देवकी श्रीकृष्ण की सगी माता है। यह मथुरा के राजा कंस के पिता महाराजा उग्रसेन के भाई देवक की कन्या है। इनको अदिति का अवतार भी माना जाता है। इनका विवाह वसुदेव से हुआ। इसलिए श्रीकृष्ण के देवकीनंदन और वासुदेव भी कहते हैं।
रोहिणी वसुदेव की दूसरी पत्नी और बलराम, एकांगा और सुभद्रा की माता थीं। उन्होंने देवकी के सातवें गर्भ को ग्रहण कर लिया था और उसी से बलराम की उत्पत्ति हुई थी। ये यशोदा माता के यहां रहती थीं। भगवान् श्री कृष्ण की परदादी 'मारिषा' व सौतेली मां रोहिणी 'नाग' जनजाति की थीं।
श्री कृष्ण के पिता वसुदेव की और भी पत्नियां थीं। जैसे पौरवी, भद्रा, मदिरा, रोचना और इला आदि। ये सभी भगवान श्रीकृष्ण की सौतेली माताएं थी।
माता यशोदा भगवान श्रीकृष्ण की न तो सगी माता और न ही सौतेली माता थीं। उन्होंने ही भगवान श्रीकृष्ण का लालन पालन किया था इसलिए वह सगी और सौतेली माता से भी बढ़कर थीं। नंद की पत्नी यशोदा के पिता का नाम सुसुख और माता का नाम पाटला था।
यशोदा ने श्रीकृष्ण के साथ ही बलराम के पालन पोषण की भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो रोहिणी के पुत्र और सुभद्रा के भाई थे।
गोकुल में रोहिणी जी के साथ श्री यशोदाजी सोई हुई थीं। जब वसुदेव ने यशोदा की पुत्री को उठाकर कान्हा को यशोदा के पास सुलाया तो उनके जाने के कुछ देर बाद घर प्रकाश से भर गया। इस प्रकाश से सर्वप्रथम रोहिणी माता की आंख खुली। उनके पास सोए बालक को देखने वे बोल उठी यशोदा ने पुत्र जन्म दिया है।
पौराणिक कथा के अनुसार कुरुक्षेत्र जाते समय भगवान श्रीकृष्ण अपने माता-पिता यशोदा और नंदलाल से मुलाकात करने के लिए जाते हैं तो वे उनसे मिलकर बहुत भावुक हो जाते हैं और उनके माता पिता भी बहुत खुश हो जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण अपनी मां यशोदा से मिलने गए तो वे अपनी आखरी सांस ले रही थी।
एक अन्य कथा के अनुसार यह मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण अपनी मां यशोदा से मिलने गए तो उन्हें इस बात का बहुत दुःख था कि श्रीकृष्ण की 8 पत्नियां होने के बावजूद वे एक भी विवाह में शामिल नहीं हो पाई। अपनी मां का दुःख उनसे देखा नहीं गया और उन्हों ने अपनी माँ से वादा किया कि अगले जन्म में वे उनके सारे विवाह में शामिल होंगी। मान्यता अनुसार अगले जन्म में यशोदा वकुलादेवी के रूप में जन्मी और श्रीकृष्ण वेंकटेश्वरा के रूप में जन्में इस तरह वकुलादेवी उनके सारे विवाह में शामिल हुई।