Story of Raksha Bandhan: रक्षा बंधन का पर्व कब और कैसे शुरू हुआ इस संबंध में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। इस संबंध में कुछ पौराणिक कथाएं मिलती हैं। इन कथाओं के आधार पर यह कहा जाता है कि प्राचीन काल से ही यह पर्व मनाया जाता रहा है। महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी। आओ जानते हैं कि वे कौन सी पौराणिक कथाएं हैं प्रचलन में।
1. भविष्य पुराण में कहीं पर लिखा है कि सबसे पहले इंद्र की पत्नी शची ने वृत्रासुर से युद्ध में इंद्र की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधा था। इसलिए जब भी कोई युद्ध में जाता है तो उसकी कलाई पर कलावा, मौली या रक्षा सूत्र बांधकर उसकी पूजा की जाती है। देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को अपना भाई बनाकर हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए यह बंधन बांधा था और अपने बंधक पति श्री हरि विष्णु को अपने साथ ले गई थी।
2. माना जाता है कि राजसूय यज्ञ के समय जब श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध कर दिया था तो तब उनकी अंगुली से खून बहने लगा था। इसे देखकर द्रौपदी ने तुरंत ही अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उनकी अंगुली पर बांध दिया था। इस कर्म के बदले श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को आशीर्वाद देकर कहा था कि एक दिन मैं अवश्य तुम्हारी साड़ी की कीमत अदा करूंगा। इन कर्मों की वजह से श्रीकृष्ण ने द्रौपदी के चीरहरण के समय उनकी साड़ी को इस पुण्य के बदले ब्याज सहित इतना बढ़ाकर लौटा दिया और उनकी लाज बच गई। कहते हैं कि इसी के बाद रक्षा बंधन पर बहन द्वारा राखी बांधने की परंपरा की शुरुआत हुई थी।
3. स्कंद पुराण, पद्म पुराण और श्रीमद्भागवत पुराण की कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने अदिति के गर्भ से वामन अवतार लिया और ब्राह्मण के वेश में असुरराज राजा बली के द्वार भिक्षा मांगने पहुंच गए। चूंकि राज बली महान दानवीर थे तो उन्होंने वचन दे दिया कि आप जो भी मांगोगे मैं वह दूंगा। भगवान ने बलि से भिक्षा में तीन पग भूमि की मांग ली। बली ने तत्काल हां कर दी, क्योंकि तीन पग ही भूमि तो देना थी। लेकिन तब भगवान वामन ने अपना विशाल रूप प्रकट किया और दो पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नाप लिया। फिर पूछा कि राजन अब बताइये कि तीसरा पग कहां रखूं? तब विष्णुभक्त राजा बली ने कहा, भगवान आप मेरे सिर पर रख लीजिए और फिर भगवान ने राजा बली को रसातल का राजा बनाकर अजर-अमर होने का वरदान दे दिया। लेकिन बली ने इस वरदान के साथ ही अपनी भक्ति के बल पर भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन भी ले लिया।
भगवान को वामनावतार के बाद पुन: लक्ष्मी के पास जाना था लेकिन भगवान ये वचन देकर फंस गए और वे वहीं रसातल में बली की सेवा में रहने लगे। उधर, इस बात से माता लक्ष्मी चिंतित हो गई। ऐसे में नारदजी ने लक्ष्मी जी को एक उपाय बताया। तब लक्ष्मीजी ने राजा बली को राखी बांध अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में हैं।