प्रतीकात्मक चित्र
तीर्थ नगरी प्रयागराज में गंगा के उस पार पुरानी बस्ती है जिसे झूंसी कहा जाता है। यह बस्ती समुद्र कूप टीले से लगी हुई है। इस बस्ती में टीलों की कतार दूर तक दिखाई देती है। प्राचीनकाल में पहले यहां प्रतिष्ठानपुर नगर हुआ करता था। इस नगर का नाम मध्यकाल में झूंसी हो गया।
मान्यता अनुसार पुराने जमाने में इस इलाके पर राजा हरबेंग सिंह राज्य करता था। इसे कुछ लोग हरबोंग सिंह भी कहते हैं। हरबेंग सनकी और अत्याचारी शासक था। इसने अपने शासन में अंधेर मचा रखा था। इसके राज्य में सभी चीजें टका सेर बिकती थी। इसीलिए कहावत चल गई थी- अंधेरी नगरी अनबूझ राजा, टकासेर भाजी, टका सेर खाझा।
कहते हैं कि एक बार त्रिवेणी संगम पर परम सिद्ध अवधूत मत्स्येन्द्र नाथ और गुरु गोरखनाथ स्नान करने आए थे। इस सनकी और घमण्डी राजा ने इन दोनों संतों का अपमान कर दिया था। दोनों सिद्ध योगी राज के अपमान से आहत होकर क्रोधित हो उठे। गुरु गोरखनाथ ने क्रोध से जलते हुए हाथ उठा कर कहा कि अभिमानी राजा, सिद्धों के श्राप से तेरी राजधानी उलट जाएगी और तू नष्ट हो जाएगा।
कहते हैं कि इस श्राप से राजा हरबेंग की राजधानी पर वज्रपात हुआ। बस्ती में भयंकर आग लगी और वह झुलस गई। इस झुलसी हुई बस्ती का नाम आगे चलकर झूंसी हो गया।
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इस नगरी के संबंध में एक कहानी और कही जाती है। दरअसल, सन् 1359 के आसपास मध्य एशिया से चलकर एक पहुंचे हुए फकीर ने झूंसी में डेरा डाला। गंगा किनारे की यह बस्ती उन्हें बहुत पसन्द आई। वे पांचों वक्त नमाज पढ़ते थे। उन्हें दुनिया की नाशवान चीजों से कोई मोह नहीं था, लेकिन सनकी हरबेंग सिंह को इस फकीर का राजधानी में रहना फूटी आंख नहीं भाया। उसने फकीर को राजदरबार में बुलाकर उनका अपमान किया।
फकीर की सहनशक्ति खत्म हो गई तो उन्होंने दोनों हाथ आसमान की ओर उठाकर बद्दुआ दी। फकीर की बद्दुआ से आसमान को चीरता हुआ एक तारा उस बस्ती पर गिरा। बस्ती में आग लग गई और वह उलट गई।
हालांकि यह भी कहा जाता है कि 13-14 शताब्दी के आसपास विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा इस शहर को जलाया गया था और फिर इसे झुलसी (हिंदी शब्द का अर्थ जला) कहा जाने लगा। बाद में इसके बीच का 'ल' गायब हो गया और लोग इस झूसी कहने लगे। यह भी मान्यता है कि यहां कभी कोई उल्का पिंड गिरी थी।
वर्तमान में झूंसी एक आबाद क्षेत्र है। इसे पूर्व में अंधेरनगरी, पुरी और प्रतिष्ठानपुर नाम से जाना जाता था। यह स्थान निओलिथिक साइट में से एक होने के लिए भी विख्यात है, जो कि दक्षिण एशिया में खेती के शुरुआती प्रमाणों में से एक है। कुमाऊं में चन्द राजवंश के संस्थापक, सोम चन्द, झूसी के मूल निवासी थे।