13 अखाड़ों में से दो शैवपंथ का श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी- दारागंज और उदासीन पंथ का श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयागराज में ही है। इसके अलावा यहां अन्य सभी अखाड़ों और मठों का प्रतिनिधित्व करने वाले मठ एवं आश्रम भी है।
भारतवर्ष में वर्तमान में 7 अखाड़े एवं 52 मढ़िया हैं। प्रमुख अखाड़ों के नाम हैं: निर्वाणी, निरंजनी, जूना, अटल, आवाहन, अग्नि तथा आनन्द। जो 52 मढ़ियां हैं उनके नाम किसी पराक्रमी नेता, सन्त या प्रसिद्ध स्थान के नाम पर रखे गए हैं। ये मढ़िया दावों के अधीन आती है। एक अखाड़े में 8 दावे होते हैं, जिनको गिरी एवं पुरी दावों के रूप में बांटा गया है। पर्वत एवं सागर को लेकर गिरि दावे हैं, जिनमें 27 मढ़ियां हैं। भारती, सरस्वती, तीर्थ, आश्रम, वन एवं अरण्य को लेकर पुरी दावे भी 4 हैं, जिनके अधीन 25 मढ़ियां हैं। रामदत्ती ऋद्धिनाथी, चारमढ़ी, दस मढ़ी, वैकुण्ठी, सहजावत, दरियाव तथा भारती ये 8 दावों के नाम हैं। उक्ती सभी का प्रयागराज कुंभ में प्रतिनिधित्व रहता है।
इसी तरह सभी संप्रदायों की धर्मशाला और मंदिर कुंभ नगरी प्रयागराज में स्थित है। यहां सभी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले मठ एवं आश्रम भी हैं। सभी तीर्थों की पुण्यधारा तीर्थराज प्रयाग के संगम की ओर बढ़ने लगती है। संगम और समन्वय ही हमारी संस्कृति का मूल स्वर है। यही समन्वय प्रयाग को तीर्थराज का गौरव देता है।
इन मठों और आश्रमों में अनेक तीर्थों और क्षेत्रों से श्रद्धालु प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में आते हैं। इन यात्रियों को प्रयाग में कर्मकाण्ड, पूजा-अर्चना, तर्पण, श्राद्ध, मुण्डन, वेणी दान वगैरह कराने के लिए अलग तीर्थ पुरोहित और कर्मकाण्डी विद्वान हैं। ये तीर्थयात्री अपने ही मठों और आश्रमों के जरिये अपने खास तीर्थ पुरोहितों की देखरेख में स्नान दान और पूजन-अर्चन करते हैं। इन विविध मत पंथों और संप्रदायों के एक मात्र आराध्य देवता तीर्थराज प्रयाग हैं, लेकिन इनकी पूजा पद्धति अलग-अलग है।
इन विविध संप्रदायों और मत पंथों के अपने शास्त्र वचन और ग्रंथ हैं। इन ग्रंथों का मूल स्वर तीर्थराज प्रयाग की महिमा का बखान करना है। शैव और वैष्णव संप्रदायों के अनेक मत पंथ हैं। शंकराचार्य, वल्लभाचार्य, निम्बार्काचार्य, चैतन्य महाप्रभु, उदासीन संप्रदाय के आदि गुरु श्रीचन्द्राचार्य ने अपने दार्शनिक विवेचन के अनुसार अद्वैत ब्रह्म का निरूपण किया है।
अनेक तीर्थों में इन आचार्यों ने अपने मठ-मंदिर और आश्रम स्थापित किए थे। इन आश्रमों और मठों के सभी आचार्य तीर्थराज प्रयाग में महाकुंभ के दौरान इकट्ठे होते हैं। वे अपनी श्रद्धा और अपने विश्वास के अनुसार तीर्थराज प्रयाग का पूजन करते हैं। गंगा-यमुना और गुप्त सरस्वती के त्रिवेणी संगम पर इन मत पंथों के कर्मकाण्ड, इनकी पूजा पद्धति, इनके भजन-कीर्तन, प्रवचन और सत्संग को देखकर यकीन हो जाता है कि हमारे देश के सभी तीर्थों में अंतरसंबंध है।