रंग और कूची से चित्रकला के विश्व कैनवास पर भारतीय अवधारणाओं और आइकनोग्राफी को शोहरत की बुलंदी पर पहुंचाने और आधुनिक चित्रकला की विशाल विरासत खड़ी करने वाले भारतीय चित्रकार सैयद हैदर रजा का लंबी बीमारी के बाद 23 जुलाई 2016 को निधन हो गया। वे 94 साल के थे। अपनी अमूर्त कलाकृतियों के माध्यम से ‘बिंदु’, ‘पुरुष-प्रकृति’ और ‘नारी’ जैसी अवधारणों को कैनवास पर उकेरने वाले रजा बीसवीं सदी के नवाजे एक महान किन्वदंती थे।’
प्रारंभिक जीवन
मध्यप्रदेश के मंडला जिले के बवारिया में 1922 में जन्मे रजा ने 12 साल की छोटी- सी उम्र में अपने हाथ में कूची थाम ली थी। हाईस्कूल से निकलने के बाद उन्होंने कला की दुनिया अपनाने का फैसला किया। लिहाजा, उन्होंने 1943 में नागपुर स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला लिया। 1939 से 1943 तक उन्होंने यहां चित्रकला की तालीम ली। अपनी तालीम को आगे बढ़ाते हुए रजा 1943 में मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ आर्ट पहुंचे। मुंबई के बाद रजा 1950 में पेरिस गए जहां उन्होंने 1953 तक तालीम हासिल की।
पुरस्कार और सम्मान
वर्ष 1981 में पदमश्री और ललित कला अकादमी के फैलोशिप, 2007 में पद्मभूषण और 2013 में पद्म विभूषण से नवाजे गए रजा ने यूरोप के विभिन्न देशों का भ्रमण किया। इस बीच फ्रांस उनका आशियाना बना रहा जहां उन्होंने अपनी कला यात्रा के छ: दशक गुजारे।
रजा 1950 में फ्रांस सरकार की स्कालरशिप पर पेरिस गए। वहां उन्होंने अपना स्टड्रियो स्थापित किया और फ्रांसीसी नागरिक जेनिन से शादी की। 2002 में जेनिन का निधन हो गया। उन्होंने अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा फ्रांस में गुजारा, लेकिन कभी अपनी भारतीय नागरिकता नहीं छोड़ी। वे पत्रों के माध्यम से अपने समकालीनों के साथ लगातार संपर्क में रहे। वे 2011 में भारत लौट आए। रजा बचपन से ही प्रकृति से प्रभावित थे। उनकी कलाकृतियां उन बिंबों के इर्दगिर्द घूमती हैं जिन्हें हजारों साल के दौरान आदिवासी चित्रकारों से लेकर भारतीय दार्शनिकों ने तलाशा, तराशा और संवारा।
करोड़ों में बिकी कलाकृतियां
रजा ने एमएफ हुसैन, एफएन सूजा, केएच आरा, एचए गाडे, एसके बकरे और अन्य के साथ मिलकर बंबई प्रगतिशील कलाकार समूह (बंबई प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप) का गठन किया। वर्ष 2010 में क्रिस्टीज में नीलामी में रजा की ऐतिहासिक कृति ‘सौराष्ट्र’ 16.42 करोड़ रुपए में बिकी थी। 2014 में उनकी एक अन्य कृति 18.42 करोड़ रुपए में बिकी।