 
तब अंगद ने कहा:-
जौं अस करौं तदपि न बड़ाई। मुएहि बधें नहिं कछु मनुसाई॥
कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥1॥
सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥
तनु पोषक निंदक अघ खानी जीवत सव सम चौदह प्रानी॥2॥
 
 
गोस्वामी तुलसीदास कृत महाकाव्य श्रीरामचरितमानस के लंकाकांड में बालि पुत्र अंगद रावण की सभा में रावण को सीख देते हुए बताते हैं कि कौन-से ऐसे 14 दुर्गुण है जिसके होने से मनुष्य मृतक के समान माना जाता है। उक्त चौपाई में उन्हीं चौदह गुणों की चर्चा की गई है।
 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

क्या गया जी श्राद्ध से होती है मोक्ष की प्राप्ति !

Budh asta 2024: बुध अस्त, इन राशियों के जातकों के लिए आने वाली है मुसीबत, कर लें ये उपाय

Weekly Horoscope: इस हफ्ते किसे मिलेगा भाग्य का साथ, जानें साप्ताहिक राशिफल (मेष से मीन राशि तक)

श्राद्ध पक्ष कब से प्रारंभ हो रहे हैं और कब है सर्वपितृ अमावस्या?

Shani gochar 2025: शनि के कुंभ राशि से निकलते ही इन 4 राशियों को परेशानियों से मिलेगा छुटकारा

सभी देखें

धर्म संसार

19 सितंबर 2024 : आपका जन्मदिन

Shraddha Paksha 2024: पितृ पक्ष में यदि अनुचित जगह पर श्राद्ध कर्म किया तो उसका नहीं मिलेगा फल

19 सितंबर 2024, गुरुवार के शुभ मुहूर्त

गुजरात के 10 प्रमुख धार्मिक स्थलों पर जाना न भूलें

Sukra Gochar : शुक्र का तुला राशि में गोचर, 4 राशियों के जीवन में बढ़ जाएंगी सुख-सुविधाएं

अगला लेख
More