पारसी धर्म और उससे जुड़ा इतिहास और परंपरा और कुछ अनछुए पहलू जानिए

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पारसी समुदाय के लिए पारसी नववर्ष आस्था और उत्साह का संगम है। एक दौर था, जब पारसी समाज का एक बड़ा समुदाय हुआ करता था, लेकिन बदलाव के इस दौर ने हमसे हमारे दूर कर दिए। कई ने करियर और बेहतर पढ़ाई के कारण बड़े शहरों की ओर रुख किया, तो कुछ ऐसे भी हैं, जो आज भी समाज को जीवित रखे हुए हैं। 
 
अगस्त माह में पारसी समाज का नववर्ष मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्योहार 17 अगस्त 2019 को मनाया जा रहा है। पारसी नववर्ष को 'नवरोज' कहा जाता है। बदलते वक्त ने पारसी धर्म में भी जिंदगी ने कई खट्टे-मीठे अनुभव कराए, लेकिन हमारे संस्कार ही हैं जिसके दम पर आज भी अपने धर्म और इससे जु़ड़े रीति-रिवाजों को संभाले हुए हैं। 
 
पारसी धर्म का इतिहास और परंपरा : 1380 ईस्वी पूर्व जब ईरान में धर्म-परिवर्तन की लहर चली तो कई पारसियों ने अपना धर्म परिवर्तित कर लिया, लेकिन जिन्हें यह मंजूर नहीं था वे देश छोड़कर भारत आ गए। यहां आकर उन्होंने अपने धर्म के संस्कारों को आज तक सहेजे रखा है। सबसे खास बात ये कि समाज के लोग धर्म-परिवर्तन के खिलाफ होते हैं।
 
अगर पारसी समाज की लड़की किसी दूसरे धर्म में शादी कर ले, तो उसे धर्म में रखा जा सकता है, लेकिन उसके पति और बच्चों को धर्म में शामिल नहीं किया जाता है। ठीक इसी तरह लड़कों के साथ भी होता है। लड़का भी यदि किसी दूसरे समुदाय में शादी करता है तो उसे और उसके बच्चों को धर्म से जुड़ने की छूट है, लेकिन उसकी पत्नी को नहीं।
 
समाज का कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे शहर या देश से यहां आता है तो उसके रहने और खाने की व्यवस्था पूर्ण आस्था और सेवाभाव से समाजवासी करते हैं। समाज के लोगों को एक सूत्र में पिरोए रखने के लिए उन्होंने कभी भी गलत राह नहीं पकड़ी। आज भी पारसी समाज बंधु अपने धर्म के प्रति पूर्ण आस्था रखते हैं। नववर्ष और अन्य पर्वों के अवसर पर लोग पारसी धर्मशाला में आकर पूजन करते हैं।
 
पारसी समुदाय धर्म-परिवर्तन पर विश्वास नहीं रखता। यह सही है कि शहरों और गांवों में इस समाज के कम लोग ही रह गए हैं खासकर युवा वर्ग ने करियर और पढ़ाई के सिलसिले में शहर छोड़कर बड़े शहरों की ओर रुख कर लिया है, लेकिन हां, कुछ युवा ऐसे भी हैं, जो अपने पैरेंट्स की केयर करने आज भी शहर में रह रहे हैं।
 
भगवान प्रौफेट जरस्थ्रु का जन्मदिवस मनाया जाता है। नववर्ष पर खास कार्यक्रम नहीं हो पाते, इस वजह से इस दिन पूजन और अन्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। यह दिन भी हमारे पर्वों में सबसे खास होता है। उनके नाम के कारण ही हमें जरस्थ्रुटी कहा जाता है।
 
पारसियों के लिए यह दिन सबसे बड़ा होता है। इस अवसर पर समाज के सभी लोग पारसी धर्मशाला में इकट्ठा होकर पूजन करते हैं। समाज में वैसे तो कई खास मौके होते हैं, जब सब आपस में मिलकर पूजन करने के साथ खुशियां भी बांटते हैं, लेकिन मुख्यतः 3 मौके साल में सबसे खास हैं। एक खौरदाद साल, प्रौफेट जरस्थ्रु का जन्मदिवस और तीसरा 31 मार्च। इराक से कुछ सालों पहले आए अनुयायी 31 मार्च को भी नववर्ष मनाते हैं।
 
नववर्ष पारसी समुदाय में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। धर्म में इसे खौरदाद साल के नाम से जाना जाता है। पारसियों में 1 वर्ष 360 दिन का और शेष 5 दिन गाथा के लिए होते हैं। गाथा यानी अपने पूर्वजों को याद करने का दिन। साल खत्म होने के ठीक 5 दिन पहले से इसे मनाया जाता है। इन दिनों में समाज का हर व्यक्ति अपने पूर्वजों की आत्मशांति के लिए पूजन करता है। इसका भी एक खास तरीका है। रात 3.30 बजे से खास पूजा-अर्चना होती है। धर्म के लोग चांदी या स्टील के पात्र में फूल रखकर अपने पूर्वजों को याद करते हैं।
 
पारसी समाज में अग्नि का भी विशेष महत्व है और इसकी खास पूजा भी की जाती है। नागपुर, मुंबई, दिल्ली और गुजरात के कई शहरों में आज भी कई सालों से अखंड अग्नि प्रज्वलित हो रही है। इस ज्योत में बिजली, लकड़ी, मुर्दों की आग के अलावा तकरीबन 8 जगहों से अग्नि ली गई है। इस ज्योत को रखने के लिए भी एक विशेष कमरा होता है जिसमें पूर्व और पश्चिम दिशा में खिड़की, दक्षिण में दीवार होती है।


पारसी नववर्ष का त्योहार दुनिया के कई हिस्सों में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है जिसमें ईरान, पाकिस्तान, इराक, बहरीन, ताजिकिस्तान, लेबनान तथा भारत में भी यह दिन विशेष तौर पर मनाया जाता है।

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