पंजाब में छाए 'बादल'

Webdunia
मंगलवार, 6 मार्च 2012 (20:28 IST)
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शिरोमणि अकाली दल ने पंजाब विधानसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया और राज्य की राजनीति के भीष्म पितामह प्रकाशसिंह बादल तथा उनके पुत्र सुखबीरसिंह बादल के नेतृत्व में ऐसा करने वाला राज्य का यह पहला दल बन गया।

प्रकाशसिंह बादल पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनकर एक नया रिकॉर्ड बना सकते हैं। ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए शिरोमणि अकाली दल के वयोवृद्ध संरक्षक ने उल्लेख किया कि पार्टी की कोर कमेटी ही पार्टी का नेता चुनेगी। हालांकि सुखबीर ने कहा कि उनके पिता पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे।

सत्ता विरोधी कारकों से लड़ाई के साथ ही अकाली-भाजपा गठबंधन को भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद जैसे आरोपों का सामना करना पड़ा। यदि गठबंधन प्रकाशसिंह बादल को मुख्यमंत्री के रूप में चुनता है तो वे पांचवीं बार राज्य के मुखिया बनकर नया रिकॉर्ड बनाएंगे। उन्होंने 1997 और 2007 से दो बार पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। इससे पहले वह 1977 से 1980 और 1970 से 1971 तक मुख्यमंत्री रहे।

बादल सीनियर ने गठबंधन की जीत का श्रेय सुखबीर को दिया, जो जनवरी 2008 में अपने पिता की जगह पार्टी अध्यक्ष बने और एक साल बाद उपमुख्यमंत्री बने। यह पहला मामला था जब राज्य में पिता-पुत्र ने सरकार के दो शीषर्स्थ पदों को संभाला।

प्रकाशसिंह बादल ने जनवरी 2009 में घोषणा की कि सुखबीर उपमुख्यमंत्री बनेंगे, जिससे सहयोगी भाजपा भौंचक रह गई, लेकिन प्रकाशसिंह बादल भाजपा नेतृत्व को विश्वास में लेने में सफल रहे।

अमेरिका से एमबीए की डिग्री प्राप्त 50 वर्षीय सुखबीर 31 जनवरी 2008 को अकाली दल के सबसे युवा नेता बने। लाम्बी निर्वाचन क्षेत्र से बादल सीनियर के चचेरे भाई महेश इंदर सिंह और उनके छोटे भाई गुरदास के चुनावी मैदान में होने के बावजूद मुख्यमंत्री ने रिकॉर्ड 24 हजार 739 मतों से जीत दर्ज की, जबकि पांच साल पहले उन्होंने नौ हजार 187 मतों से जीत दर्ज की थी।

यह तीसरी बार था जब मुख्यमंत्री के चचेरे भाई के मैदान में होने से दो बादल एक-दूसरे के खिलाफ खड़े थे। इस बार उनके छोटे भाई गुरदास भी मैदान में थे। बादल 1970 से 71 तक 15 महीने और 1977 से 80 तक 32 महीने बिना किसी गठबंधन के मुख्यमंत्री रहे। 1997 से शुरू हुआ उनका कार्यकाल भाजपा की मदद से पांच साल तक चला।

बादल ने लाहौर के क्रिश्चियन कॉलेज से स्नातक किया था। वे 1947 में शिरोमणि अकाली दल से जुड़कर राजनीति में आए। सबसे पहले वह गांव के सरपंच बने और फिर ब्लॉक समिति के अध्यक्ष बने। 1957 में वह कांग्रेस के बैनर तले विधायक बने। उस समय एसएडी ने कांग्रेस के टिकट पर लड़ने का एक समझौता किया था।

बादल एसएडी के टिकट पर 1969 में मध्यावधि चुनाव के दौरान गिदरबाह निर्वाचन क्षेत्र से दोबारा विधायक चुने गए । वह पंचायती राज , पशु पालन मंत्री बने ।

जब तत्कालीन मुख्यमंत्री गुरनाम सिंह कांग्रेस में शामिल हुए तो एसएडी सदस्यों ने रातों रात 27 मार्च 1970 को बादल को अपना नेता चुन लिया और जनसंघ के समर्थन से सरकार बनाई, लेकिन अंदरूनी तकरार के चलते उन्होंने 13 जून 1971 को राज्यपाल से सदन को भंग करने की सिफारिश की। बादल 1972 के चुनाव में फिर निर्वाचित हुए, लेकिन एसएडी सरकार नहीं बना सका। तब वह विपक्ष के नेता बने। (भाषा)

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