3 सितम्बर, गोवत्स द्वादशी : क्या करें इस दिन, जानिए बछ बारस की कथा

Webdunia
Bach Baras 2021
 

प्रतिवर्ष जन्माष्टमी के 4 दिन पश्चात यानी भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को बछ बारस का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 3 सितंबर को मनाया जा रहा है। पंचांग मतभेद के चलते मत-मतांतर से यह पर्व 4 सितंबर, शनिवार को भी मनाया जाएगा। इस अवसर पर गाय और बछड़े की पूजा की जाती है। इस दिन माताएं पुत्र की दीर्घायु की कामना से यह व्रत रखती हैं।

मान्यता के अनुसार इस दिन गाय-बछड़े का पूजन करने से सभी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। हिंदू धर्म में गौ माता में समस्त तीर्थों का मेल होने की बात कहीं गई है। भाद्रपद में पड़ने वाले इस पर्व-उत्सव को ‘गोवत्स द्वादशी’ या ‘बछ बारस’ के नाम से भी जाना जाता हैं। 
 
पौराणिक जानकारी के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी दिन गौ माता का दर्शन और पूजन किया था। जिस गौ माता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पांव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो, उसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया। अत: गौ माता की रक्षा और पूजन करना हर भारतवंशी का पहला कर्तव्य है। वर्ष में दूसरी बार यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में भी मनाया जाता है। 
 
बछ बारस या गोवत्स द्वादशी के दिन पुत्रवती महिलाएं गाय व बछड़ों का पूजन करती हैं। यदि किसी के घर गाय-बछड़े न हो, तो वह दूसरे की गाय-बछड़े का पूजन करें। यदि घर के आसपास गाय-बछड़ा न मिले, तो गीली मिट्टी से गाय-बछड़े की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा करें। उन पर दही, भीगा बाजरा, आटा, घी आदि चढ़ाकर कुमकुम से तिलक करें, तत्पश्चात दूध और चावल चढ़ाएं। इस दिन गौ माता को चारा अवश्य ही खिलाएं, माना जाता है कि सारे यज्ञ करने से जो पुण्य मिलता है और सारे तीर्थ नहाने का जो फल प्राप्त होता है, वह फल बछ बारस के दिन गाय की सेवा, पूजन और चारा डालने मात्र से सहज ही प्राप्त हो जाता है।
 
पढ़ें सरल पूजन विधि- 
 
- बछ बारस के दिन व्रत करने वाली महिलाएं सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर धुले हुए एवं साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। 
 
- तत्पश्चात गाय (दूध देने वाली) को उसके बछड़ेसहित स्नान कराएं। 
 
- अब दोनों को नया वस्त्र ओढा़एं। 
 
- दोनों को फूलों की माला पहनाएं। 
 
- गाय-बछड़े के माथे पर चंदन का तिलक लगाएं और उनके सींगों को सजाएं। 
 
- अब तांबे के पात्र में अक्षत, तिल, जल, सुगंध तथा फूलों को मिला लें। अब इस 'क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते। सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥' मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ प्रक्षालन करें।
 
- गौ माता के पैरों में लगी मिट्टी से अपने माथे पर तिलक लगाएं।  
 
- गौ माता का पूजन करने के बाद बछ बारस की कथा सुनें। 
 
- दिनभर व्रत रखकर रात्रि में अपने इष्ट तथा गौ माता की आरती करके भोजन ग्रहण करें। 
 
- मोठ, बाजरा पर रुपया रखकर अपनी सास को दें। 
 
- इस दिन गाय के दूध, दही व चावल का सेवन न करें। बाजरे की ठंडी रोटी खाएं। 

Krishna Janm Story
 
कथा- 
बछ बारस की प्रचलित कथा के अनुसार बहुत समय पहले की बात है एक गांव में एक साहूकार अपने सात बेटे और पोतों के साथ रहता था। उस साहूकार ने गांव में एक तालाब बनवाया था लेकिन कई सालों तक वो तालाब नहीं भरा था। तालाब नहीं भरने का कारण पूछने के लिए उसने पंडित को बुलाया। पंडित ने कहा कि इसमें पानी तभी भरेगा जब तुम या तो अपने बड़े बेटे या अपने बड़े पोते की बलि दोगे। तब साहूकार ने अपने बड़ी बहू को तो पीहर भेज दिया और पीछे से अपने बड़े पोते की बलि दे दी। इतने में गरजते-बरसते बादल आए और तालाब पूरा भर गया।
 
