जयपुर। राजस्थान में पन्द्रहवीं विधानसभा चुनाव से पहले हुए चौदह चुनावों में अब तक कांग्रेस नौ और भारतीय जनता पार्टी चार बार सत्ता बनाने में सफल रही हैं जबकि एक बार जनता पार्टी की सरकार बनी है। कांग्रेस ने पहले विधानसभा चुनाव वर्ष 1952 में 160 विधानसभा सीटों में से 82 सीटें जीतकर अपनी सरकार बनाई और कांग्रेस के जयनारायण व्यास मुख्यमंत्री बने। हालांकि इस चुनाव में मुख्यमंत्री रहते जयनारायण व्यास ने जोधपुर शहर बी एवं जालोर ए से दो चुनाव लड़े लेकिन दोनों जगहों पर वह चुनाव हार गए। बाद में उपचुनाव जीता। उस दौरान कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा 39 निर्दलीय चुनाव जीतकर विधानसभा में आए जबकि राम राज्य परिषद (आरआरपी) ने 24 सीटें जीतीं।
वर्ष 1957 के चुनाव में भी कांग्रेस ने 119 सीटें जीतकर सरकार बनाई और मोहनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री बने। इसमें आरआरपी ने सत्रह जबकि निर्दलीयों ने 32 सीटें जीतकर दूसरी बार दूसरे नम्बर पर रहे। इस चुनाव में जनसंघ ने छह एवं एक सीपीआई एवं एक पीएसपी का प्रत्याशी चुनाव जीता। वर्ष 1962 में कांग्रेस के 88 उम्मीदवार चुनाव जीतकर आए और उसने फिर सरकार बनाई। स्वतंत्र पार्टी ने 36, जनसंघ के 15, सीपीआई एवं सोशलिस्ट पार्टी के पांच-पांच तथा आरआरपी एवं पीएसपी के दो-दो उम्मीदवारों ने चुनाव जीता।
इसके बाद वर्ष 1967 में हुए विधानसभा चुनाव में 184 विधानसभा सीटों की विधानसभा में कांग्रेस 89 सीटें ही जीत पाई। कांग्रेस के सुखाड़ियां दूसरी बार मुख्यमंत्री बने लेकिन अगले ही दिन राष्ट्रपति शासन लग गया। हालांकि 49 सीटें जीतने वाले दूसरे सबसे बड़े दल स्वतंत्र पार्टी के महारावल लक्ष्मण सिंह के नेतृत्व में अन्य दल एवं निर्दलीयों के संयुक्त विधायक दल ने भी सरकार बनाने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाए। राष्ट्रपति शासन हटने के बाद 26 अप्रैल 1967 को सुखाड़िया फिर मुख्यमंत्री बन गए।
वर्ष 1972 में पांचवीं विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस ने 145 सीटें जीतकर भारी बहुमत के साथ लगातार पांचवीं बार सरकार बनाई। इस चुनाव में जनसंघ ने आठ स्वतंत्र पार्टी एवं निर्दलीय ने ग्यारह-ग्यारह सीटें जीतीं जबकि सीपीआई एवं मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का एक-एक उम्मीदवार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचा। हरिदेव जोशी के मुख्यमंत्री रहते 29 अप्रैल 1973 को राज्य में फिर राष्ट्रपति शासन लग गया था।
वर्ष 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को पहली बार हार का सामना करना पड़ा और 150 सीटें जीतकर भारी बहुमत के साथ जनता पार्टी ने पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनाई और भैरोसिंह शेखावत पहली बार मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव में कांग्रेस केवल 41 सीटें ही जीत पाई। निर्दलीय छह, माकपा का एक एवं एक प्रत्याशी सीपीआई का चुनाव जीत पाया।
इसके बाद वर्ष 1980 में हुए चुनाव में फिर उलटफेर हुआ और कांग्रेस (आई) ने 133 सीटें जीतीं और वह फिर सत्ता में लौटी और छह जून को जगन्नाथ पहाड़ियां मुख्यमंत्री बने। बाद में जुलाई में शिवचरण माथुर मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव में इससे पहले 150 सीटें जीतने वाली जनता पार्टी केवल आठ सीट ही जीत पाई जबकि 1980 में अस्तित्व में आई भारतीय जनता पार्टी ने 32 सीटें जीतीं। इसके अलावा कांग्रेस (यू) के छह, जनता पार्टी (एस) सात, सीपीआई एवं माकपा के एक-एक तथा बारह निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव जीता।
आठवीं विधानसभा के लिए वर्ष 1985 में हुए चुनाव में भी कांग्रेस ने 113 सीटें जीतकर सरकार बनाई। उस दौरान पहले हीरालाल देवपुरा एवं बाद में हरिदेव जोशी मुख्यमंत्री बने। भाजपा ने 39, लोकदल ने 27, जनता पार्टी ने दस एवं माकपा का एक तथा नौ निर्दलीयों ने चुनाव जीता।
वर्ष 1990 के विधानसभा चुनाव में भाजपा पहली बार चुनाव जीतने वाली सबसे बड़ी पार्टी उभरकर आई और 55 सीटें जीतने वाले दूसरी सबसे बड़ी पार्टी जनता दल के साथ गठबंधन कर राज्य में भैरोसिंह शेखावत के नेतृत्व में दूसरी बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। शेखावत दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस पचास सीटें ही जीत पाई।
इसके बाद 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में भी भाजपा लगातार दूसरी बार सरकार बनाने में कामयाब रही और शेखावत राज्य के तीसरी बार मुख्यमंत्री बने। हालांकि भाजपा को इस चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ और वह 96 सीटें ही जीत पाई लेकिन निर्दलीयों की मदद से सरकार बनाने में सफल रही। इसमें 21 निर्दलीयों ने चुनाव जीता था। कांग्रेस ने इस चुनाव में 76 सीटें जीतीं।
ग्यारहवीं विधानसभा चुनाव में फिर कांग्रेस 150 सीटें जीतकर भारी बहुमत के साथ सत्ता में लौटी और अशोक गहलोत पहली बार मुख्यमंत्री बने। इसमें भाजपा केवल 33 सीटें ही जीत पाई। इसके अगले चुनाव वर्ष 2003 में फिर उलटफेर हुआ और भाजपा 124 सीटें जीतकर तीसरी बार सरकार बनाने में सफल हुई और वसुंधरा राजे पहली बार मुख्यमंत्री बनीं। इसमें कांग्रेस के केवल 56 प्रत्याशी ही चुनाव जीत पाए।
इसके बाद तेरहवीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ लेकिन गहलोत के नेतृत्व में सत्ता बनाने में सफल रही और गहलोत दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस ने 96 सीटें जीतीं और छह सीट जीतने वाले बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवारों को कांग्रेस में शामिल कर सत्ता पर अपना कब्जा जमाया।
भाजपा को 78 सीटें मिली। पिछले विधानसभा चुनाव में फिर उलटफेर हुआ और भाजपा अब तक के रिकॉर्ड तोड़ते हुए सबसे अधिक 163 सीटें जीतकर सरकार में लौटी और श्रीमती राजे दूसरी बार मुख्यमंत्री बनीं। अब पन्द्रहवीं विधानसभा के लिए चुनाव हो चुका है और परिणाम ग्यारह दिसम्बर को आएंगे।