Sankashti Chaturthi 2025: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। वर्ष 2025 में, यह व्रत बुधवार, 16 अप्रैल को रखा जाएगा। बुधवार का दिन भगवान श्रीगणेश का होने के कारण इस चतुर्थी का महत्व अधिक बढ़ जाता है। आइए यहां जानते हैं विकट संकष्टी चतुर्थी का महत्व, मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में...
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विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व: धार्मिक मान्यतानुसार 'विकट' भगवान गणेश के 32 स्वरूपों में से एक हैं, जो बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों को दूर करने वाले माने जाते हैं। विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने का विशेष महत्व है, क्योंकि यह व्रत संकटों का निवारण करता है।
इस संबंध की मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा और व्रत करने से सभी प्रकार के संकट और परेशानियां दूर होती हैं। साथ ही विघ्नहर्ता की कृपा प्राप्त होती है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है और इस दिन उनकी पूजा करने से वे भक्तों के सभी विघ्न और बाधाएं हर लेते हैं। इस दिन नमक का प्रयोग वर्जित है।
16 अप्रैल 2025, बुधवार : विकट चतुर्थी व्रत-पूजन के शुभ मुहूर्त:
वैशाख चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 16 अप्रैल 2025, दोपहर 01 बजकर 16 मिनट से।
चतुर्थी तिथि का समापन: 17 अप्रैल 2025, दोपहर 03 बजकर 23 मिनट पर।
उदया तिथि के अनुसार विकट चतुर्थी व्रत 16 अप्रैल को ही मान्य होगा।
विकट चतुर्थी पूजा विधि:
1. संकल्प: प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान गणेश का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
2. स्थापना: पूजा स्थान को साफ करें और एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
3. वस्त्र और तिलक: भगवान गणेश को हरे रंग के वस्त्र पहनाएं और कुमकुम का तिलक लगाएं।
4. अर्पण: भगवान गणेश को दूर्वा, फूल, फल, मोदक या बेसन के लड्डू और अन्य प्रिय भोग अर्पित करें। विशेष रूप से तिलकुट का भोग लगाएं।
5. दीपक: घी का दीपक जलाएं।
6. मंत्र जाप: 'ॐ गं गणपतये नमः' मंत्र का 108 बार जाप करें।
7. कथा और आरती: संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा का पाठ करें और फिर गणेश जी की आरती करें। भजन-कीर्तन गाएं।
8. चंद्रमा की पूजा: रात्रि में चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को दूध, जल और अक्षत मिलाकर अर्घ्य दें।
9. पारण: चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद फलाहार या सात्विक भोजन से व्रत का पारण करें।
विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत से निम्न लाभ प्राप्त होते हैं:
- संतान सुख: मान्यतानुसार, यह व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए भी फलदायी है।
- मनोकामना पूर्ति: इस व्रत को करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- सुख-समृद्धि: भगवान गणेश की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
- आर्थिक लाभ: इस व्रत के प्रभाव से आर्थिक संकटों से मुक्ति मिलती है।
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