Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

आज के शुभ मुहूर्त

(आंवला नवमी)
  • तिथि- कार्तिक शुक्ल नवमी
  • शुभ समय-9:11 से 12:21, 1:56 से 3:32
  • व्रत/मुहूर्त-अक्षय आंवला नवमी
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

चेटीचंड : सिन्धी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व

हमें फॉलो करें चेटीचंड : सिन्धी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व
मिठो असांजो प्रेम, मिठो असांजो मन
मिठी असांजी बोली, मिठो असांजो लाल।
 
चेटीचंड जूं लख-लख वाधायूं।
 
यह उन एसएमएस में से एक उदाहरण है जो सिंधी परिवारों ने चेटीचंड की बधाइयां देने के लिए एक-दूसरे को भेजेंगे।
 
चेटीचंड पर्व की शुरुआत सुबह टिकाणे (मंदिरों) के दर्शन व बुजुर्गों के आशीर्वाद से होती है। भगवान झूलेलाल द्वारा बताए गए स्थान पर चैत्र सुदी दूज के दिन एक बच्चे ने जन्म लिया, जिसका नाम उदय रखा गया था। उनके चमत्कारों के कारण ही बाद में उन्हें झूलेलाल के नाम से जाना गया। चालिया पर्व के अंतर्गत इन दिनों में खास तौर पर मंदिर में जल रही अखंड ज्योति की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है तथा प्रति शुक्रवार को भगवान का अभिषेक और आरती की जाती है।


 
इन व्रतों के दिनों में महिलाएं प्रतिदिन चार या पांच मुखी आटे का दीपक अपने घरों से लेकर भगवान की पूजा करेंगी। साथ ही मनोकामनाएं मांगने वाली महिलाएं अपने घर से चावल, इलायची, मिस्त्री व लौंग लाकर झूलेलाल का पूजन करेंगी। जीवन को सुखी बनाने एवं लोक कल्याण के लिए यह व्रत महोत्सव मनाया जाएगा।
 
ऐसे लोग जिनकी मन्नत-मुराद पूरी हुई, वे बाराणे (आटे की लोई में मिश्री, सिंदूर व लौंग) व आटे के दीये बनाकर पूजा करके उसके बाद उसे जल में प्रवाहित करते है। इसका प्रयोजन मुराद पूरी होने पर ईश्वर के प्रति आभार के साथ ही जल-जीवों के भोजन की व्यवस्था करना भी है।

 
भगवान झूलेलाल के इस पर्व में जल की आराधना की जाती है। यह सिन्धी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों भगवान झूलेलाल वरुण देव का अवतरण करके अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर करते हैं। जो भी लोग चालीस दिन तक विधि-विधान से पूजा-अर्चना करता है, उनके सभी दुख दूर हो जाते हैं। सिन्धी समुदाय का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन झूलेलाल महोत्सव ही माना जाता है।

 
इस दिन केवल मन्नत मांगना ही काफी नहीं, बल्कि भगवान झूलेलाल द्वारा बताए मार्ग पर चलने का भी प्रण लेना चाहिए। भगवान झूलेलाल ने दमनकारी मिर्ख बादशाह का दमन नहीं किया था, केवल मान-मर्दन किया था। यानी कि सिर्फ बुराई से नफरत करो, बुरे से नहीं।
 
इसी दिन नवजात शिशुओं की झंड (मुंडन) भी नदी किनारे उतरवाई जाती है। हालांकि नदियों के प्रदूषित होने से यह परंपरा अब टिकाणों (मंदिरों) में होने लगी है। दिन भर पूजा-अर्चना के बाद शाम होते-होते लोग शोभायात्रा में शामिल होने या अपने-अपने अंदाज से चेटीचंड मनाने निकल पड़े थे।

यह सिलसिला देर रात तक जारी रहता है। भगवान झूलेलाल की शोभायात्रा में दूर-दराज के निवासी भी आते हैं। प्रत्येक सिन्धी परिवार अपने घर पर पांच दीपक जलाकर और विद्युत सज्जा कर चेटीचंड को दीपावली की तरह मनाते हैं।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

चैत्र नवरात्रि 2019 : मां दुर्गा की पहली शक्ति शैलपुत्री की पावन कथा