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प्रयागराज कुंभ मेला 1977: इतिहास और विशेषताएं

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WD Feature Desk

, मंगलवार, 7 जनवरी 2025 (18:16 IST)
प्रयागराज कुंभ मेला 1977 का आयोजन उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में हुआ था। यह कुंभ मेला 12 वर्षों के चक्र के बाद आयोजित हुआ। कुंभ मेला 1977 का आयोजन उस समय की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण था। साल 1977 में महाकुंभ मेला 22 जनवरी को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में मौनी अमावस्या के दिन आयोजित किया गया था. इस मेले के पहले दिन लाखों हिंदू श्रद्धालु शाही स्नान के लिए आए थे। यह मेला 55 दिनों तक चला था। 5 जनवरी से 4 फरवरी तक यह मेला आयोजित हुआ।
 
खगोलीय संयोग:
हिंदू ज्योतिष के अनुसार, जब बृहस्पति कुम्भ राशि में, और सूर्य तथा चंद्रमा मकर राशि में होते हैं, तब प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन होता है। इस खगोलीय संयोग के कारण 1977 का कुंभ धार्मिक रूप से विशेष माना गया। ऐसा कहा जाता है कि 144 वर्षों के बाद ऐसा मौका आया जब ग्रह नक्ष‍त्र महाकुंभ के अनुकूल थे। करोड़ों लोग इस महाकुंभ में शामिल हुए थे। ALSO READ: प्रयागराज कुंभ मेला 1989: इतिहास और विशेषताएं
 
धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व:
इस कुंभ मेले में अखाड़ों, संतों, महंतों और नागा साधुओं का विशाल जमावड़ा हुआ। साधु-संतों ने शाही स्नान किया, जो मेले का मुख्य आकर्षण था। धार्मिक प्रवचन, यज्ञ, हवन, और अन्य अनुष्ठानों का आयोजन हुआ। लाखों श्रद्धालुओं ने त्रिवेणी संगम में स्नान कर मोक्ष प्राप्ति की कामना की।
 
राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि:
1977 का कुंभ मेला भारत में आपातकाल (1975-77) के तुरंत बाद हुआ था। आपातकाल की समाप्ति के बाद देश में एक नई राजनीतिक हवा बह रही थी। कुंभ मेले के दौरान आध्यात्मिक और धार्मिक स्वतंत्रता का व्यापक प्रदर्शन देखा गया। यह मेला जनता के भीतर नई उम्मीद और विश्वास का प्रतीक भी बना। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आगमन को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा और स्वच्छता की विशेष व्यवस्था की। यातायात, स्वास्थ्य सेवाएँ, और आपातकालीन सेवाओं का प्रबंध किया गया। पुलिस और अर्धसैनिक बलों की भारी तैनाती की गई।
 
यह मेला राजनीतिक स्वतंत्रता और धार्मिक आस्था के पुनर्जागरण का प्रतीक था। आपातकाल के बाद यह मेला सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक बन गया। साधु-संतों और श्रद्धालुओं की अपार भीड़ ने इस मेले को ऐतिहासिक बना दिया। प्रयागराज कुंभ मेला 1977 न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक संगम था, बल्कि यह भारतीय समाज में राजनीतिक और सांस्कृतिक जागरूकता का प्रतीक भी था।

इस मेले ने भारतीय संस्कृति, परंपरा, और धार्मिक सहिष्णुता को वैश्विक मंच पर मजबूत तरीके से प्रस्तुत किया। यह कुंभ मेला धार्मिक और सामाजिक समरसता का एक अद्भुत उदाहरण बना। "1977 का कुंभ मेला न केवल आध्यात्मिक आस्था का संगम था, बल्कि यह स्वतंत्रता, आशा और एक नई शुरुआत का प्रतीक भी था।"
 
वैश्विक पहचान: 1977 का कुंभ मेला अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों और मीडिया के लिए आकर्षण का केंद्र बना। विदेशी पर्यटकों, शोधकर्ताओं और पत्रकारों ने इस आयोजन को करीब से देखा और इसे वैश्विक मंच पर पेश किया। इसे 'विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन' कहा गया। कुंभ मेले में धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। संत-महात्माओं के प्रवचन, भजन-कीर्तन, और सांस्कृतिक नृत्य-नाटकों का आयोजन किया गया। मेला क्षेत्र में अस्थायी पुस्तक मेले, प्रदर्शनी और धार्मिक साहित्य का वितरण हुआ।
 
आर्थिक प्रभाव और चुनौतियां: प्रयागराज और आसपास के क्षेत्रों में व्यापार और पर्यटन को बड़ा बढ़ावा मिला। दुकानदारों, होटल व्यवसायियों, परिवहन सेवाओं, और धार्मिक वस्त्रों की बिक्री में भारी वृद्धि हुई। इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आने से भीड़ प्रबंधन प्रशासन के लिए एक चुनौती बना। स्वच्छता, स्वास्थ्य सेवाएँ और यातायात नियंत्रण में कुछ समस्याएँ सामने आईं। हालांकि, प्रशासन ने इन चुनौतियों का प्रबंधन अपेक्षाकृत सफलतापूर्वक किया।

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