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किसकी जीत की खुशबू से महकेगा कन्नौज, दिग्गज समाजवादी लोहिया भी जीत चुके हैं यहां से लोकसभा चुनाव

समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव का मुकाबला भाजपा के वर्तमान सांसद सुब्रत पाठक से

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वृजेन्द्रसिंह झाला

Kannauj Lok Sabha seat: समाजवादी पार्टी के मुखिया और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव की उम्मीदवारी से उत्तर प्रदेश की कन्नौज लोकसभा सीट पर मुकाबला रोचक हो गया है। 2019 के चुनाव में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की पत्नी डिंपल यादव यहां कड़े मुकाबले में भाजपा के सुब्रत पाठक (Subrata Pathak) से करीब 12 हजार मतों से पराजित हो गई थीं। भाजपा ने एक बार फिर पाठक को कन्नौज सीट से उम्मीदवार बनाया है। 1967 में अस्तित्व में इस सीट पर प्रख्यात समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया भी चुनाव जीत चुके हैं। 
 
यादव और मुस्लिम बहुत मतदाताओं वाली सीट पर अखिलेश यादव मजबूत उम्मीदवार माने जा रहे हैं। 2009 में वे इस सीट पर 1 लाख 15 हजार से ज्यादा वोटों से चुनाव जीते थे, तब भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक बसपा के बाद तीसरे स्थान पर रहे थे। भाजपा के पाठक ने हाल ही में कहा कि यादव यहां से अपनी पार्टी का अस्तित्व बचाने आए हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि अखिलेश यदि गलती से जीत भी जाते हैं तो वे सांसद बनकर करेंगे क्या? उन्होंने कहा कि अखिलेश किस बात का बदला लेना चाहते हैं, क्या वे अपनी पत्नी डिंपल यादव की हार का बदला लेना चाहते हैं? ALSO READ: Rae Bareli: रायबरेली में आसान नहीं है राहुल गांधी की राह, दादी इंदिरा गांधी को भी झेलनी पड़ी थी शिकस्त
 
अखिलेश को पीडीपी का सहारा : वहीं, अखिलेश यादव ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) इस बार इन्हें धोने जा रहा है। लगातार चुनावों में हार होते देख भाजपा के लोग ओछी हरकतें कर रहे हैं। भाजपा ने जिस तरह मंदिर धोने का काम किया है वैसे ही जनता वोट डाल डालकर ऐसा धोएगी कि वह दोबारा नहीं लौटेगी। दरअसल, यादव ने हर्षवर्धन कालीन मंदिर बाबा गौरीशंकर महादेव मंदिर में दर्शन किए थे। इसके बाद भाजपा कार्यकर्ताओं ने मंदिर को धोया था। 
 
क्या कहते हैं जातीय समीकरण : कन्नौज लोकसभा सीट पर मतदाताओं की संख्या करीब 18 लाख है। इनमें 10 लाख पुरुष और 8 लाख महिला मतदाता हैं। यहां पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 2.5 लाख है, जबकि यादव वोटर भी इतनी ही संख्या में है। ढाई लाख के लगभग यहां दलित वोटर हैं। ब्राह्मण और राजपूत मतदाताओं की संख्या क्रमश: 15 और 10 फीसदी है। इस सीट पर मुस्लिम और यादव वोटर हार-जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। ALSO READ: कन्हैया की उम्मीदवारी से उत्तर पूर्व दिल्ली बनी हॉट लोकसभा सीट
 
डिंपल चुनी गई थीं निर्विरोध : कन्नौज लोकसभा सीट पर सबसे लंबे समय तक समाजवादी पार्टी का ही कब्जा रहा है। 1998 से 2014 तक यहां समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार ही सांसद चुना जाता रहा है। अखिलेश यादव के सीट छोड़ने के बाद 2012 में हुए उपचुनाव में इस सीट पर ‍अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव निर्विरोध सांसद चुनी गईं। तब उनके खिलाफ किसी भी पार्टी ने उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था। 2014 में डिंपल एक बार फिर इस सीट से सांसद बनीं, लेकिन 2019 में कड़े मुकाबले में वे चुनाव हार गईं। यह लोकसभा क्षेत्र 5 विधानसभा सीटों में बंटा हुआ है। इनमें से 4 पर भाजपा का कब्जा है, जबकि एक सीट बिधूना पर समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार रेखा वर्मा ने जीत हासिल की थी। छिबरामऊ, तिर्वा, कन्नौज और रसूलाबाद में भाजपा के उम्मीदवार विजयी हुई थे। 
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कन्नौज सीट का इतिहास : कन्नौज सीट पर करीब 21 साल तक लगातार समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है। 1967 में अस्तित्व आई इस सीट पर पहले चुनाव में दिग्गज समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी। कांग्रेस इस सीट पर दो ही चुनाव जीत पाई। 1971 में सत्यनारायण मिश्रा विजयी रहे थे, जबकि 1984 में यहां से शीला दीक्षित चुनाव जीती थीं। बाद में शीला दिल्ली की मुख्‍यमंत्री भी चुनी गईं। 1977 (रामप्रकाश त्रिपाठी) और 1980 (छोटे सिंह यादव) में यहां जनता पार्टी के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की। 1989 और 1991 में छोटे सिंह यादव क्रमश: जनता दल और जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते। 1996 में भाजपा को इस सीट पर पहली बार जीत हासिल हुई, जब उसके उम्मीदवार चंद्रभूषण सिंह चुनाव जीतने में सफल रहे। ALSO READ: बारामती में ननद-भाभी की रोचक जंग, चाचा शरद पवार और भतीजे अजित की साख दांव पर
 
क्या है कन्नौज का इतिहास : वर्तमान में यूं तो कन्नौज शहर इत्र नगरी के नाम से मशहूर है, लेकिन यह काफी प्राचीन है। किसी समय यह नगर कन्याकुज्जा या महोधि के नाम से जाता था, लेकिन कालांतर में इसका नाम बदलकर कन्नौज हो गया। इस नगर का संबंध महाभारत काल से भी है। वर्धन वंश के सम्राट हर्षवर्धन ने भी इस नगर को अपनी राजधानी बनाया था। हर्ष के शासनकाल में ही चीनी यात्री व्हेनसांग भारत आया था। 

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