भाई को बनाएँ पक्का दोस्त

रक्षाबंधन का इतिहास

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
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' रक्षा सूत्र' बाँधने की परंपरा तो वैदिक काल से रही है जबकि व्यक्ति को यज्ञ, युद्ध, आखेट, नए संकल्प और धार्मिक अनुष्ठान के दौरान कलाई पर नाड़ा या सू‍त का धागा जिसे 'मौली' कहते हैं- बाँधा जाता था। यही रक्षा सूत्र आगे चलकर पति-पत्नी, माँ-बेटे और फिर भाई-बहन के प्यार का प्रतीक बन गया। रक्षा बंधन के अलावा भी अन्य कई धार्मिक मौकों पर आज भी रक्षा सूत्र (नाड़ा) बाँधा जाता है।

रक्षा-बंधन की शुरुआत :
रक्षा-बंधन मनाने की परंपरा की शुरुआत के संबंध में मतभेद हो सकते हैं किंतु यह सभी धर्मों के लोगों के लिए महत्व की बात हो सकती है। रक्षा सूत्र को बोलचाल की भाषा में राखी कहा जाता है जो वेद के संस्कृत शब्द 'रक्षिका' का अपभ्रंश है।

भाई-बहन के इस पवित्र त्योहार को प्रचीनकाल में अलग रूप में मनाया जाता था। भविष्य पुराण अनुसार दैत्यों के अत्याचारों से क्षुब्ध देवताओं के राजा इन्द्र ने देवगुरु ब्रहस्पति से अनुरोध कर रक्षा विधान करने को कहा। श्र ावण मास की पूर्णिमा को प्रातःकाल रक्षा विधान संपन्न किया गया। तत्पश्चात्य इंद्र की पत्नी शचि (इंद्राणी) ने शत्रुओं से रक्षा हेतु इंद्र को रक्षा सूत्र बाँधा। तभी से श्रावण मास की पूर्णिमा को यह महान पर्व मनाया जाता है। इसी के चलते युद्ध पर जाने वाले यौद्धाओं को रक्षा सूत्र बाँधने की परंपरा का जन्म भी हुआ।

इसके अलावा भी रक्षा सूत्र बाँधने संबंधी कई पौराणिक कथाएँ हैं, लेकिन मुगलकाल में रक्षा सूत्र को बाँधने की परंपरा में थोड़ा- सा बदलाव हुआ। हिंदू माँ-बहनों की मर्यादा खतरे में पड़ गई थी। इसी के मद्देनजर रक्षा सूत्र ने व्यापक रूप धारण किया और यह त्योहार पति-पत्नी के प्रेम के अलावा भाई-बहन और माँ-बेटे के प्रेम का प्रतीक भी बन गया। वर्तमान युग में रक्षा-बंधन का त्योहार ज्यादातर भाई-बहन के लिए सिमटकर रह गया।

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दोस्त बनाएँ : आपका भाई या आपकी बहन आपके लिए दुनिया के सर्वश्रेष्ठ दोस्त साबित हो सकते हैं जिनके साथ आप अपने सुख-दुःख बाँटकर खुश रह सकते हैं। भाई ही बहन की मदद करने के लिए हरदम तैयार रहता है और बहन भी भाई की मदद के लिए सदा तत्पर रहती है। इस रक्षा बंधन पर भाई के हाथ में बाँधें दोस्ती का सूत्र और भाई भी वचन के साथ दोस्ती का नेक दें।

अनोखा प्यार : रक्षाबंधन का दिन ऐसा मौका है, जबकि भाई-बहन गिले-शिकवे भुलाकर आपसी प्यार को बाँटते हैं। भाई की रक्षा के लिए बहनें उसकी कलाई पर राखी बाँधकर उसकी लंबी आयु की कामना करती हैं। भाई भी बहन को उपहार देकर उसके सुख-दुःख में साथ देने का वचन देता है। इस अनूठे मौके पर अनोखा उपहार देकर अपनी भावनाएँ व्यक्त कर सकते हैं।

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हाय रे महँगाई : पहले सूत का एक पीला धागा मिलता था जिस पर फुंदा चिपका होता था, आज भी वह मिलता है, लेकिन उसे अब कोई नहीं लेता। अब सोने, चाँदी और मोती की राखियाँ मिलती हैं। फिर राखियों के भी क्लासिफिकेशन हो चले हैं। बड़ों के लिए अलग और बच्चों के लिए फैंसी राखियाँ मिलती हैं। अब उसके साथ ग्रीटिंग कार्ड भी मिलने लगे हैं।

अब मध्यम दर्जे की राखियाँ भी इतनी महँगी हैं कि सोचना पड़ता है। बहन को दिए जाने वाले उपहार भी समझ में नहीं आते। राखियों के बाजार में भी महँगाई का बोलबाला है। बाजारवाद के चलते प्रत्येक त्योहारों पर लूट का बाजार भी गर्म रहता है। ऐसे में राखी के लिए पूर्व से ही तैयारी करके रखें और भले ही चीजें महँगी हों, लेकिन अच्‍छी और यादगार हों तो राखी का त्योहार याद रहता है।

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