Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

अनुलोम-विलोम प्राणायाम

हमें फॉलो करें अनुलोम-विलोम प्राणायाम

अनिरुद्ध जोशी

प्राणायाम सीखने के लिए शुरुआत में अनुलोम विलोम का अभ्यास किया जाता है। फिर क्रमश: अन्य प्राणायामों का अभ्यास किया जाता है। अनुलोम-विलोम को अच्छे से साधकर ही दीर्घ कुंभक, कपालभाती, भ्रस्त्रिका आदि प्राणायाम किए जाते हैं।
 
अनुलोम-विलोम प्राणायाम करते समय तीन क्रियाएँ करते हैं- 1.पूरक 2.कुम्भक 3.रेचक। इसे ही हठयोगी अभ्यांतर वृत्ति, स्तम्भ वृत्ति और बाह्य वृत्ति कहते हैं।
 
1. पूरक:- अर्थात नियंत्रित गति से श्वास अंदर लेने की क्रिया को पूरक कहते हैं।
2. कुम्भक:- अंदर की हुई श्वास को क्षमतानुसार रोककर रखने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं।
3. रेचक:- अंदर ली हुई श्वास को नियंत्रित गति से छोड़ने की क्रिया को रेचक कहते हैं।
 
इस पूरक, रेचक और कुम्भक की प्रक्रिया को ही अनुलोम-विलोम कहते हैं। इसके बारे में योगाचार्यों के मत अलग-अलग हैं। इसे ठीक प्रक्रिया से करते हैं अर्थात पतंजलि अनुसार 1 : 4 : 2 के अनुपात में किया जाता है। इसे ही नाड़ी शोधन प्राणायाम भी कहा जाता है। नाड़ी शोधन प्राणायाम में इसे विस्तार से बताया गया है।
 
इसका लाभ : तनाव घटाकर शांति प्रदान करने वाले इस प्राणायम से सभी प्रकार की नाड़ियों को भी स्वस्थ लाभ मिलता है। नेत्र ज्योति बढ़ती है और रक्त संचालन सही रहता है। अनिद्रा रोग में यह प्राणायाम लाभदायक है। मस्तिष्क के ‍सभी विकारों को दूर करने में सक्षम है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जानें प्राणायाम क्या है?