इसके बाद बछ बारस आई और सभी ने कहा कि अपना तालाब पूरा भर गया है इसकी पूजा करने चलो। साहूकार अपने परिवार के साथ तालाब की पूजा करने गया। वह दासी से बोल गया था गेहुंला को पका लेना। साहूकार के कहें अनुसार गेहुंला से तात्पर्य गेहूं के धान से था। दासी समझ नहीं पाई। दरअसल गेहुंला गाय के बछड़े का भी नाम था। उसने गेहुंला को ही पका लिया। बड़े बेटे की पत्नी भी पीहर से तालाब पूजने आ गई थी। तालाब पूजने के बाद वह अपने बच्चों से प्यार करने लगी तभी उसने बड़े बेटे के बारे में पूछा।
 
तभी तालाब में से मिट्‍टी में लिपटा हुआ उसका बड़ा बेटा निकला और बोला, मां मुझे भी तो प्यार करो। तब सास-बहू एक-दूसरे को देखने लगी। सास ने बहू को बलि देने वाली सारी बात बता दी। फिर सास ने कहा, बछ बारस माता ने हमारी लाज रख ली और हमारा बच्चा वापस दे दिया। तालाब की पूजा करने के बाद जब वह वापस घर लौटीं तो देखा, बछड़ा नहीं था। साहूकार ने दासी से पूछा, बछड़ा कहां है? तो दासी ने कहा कि आपने ही तो उसे पकाने को कहा था।
 
साहूकार ने कहा, एक पाप तो अभी उतरा ही है, तुमने दूसरा पाप कर दिया। साहूकार ने पका हुआ बछड़ा मिट्‍टी में दबा दिया। शाम को गाय वापस लौटी तो वह अपने बछड़े को ढूंढने लगी और फिर मिट्‍टी खोदने लगी। तभी मिट्‍टी में से बछड़ा निकल गया। साहूकार को पता चला तो वह भी बछड़े को देखने गया। उसने देखा कि बछड़ा गाय का दूध पीने में व्यस्त था। तब साहूकार ने पूरे गांव में यह बात फैलाई कि हर बेटे की मां को बछ बारस का व्रत करना चाहिए। हे बछबारस माता, जैसा साहूकार की बहू को दिया वैसा हमें भी देना। कहानी कहते-सुनते ही सभी की मनोकामना पूर्ण करना। 
 
कहीं-कहीं मतांतर से कथा में यह जिक्र भी मिलता है कि गेहूंला और मूंगला दो बछड़े थे जिन्हें दासी ने काटकर पका दिया था इसलिए इस दिन गेहूं, मूंग और चाकू तीनों का प्रयोग वर्जित है।

- RK. 

अस्वीकरण (Disclaimer) : चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी नुस्खे, योग, धर्म आदि विषयों पर वेबदुनिया में प्रकाशित/प्रसारित वीडियो, आलेख एवं समाचार सिर्फ आपकी जानकारी के लिए हैं। इनसे संबंधित किसी भी प्रयोग से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

बुध का मेष राशि में गोचर, 4 राशियों के रहेगा शुभ

मई 2025 का मासिक राशिफल: हर राशि के लिए विशेष भविष्यवाणियां

कब है वृषभ संक्रांति, क्या है इसका महत्व

भारत के संबंध में बाबा वेंगा, नास्त्रेदमस और अच्युतानंद ने पहले ही बता दी थीं ये बातें

जूठे बचे भोजन का क्या करना चाहिए? प्रेमानंद महाराज ने बताया उपाय

सभी देखें

धर्म संसार

Aaj Ka Rashifal: 05 मई 2025: आज इन 5 राशियों को मिलेगी व्यवसाय में सफलता, पढ़ें अपनी राशि

05 मई 2025 : आपका जन्मदिन

05 मई 2025, सोमवार के शुभ मुहूर्त

Saptahik Rashifal 2025: मई माह के नए सप्ताह में किस राशि के चमकेंगे सितारे, जानें साप्ताहिक राशिफल 05 से 11 May तक

Aaj Ka Rashifal: 04 मई 2025, क्या कहती है आज आपकी राशि, पढ़ें 12 राशियों का भविष्यफल

अगला लेख
More